(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत एवं विश्व का भूगोल) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव) |
संदर्भ
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सर क्रीक में पाकिस्तान द्वारा हाल ही में किए गए सैन्य निर्माण उसके वास्तविक इरादे को लेकर पाकिस्तान को चेतावनी दी। इसी अवसर पर भुज सैन्य अड्डे में सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में उन्नत एल-70 एयर डिफेंस गन की शस्त्र पूजा की गई। एल-70 ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के ड्रोन एवं आयुध को निशाना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी है।
सर क्रीक विवाद के बारे में
- सर क्रीक विवाद की जड़ें आज़ादी से पहले लगभग 1908 में कच्छ एवं सिंध के शासकों के बीच उस समय उत्पन्न हुईं, जब दोनों रियासतों को विभाजित करने को लेकर मतभेद हुआ।
- इसे बॉम्बे राज्य सरकार ने 1914 में मानचित्र B-44 और बाद में B-74 के आधार पर हल किया। इसके बाद लगभग 40-50 वर्षों तक कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं हुई और दुबारा यह मुद्दा 1960 के दशक में पुनः उभरा।
- वस्ततुः सर क्रीक एक ज्वारीय चैनल है जो साठ मील लंबा है और कच्छ के रण के दलदल क्षेत्र में स्थित है। यह गुजरात एवं पाकिस्तान के सिंध प्रांत की सीमा पर स्थित है।
- वर्ष 1965 के सशस्त्र संघर्षों के बाद पाकिस्तान ने 24वीं समानांतर रेखा के पास कच्छ के रण के आधे हिस्से पर दावा किया, जबकि भारत के अनुसार इसकी सीमा मुख्यतः रण के उत्तरी किनारे पर है।
- यह मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के पास गया, जिसने 1968 में भारत के पक्ष में 90% रण का दावा बरकरार रखा और कुछ हिस्से पाकिस्तान को दिए।

वार्ता का दौर एवं इतिहास
- भारत एवं किस्तान इस विवाद पर छह दौर की चर्चा कर चुके हैं किंतु कोई ठोस प्रगति नहीं हुई। भारत का दावा है कि दोनों देशों के बीच सीमा क्रीक के बीच से होकर गुजरती है, जबकि पाकिस्तान इसे क्रीक के पूर्वी तट पर मानता है।
- भारत-पाकिस्तान समुद्री सीमा का निर्धारण भूमि सीमा से जुड़ा है और पाकिस्तान चाहता है कि पहले खाड़ी में सीमा तय हो ताकि समुद्री सीमा का आधार स्थापित हो सके।
- 2 जून, 1989 में इस्लामाबाद में पहला दौर संपन्न हुआ, जिसके बाद 1990 व 1991 में दूसरे एवं तीसरे दौर की वार्ताएँ भी बिना परिणाम समाप्त हुईं। चौथे दौर की वार्ता 1991 में रावलपिंडी में हुई किंतु तकनीकी व समुद्री सीमा के निर्धारण को लेकर अड़चनें आईं। पाँचवें दौर की वार्ता 1992 में नई दिल्ली में हुई, जिसमें भारतीय नौसेना के तकनीकी विशेषज्ञ भी शामिल थे। पाँचवे दौर के बाद वार्ता कुछ समय के लिए स्थगित रही।
- 8 नवंबर, 1998 को नई दिल्ली में सर क्रीक कार्यसमूह की वार्ता आयोजित हुई। भारतीय पक्ष ने सीमा निर्धारण के चार चरणों का प्रस्ताव रखा– आबंटन, परिसीमन, सीमांकन एवं प्रशासन।
- आवंटन: यह वह निर्णय होता है जिस आधार पर विवाद का समझौता या समाधान तय किया जाएगा।
