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भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता: चुनौतियाँ और भविष्य की राह

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

भारत एवं यूरोपीय संघ (EU) के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ताएँ हाल के वर्षों में तेजी से आगे बढ़ रहीं हैं किंतु कुछ प्रमुख मुद्दों पर मतभेद बने हुए हैं। इनमें सैनिटरी एवं फाइटोसैनिटरी (SPS) उपाय सबसे महत्वपूर्ण हैं जो खाद्य व पशु सुरक्षा नियमों को नियंत्रित करते हैं।

भारत-यूरोपीय संघ व्यापार समझौता

  • पृष्ठभूमि : वर्ष 2007 में पहली बार दोनों पक्षों के मध्य व्यापक द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश समझौते (BTIA) पर वार्ता शुरू हुई किंतु वर्ष 2013 में रुक गई थी।
  • वर्तमान स्थिति : भारत एवं EU के बीच FTA वार्ताएँ 17 जून, 2022 में पुन: शुरू हुईं, जिनमें व्यापार एवं निवेश संरक्षण जैसे समझौतों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • उद्देश्य : भारत का लक्ष्य इस समझौते के माध्यम से अपने निर्यात को बढ़ाना और EU के बाजारों में बेहतर पहुँच सुनिश्चित करना है।
  • समय सीमा : दोनों पक्षों ने वर्ष 2025 के अंत तक इस समझौते को अंतिम रूप देने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।
  • व्यापारिक साझेदारी : EU भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है जिसके साथ वर्ष 2023 में 124 बिलियन यूरो का वस्तु व्यापार और 59.7 बिलियन यूरो का सेवा व्यापार हुआ।

दोनों पक्षों में मतभेद के प्रमुख बिंदु 

  • SPS उपाय : भारत एवं EU के बीच SPS उपायों पर मतभेद प्रमुख बाधा बने हुए हैं। EU के सख्त नियम, जैसे- कीटनाशक अवशेषों एवं एफ्लाटोक्सिन (Aflatoxin) सीमाओं पर कड़े मानक, भारतीय निर्यात को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए:
    • Aflatoxin सीमाएँ : EU ने मूंगफली के लिए aflatoxin B1 की सीमा 2 µg/kg और कुल aflatoxin की सीमा 4 µg/kg निर्धारित की है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कोडेक्स मानक 15 PPB (parts per billion) की अनुमति देते हैं। मसालों के लिए EU की सीमा 5 PPB (B1) और 10 PPB (कुल aflatoxin) है जबकि अमेरिका 20 PPB की अनुमति देता है।
    • मिथाइल ब्रोमाइड फ्यूमिगेशन : EU कुछ पौधों के उत्पादों पर मिथाइल ब्रोमाइड के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है जिसके कारण भारतीय शिपमेंट प्राय: अस्वीकार कर दिए जाते हैं।
    • नॉन-टैरिफ बैरियर्स (NTBs) : EU के ‘रजिस्ट्रेशन, इवैल्यूएशन, ऑथराइजेशन एवं रिस्ट्रिक्शन ऑफ केमिकल्स’ (REACH) कार्यक्रम और कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) जैसे नियम भारतीय निर्यातकों, विशेष रूप से छोटे एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिए चुनौतियाँ पैदा करते हैं।
  • अन्य मतभेद : नियमों की उत्पत्ति (Rules of Origin) और सरकारी खरीद जैसे अन्य मुद्दों पर भी चर्चाएँ जारी हैं, जहाँ दोनों पक्षों के बीच समझौता अभी तक नहीं हो पाया है।

SPS उपाय के बारे में

  • पूर्ण नाम : Sanitary and Phytosanitary Measures
  • क्या है : खाद्य सुरक्षा, पशु एवं पौधों के स्वास्थ्य से संबंधित नीतियों को नियंत्रित करने के लिए विश्व व्यापार संगठन (WTO) के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
  • लागू : वर्ष 1995 में 
  • मुख्य उद्देश्य
    • मानव, पशु एवं पौधों के जीवन या स्वास्थ्य को जोखिमों से बचाना
    • खाद्य सुरक्षा (बैक्टीरियल दूषण, कीटनाशक, निरीक्षण एवं लेबलिंग) और पौधों के स्वास्थ्य (फाइटोसैनिटेशन) से संबंधित मानकों को लागू करना
    • वैज्ञानिक आधार पर नियम बनाना और अंतर्राष्ट्रीय मानकों (जैसे- कोडेक्स, WOAH, IPPC) का पालन करना

