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चुनावी बॉन्ड योजना के बाद राजनीतिक दलों के लिए आय के अज्ञात स्रोतों में वृद्धि 

(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - चुनावी बॉन्ड, एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स )
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2 - शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष)

संदर्भ 

  • एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार  चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत के बाद से राजनीतिकी दलों की आय में आय के अज्ञात स्रोतों से प्राप्त आय का हिस्सा बढ़ गया है।
  • एडीआर, राजनीतिक दलों की आय को दो प्रमुख प्रकारों से वर्गीकृत करता है - ज्ञात और अज्ञात। 
  • आय के ज्ञात स्रोतों को आगे दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है - 20,000 से अधिक का स्वैच्छिक दान, जिसका दाता विवरण ईसीआई को प्रस्तुत किया जाता है और "ज्ञात आय के अन्य स्रोत" जैसे चल और अचल संपत्तियों की बिक्री, आदि।
  • अज्ञात स्रोतों में चुनावी बॉन्ड, कूपन की बिक्री आदि के माध्यम से 20,000 से कम का दान शामिल है, जिसके लिए दानदाताओं का विवरण जनता के लिए उपलब्ध नहीं होता है। 
  • वित्त अधिनियम, 2017 द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में किये गये संशोधन ने पार्टियों को चुनावी बांड का उपयोग करके एकत्रित धन की घोषणा करने से छूट देने का प्रावधान कर दिया गया।
  • वित्त वर्ष 2015 से 2017 के बीच राष्ट्रीय दलों की कुल आय में अज्ञात स्रोतों से प्राप्त आय का हिस्सा 66% था, जो वित्त वर्ष 2019 और 2021 के बीच बढ़कर 71% हो गया है। 
  • इसी अवधि में क्षेत्रीय दलों के लिए आय के अज्ञात स्रोतों का हिस्सा 55% से बढ़कर 68% हो गया। 
  • वित्त वर्ष 2019 से 2021 के बीच में दलों की कुल आय में चुनावी बॉन्ड का हिस्सा राष्ट्रीय दलों के लिए 57% और क्षेत्रीय दलों के लिए 64% था।

SBI-BOND

चुनावी बॉन्ड

  • चुनावी बॉन्ड पंजीकृत राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एक वित्तीय साधन है।
  • इसका उद्देश्य राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता को बढ़ाना है। 
  • चुनावी बॉण्ड योजना की घोषणा 2017-18 के बजट में की गयी थी। 
  • इसके लिए रिज़र्व बैंक एक्ट,1934  तथा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में आवश्यक संसोधन किये गए थे। 
  • चुनावी बॉन्ड 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और एक करोड़ रुपए के गुणकों में उपलब्ध होते है। 
  • कोई भी भारतीय नागरिक या संस्था या कंपनी चुनावी बॉन्ड खरीद सकती है। 
  • एक व्‍यक्ति एकल रूप से या अन्‍य व्‍यक्तियों के साथ संयुक्‍त रूप से चुनावी बॉण्‍डों की खरीद कर सकता है।
  • चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों के नाम को गोपनीय रखा जाता है। 
  • बॉन्ड खरीदने वाले को अपनी सारी जानकारी (केवाईसी) बैंक को देनी होती है।
  • बॉन्ड खरीदने वाले को उसका जिक्र अपनी बैलेंस शीट में भी करना होता है। 
  • केवल वही राजनीतिक दल चुनावी बॉन्‍ड प्राप्त कर सकते है,  जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हो तथा जिन्हें लोक सभा या राज्य विधान सभा के पिछले आम चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत मत मिले हो।
  • चुनावी बॉन्‍ड, एक पात्र राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत बैंक खाते के माध्यम से ही भुनाया जा सकता है। 
  • राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को भी बताना होगा, कि उन्हें कितना धन चुनावी बॉन्ड के माध्यम से मिला है।
  • चुनावी बॉन्ड पर बैंक द्वारा कोई ब्याज नही दिया जाता है। 
  • ये बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि में किसी भी व्यक्ति द्वारा खरीदे जा सकते है। 
  • चुनावी बॉन्‍ड जारी होने की तारीख से पंद्रह कैलेंडर दिनों तक के लिए वैध होते है
  • वैधता अवधि की समाप्ति के बाद चुनावी बॉन्‍ड जमा किए जाने पर किसी भी राजनीतिक दल को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा।

चुनावी बॉन्‍ड योजना के लाभ

  • चुनावी बॉन्‍ड केवल उन्ही व्यक्तियों द्वारा ख़रीदे जा सकते है जिन्होंने बैंक के kyc अनुपालन को पूरा किया हो, इससे चुनाव वित्तपोषण प्रणाली में काले धन के प्रवाह पर रोक लगती है। 
  • चुनावी बॉन्‍ड खरीदने वाले को इसको अपनी बैलेंस सीट में भी दिखाना होगा, जिससे पारदर्शिता और जवावदेही को बढ़ावा मिलेगा। 
  • चुनावी बॉन्‍ड खरीदने वाले के नाम का खुलासा नहीं किया जाता है, जिससे कोई भी दल किसी अन्य दल को चंदा देने वाले व्यक्ति के विरुद्ध प्रतिशोध पूर्ण कार्यवाही नहीं कर सकेगा।

चुनावी बॉन्‍ड से संबंधित चुनौतियाँ 

  • बॉन्‍ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंक के माध्यम से बेचे जाते है, इसीलिए सत्ताधारी दल विपक्षी दलों को चंदा देने वाले व्यक्तियों की जानकारी हासिल कर सकता है। और उनके विरुद्ध शत्रुतापूर्ण कार्यवाही कर सकता है। 
  • राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के ज़रिये प्राप्त राशि का खुलासा करने से छूट प्राप्त है, जिससे चुनावी फंडिंग में अपारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है। 
  • यह प्रावधान नागरिकों के जानने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है, जो कि अनुच्छेद 19 के तहत एक मूल अधिकार है।

आगे की राह 

  • एक नियत सीमा से अधिक चुनावी चंदे की जानकारी को सार्वजानिक किया जाना चाहिए, जिससे कम्पनियों तथा राजनीतिक दलों के बीच बनने वाले अनुचित गठजोड़ को समाप्त किया जा सकेगा। 
  • दिनेश गोस्वामी समिति द्वारा दिए गये चुनावी खर्चे को सरकार द्वारा वहन किये जाने के सुझाव पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।
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