- परिसीमन: इसमें सीमा रेखा के स्थान और उसकी विशेषताओं के लिए सामान्य मानक निर्धारित किए जाते हैं। इसके साथ उदाहरण के रूप में मानचित्र भी दिए जा सकते हैं किंतु यह अनिवार्य नहीं है।
- सीमांकन: यह प्रक्रिया परिसीमन के तय मानकों को वास्तविक स्थिति पर सटीक रूप से लागू करने से संबंधित होती है।
- प्रशासन: इसमें सीमांकित सीमा के प्रबंधन और उस पर प्रशासनिक नियंत्रण सुनिश्चित करने की आवश्यकता शामिल होती है।

- भारतीय पक्ष का कहना है कि आबंटन एवं सीमांकन वर्ष 1914 के बॉम्बे सरकार के प्रस्ताव के अनुसार हुआ तथा सीमांकन 1925 में पूरा हो चुका था। सीमा का निर्धारण मध्य चैनल में प्राकृतिक रूप से पहचाने जाने वाले संकेतों से तय है। पाकिस्तान ने ग्रीन लाइन को जमीन पर स्थानांतरित करने पर जोर दिया है जबकि भारत ने इसे केवल प्रतीकात्मक बताया है।
- वस्तुतः तेल एवं गैस की संभावनाओं के कारण हाल के वर्षों में समुद्री सीमा का महत्व बढ़ा है। पाकिस्तान चाहता है कि भूमि सीमा इस प्रकार से तय हो कि उसके हिस्से में अधिक ई.ई.जेड. आए।
- यदि भारत ग्रीन लाइन को स्वीकार करता है और फिर समान दूरी वाली रेखा से समुद्री सीमा तय करता है तो पाकिस्तानी ई.ई.जेड. लगभग 250 वर्ग मील बढ़ जाएगा। पाकिस्तान ने भारत के मध्य-चैनल सिद्धांत को केवल 'नौगम्य चैनल' पर लागू मानते हुए अस्वीकार किया है।
आगे की राह
- दोनों पक्ष भविष्य में चर्चा जारी रखने पर सहमत हुए। यद्यपि कई दौर की वार्ता के बावजूद विवाद अनसुलझा है। थल एवं जल से सीमा निर्धारण के तकनीकी अंतर और सर क्रीक सीमा को समुद्री सीमा से जोड़ने की जटिलताएँ प्रमुख बाधाएँ हैं।
- पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण पर जोर दे रहा है जबकि भारत द्विपक्षीय समाधान चाहता है। हालाँकि, सर क्रीक विवाद स्वयं जटिल या असाध्य नहीं है। इसके अनसुलझे रहने का मुख्य कारण कश्मीर विवाद और उससे उत्पन्न तनाव की पृष्ठभूमि में निहित है।
- भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणुकरण, कारगिल संघर्ष, पाकिस्तान में सैन्य अधिग्रहण, सीमा पार गोलाबारी और कश्मीर घाटी में हिंसा ने दोनों देशों के बीच संबंधों को कठिन बना दिया है। इसके बावजूद उचित वार्ता और तकनीकी समाधान से यह विवाद हल किया जा सकता है।
एल-70 गन
- एल-70 (L-70) 40 एम.एम. की एक एंटी-एयरक्राफ्ट गन है जो मूलत: स्वीडन की बोफोर्स कंपनी ने बनाई थी। भारत ने इसे 1960 के दशक में खरीदा और अब यह पूरी तरह भारतीय तकनीक से अपग्रेड हो चुकी है।
- यह गन प्रति मिनट 240 से 330 गोलियां चला सकती है और 3.5 से 4 किलोमीटर दूर तक के निशाने साध सकती है।
- इसमें रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर व ऑटो-ट्रैकिंग सिस्टम लगे हैं, जो ड्रोनों और हवाई खतरों को जल्दी पकड़ लेते हैं। भारतीय कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने इसे आधुनिक बनाया, ताकि यह ड्रोन युद्ध में सबसे आगे रहे।
- ऑपरेशन सिंदूर के समय पाकिस्तानी ड्रोन अटैक को भी इसी गन ने नाकाम किया। एल-70 के साथ Zu-23, शिल्का और एस-400 जैसी अन्य हथियारों ने भी मदद की।
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