प्रमुख चुनौतियाँ

  • सख्त EU मानक : EU के कड़े SPS और तकनीकी अवरोधक (TBT) नियम भारतीय निर्यातकों के लिए अनुपालन को महंगा और जटिल बनाते हैं।
  • कृषि क्षेत्र की संवेदनशीलता : भारत में 60% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है, जबकि EU में यह आंकड़ा 2% से कम है। इसलिए, भारत के लिए कृषि बाजार को उदार बनाना सामाजिक और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण है।
  • नॉन-टैरिफ बैरियर्स : EU का CBAM और डीफॉरेस्टेशन-मुक्त विनियमन (EUDR) भारतीय निर्यात, विशेष रूप से लोहा, इस्पात और उर्वरकों पर अतिरिक्त कर लगाते हैं।
  • नियमों की उत्पत्ति (Rules of Origin) : उत्पाद-विशिष्ट नियमों और प्रक्रियाओं पर सहमति बनाना जटिल है, विशेष रूप से कृषि, मछली और रासायनिक उत्पादों के लिए।
  • सीमित निर्यात वृद्धि : वर्ष 2019 से वर्ष 2025 तक भारत के EU को निर्यात में केवल $3.02 बिलियन से $4.54 बिलियन की वृद्धि हुई, जो EU के सख्त मानकों के कारण सीमित रही।

आगे की राह

  • SPS नियमों पर सहमति : भारत एवं EU को SPS उपायों पर सामंजस्य स्थापित करने के लिए तकनीकी परामर्श और जोखिम मूल्यांकन पर ध्यान देना चाहिए। पारस्परिक मान्यता समझौतों को अपनाने से अनुपालन आसान हो सकता है।
  • कृषि निर्यात में सुधार : भारत को EU के मानकों को पूरा करने के लिए अपनी कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन प्रक्रियाओं में सुधार करना होगा, जैसे कि aflatoxin नियंत्रण और कीटनाशक अवशेष प्रबंधन।
  • नॉन-टैरिफ बैरियर्स को कम करना : CBAM और EUDR जैसे नियमों के प्रभाव को कम करने के लिए भारत को EU के साथ गहन बातचीत करनी चाहिए, विशेष रूप से SMEs के लिए छूट या सहायता की मांग करनी चाहिए।
  • रूल्स ऑफ़ ओरिजिन पर समझौता : दोनों पक्षों को उत्पाद-विशिष्ट नियमों पर सहमति बनानी चाहिए ताकि व्यापार सुविधा बढ़े और परस्पर लाभकारी परिणाम प्राप्त हों।
  • क्षमता निर्माण : भारतीय निर्यातकों (विशेष रूप से SMEs)  को EU के मानकों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण व तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
  • वैश्विक मानकों में योगदान : भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों, जैसे- WTO एवं कोडेक्स, में सक्रिय रूप से भाग लेकर SPS मानकों को प्रभावित करने का प्रयास करना चाहिए।

मिथाइल ब्रोमाइड (CH3Br) फ्यूमिगेशन के बारे में

  • क्या है : यह एक प्रकार की कीटनाशक प्रक्रिया है जिसका उपयोग कृषि उत्पादों को कीटों, बैक्टीरिया एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों से बचाने के लिए किया जाता है।
  • फ्यूमिगेशन प्रक्रिया : मिथाइल ब्रोमाइड गैस के रूप में एक रासायनिक यौगिक होता है जिसे बंद कक्षों में कृषि उत्पादों पर डाला जाता है। यह गैस पूरी तरह से उन उत्पादों को घेर लेती है और कीटों, बैक्टीरिया तथा अन्य हानिकारक जीवों को मार देती है।
  • उपयोग : इसका उपयोग मुख्यतः पौधों एवं कृषि उत्पादों की सुरक्षा के लिए किया जाता है, खासकर जब इन्हें एक देश से दूसरे देश में निर्यात किया जाता है।
  • सावधानी : यह प्रक्रिया जहरीली होती है और इसलिए इसे विशेष रूप से नियंत्रित व सुरक्षित वातावरण में किया जाता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव : मिथाइल ब्रोमाइड का ओजोन परत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो इसे कुछ देशों में प्रतिबंधित करता है। इससे वायुमंडल में ओजोन परत का क्षरण हो सकता है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव : यह गैस मनुष्य व अन्य जीवों के लिए जहरीली हो सकती है जिससे त्वचा में जलन, श्वसन समस्या एवं अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
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