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हिमाचल प्रदेश में दावानल की बढ़ती घटनाएँ

( मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन, आपदा और आपदा प्रबंधन।) 

सन्दर्भ

  • हिमाचल प्रदेश में शुष्क मौसम में अक्सर वनाग्नि/दावानल/ जंगल की की घटनाएँ सामने आती हैं।
  • हाल ही में कुल्लू में विकराल रूप से फ़ैल रहे एक दावानल को मुश्किल से काबू में किया जा सका।
  • कुल्लू के अलावा शिमला और राज्य के अन्य हिस्सों में भी दावानल की घटनाएँ दर्ज की गई थीं। 

हिमाचल प्रदेश का वन आवरण

  • यद्यपि हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का दो-तिहाई भाग कानूनी रूप से वन क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है लेकिन इस क्षेत्र का अधिकांश भाग स्थाई रूप से बर्फ, ग्लेशियर, ठंडे रेगिस्तान या अल्पाइन घास के मैदानों से ढका हुआ है।
  • यदि इन क्षेत्रों को अलग कर दिया जाय तो भारत के वन सर्वेक्षण के अनुसार हिमाचल प्रदेश का प्रभावी वन क्षेत्र उसके कुल क्षेत्रफल का लगभग 28% (15,434 वर्ग किलोमीटर) है।
  • चीड़, देवदार, ओक, कैल और स्प्रूस यहाँ पाए जाने वाले कुछ प्रमुख पेड़ हैं। 

इन जंगलों में आग कैसे लगती है?

  • सामान्यतः मानसून और सर्दियों में वर्षा की अवधि को छोड़कर वनों में आग का खतरा बना रहता है।
  • दावानल राज्य में लगभग हर वर्ष होने वाली घटना है और प्रमुख तौर पर चीड़ और देवदार के जंगलों में इन घटनाओं को दर्ज किया गया है।
  • गर्मियों के मौसम में, राज्य की निचली और मध्यम पहाड़ियों में अक्सर आग लगती है, यहाँ भी सामन्यतः चीड़ और देवदार के वन ही पाए जाते हैं।
  • मार्च से जून तक शुष्क गर्मी के मौसम में चीड़, देवदार के पेड़ों से अत्यधिक-दहनशील सुई के आकार के पत्ते गिरते हैं।यदि गिरी हुई सुइ के सामान सूखी पत्तियों में एक बार आग लग जाती है, तो बहने वाली हवा के कारण यह पूरे जंगल में तीव्र गति से फैल सकती है। 
  • हालाँकि, मोटी छाल के कारण, चीड़ और देवदार के पेड़ आग से अपेक्षाकृत अप्रभावित रहते हैं हैं और मानसून के दौरान वापस हरे भरे हो जाते हैं। 

आग लगने के कारण

  • सामान्यतः प्राकृतिक कारणों जैसे कि बिजली गिरने या बाँस की लकड़ियों के आपस में रगड़ने की वजह से आग लग सकती है, लेकिन वन अधिकारियों का मानना है कि जंगल में लगने वाली अधिकतर आगों (दावानल) के लिये सामान्यतः मानवीय कारक ही ज़िम्मेदार होते हैं ।
  • वनों में जब घास सूख जाती है, तब किसी माचिस या बीड़ी/ सिगरेट आदि की एक छोटी सी चिंगारी के कारण भी भीषण आग लग सकती है।
  • चीड़ या देवदार की सूखी पत्तियों के बिजली के खम्भे पर गिरने पर भी चिंगारी निकल सकती है और वह आग का रूप ले सकती है।
  • ऐसे लोग जो जंगलों से कुछ खाने/लकड़ी आदि का सामना लेने जाते हैं या अपने पशुओं को चराने के लिये जंगल लेकर जाते हैं कभी-कभी खाना बनाने के लिये अस्थाई रूप से चूल्हे बनाते हैं और खाना खा लेने के बाद उसे वैसे ही सुलगता छोड़ कर चले जाते हैं, जो बाद में आग में बदल सकता है।
  • इसके अलावा, जब लोग अपने खेतों को साफ़ करने के लिये की ठूंठ या सूखी घांस (या पराली) को जला देते हैं तो इससे भी जंगलों में आग फैल जाती है।
  • वन भूमि पर सूखे पत्तों का कूड़ा एक तैयार ईंधन के रूप में काम करता है।पेड़ के गिरे पत्ते, सूखी घास, खरपतवार आदि भी ईंधन का काम करते हैं। 
  • फैला हुआ कूड़ा, अपघटित होने वाले कार्बनिक यौगिक जैसे मिट्टी, लकड़ी, झाड़ियाँ, जड़ें, पीट आदि भी दहन को और ज़्यादा तीव्र कर देते हैं।
  • यदि आग के ऊपर पहुँचने की बात की जाय तो सूखे खड़े पेड़, काई, लाइकेन, शुष्क एपिफाइटिक या परजीवी पौधे आदि आग को जंगलों में ऊपर तक फैला सकते हैं। 

दावानल से नुकसान

  • दावानल की वजह से वनों की पुनर्जनन क्षमता और उनकी उत्पादकता को बहुत नुकसान पहुँचता है।
  • ओक और देवदार जैसे नमी वाले पेड़ विदेशी खरपतवारों के लिये स्रोत का कार्य कर सकते हैं, जिससे खर पतवार बाद में पूरे जंगल में फ़ैल जाते हैं।
  • वन सामान्य रूप से जलधाराओं और झरनों को निरंतर प्रवाह बनाए रखने में सहायक होते हैं और स्थानीय समुदायों के लिये जलाने की लकड़ी, चारे और अन्य उत्पादों के स्रोत भी होते हैं अतः आग लगने की दशा में इन सभी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • दावानल से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों भी नष्ट ही जाते हैं और यह ज़मीन की ऊपरी परत के क्षरण को भी ट्रिगर कर सकती है।
  • वन्य जीवों के आश्रयस्थल भी दावानल से विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।
  • कभी-कभी, जंगल की आग नियंत्रण से बाहर होकर मानव बस्तियों तक फैल जाती है, इस प्रकार मानव जीवन और संपत्ति के लिये भी खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • हिमाचल वन विभाग के अनुसार, दावानल से हर वर्ष कई करोड़ रुपयों का नुकसान होता है।
  • वर्ष 2016-17 से 2019-20 के बीच दावानल से राज्य को लगभग 7 से 3.5 करोड़ रूपए की हानि हुई। 

दावानल को रोकने और नियंत्रित करने के उपाय

  • मौसम संबंधी आंकड़ों का उपयोग करते हुए आग लगने वाले दिनों का पूर्वानुमान लगाना, सूखे बायोमास वाले स्थलों को साफ रखना, जंगल में सूखे कूड़ों को हटाना, अग्नि-सह्य पौधों को लगाना आदि कुछ तरीके हैं जिनसे दावानल की घटनाओं को कम किया जा सकता है।
  • दावानल की दशा में अग्निशमन का उचित समय पर पहुंचना भी आवश्यक है।
  • वर्ष 1999 में राज्य सरकार ने दावानल से जुड़े नियमों को अधिसूचित किया जिनमें वन क्षेत्रों और आस पास के क्षेत्रों में कुछ विशेष गतिविधियों को प्रतिबंधित या विनियमित किया गया था जैसे किसी भी उद्देश्य से आग जलाना, पराली जलाना, ज्वलनशील वन उपज का ढेर एकत्रित करना आदि।
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