(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध) |
संदर्भ
जम्मू एवं कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले व ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने वित्तीय कार्यवाही कार्यबल (FATF) को पाकिस्तान के खिलाफ उपलब्ध साक्ष्य सौंपने की योजना बनाई है। इसका उद्देश्य पाकिस्तान की आतंकवाद को दी जा रही राज्य-प्रायोजित सहायता को वैश्विक स्तर पर उजागर करना है।
वित्तीय कार्यवाही कार्यबल (FATF)
- परिचय : यह एक अंतर-सरकारी संस्था है जिसकी स्थापना मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद की फंडिंग और अन्य संबंधित खतरों से निपटने के लिए की गई थी, जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की समग्रता को खतरे में डाल सकते हैं।
- स्थापना : वर्ष 1989, जी-7 देशों की पहल पर
- मुख्यालय : पेरिस, फ्रांस (OECD के कार्यालय में)
- सदस्य देश : 40
- सदस्य संगठन : 2 क्षेत्रीय संगठन: यूरोपीय आयोग व खाड़ी सहयोग परिषद (GCC)
- पर्यवेक्षक संस्थान : विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, जिनमें IMF, UN, World Bank आदि शामिल हैं।
वित्तीय कार्यवाही कार्यबल के उद्देश्य
- मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) एवं आतंकवादी फंडिंग के खिलाफ वैश्विक मानक तय करना
- सदस्य देशों को इन मानकों को अपनाने और कार्यान्वित करने के लिए प्रोत्साहित करना
- वित्तीय पारदर्शिता को बढ़ावा देना और गैरकानूनी गतिविधियों को रोकना
वित्तीय कार्यवाही कार्यबल के प्रमुख कार्य
- सिफारिशें तैयार करना : FATF ने मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए 40 सिफारिशें और आतंकवादी फंडिंग से निपटने के लिए 9 विशेष सिफारिशें जारी की हैं।
- सूचियाँ जारी करना : FATF दो प्रमुख सूचियाँ प्रकाशित करता है-
- ग्रे लिस्ट : जिन देशों को टेरर फंडिंग व मनी लॉन्ड्रिंग का समर्थन करने के लिये सुरक्षित स्थल माना जाता है उन्हें FATF की ग्रे लिस्ट में डाल दिया जाता है।
- यह उस देश के लिये एक चेतावनी के रूप में कार्य करता है कि उसे ब्लैक लिस्ट (काली सूची) में शामिल किया जा सकता है।
- ब्लैक लिस्ट : ब्लैक लिस्ट में उन असहयोगी देशों या क्षेत्रों (Non-Cooperative Countries or Territories: NCCT) को शामिल किया जाता है जो आतंकी फंडिंग व मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों का समर्थन करते हैं।
भारत और FATF
- भारत वर्ष 2010 में FATF का पूर्ण सदस्य बना।
- भारत ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 और आतंकवाद-वित्तपोषण रोकने के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे कानून बनाए हैं।
भारत द्वारा FATF को साक्ष्य सौंपने के निहितार्थ
- अंतर्राष्ट्रीय समर्थन का निर्माण : FATF जैसे मंच पर सबूत प्रस्तुत करना भारत की आतंकवाद-निरोधक वैश्विक छवि को सशक्त करेगा।
- पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव : ग्रे लिस्ट में वापसी से पाकिस्तान के लिए IMF, वर्ल्ड बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करना कठिन हो जाएगा।
- कूटनीतिक बढ़त : यह भारत को अन्य वैश्विक मंचों (G20, UNSC, QUAD) पर आतंकवाद के खिलाफ अधिक नैतिक बल प्रदान करेगा।
चिंताएं और चुनौतियाँ
- FATF के निर्णय तकनीकी अनुपालन व ऑन-ग्राउंड सत्यापन पर आधारित होते हैं, न कि राजनीतिक दबावों पर।
- चीन और तुर्की जैसे देशों का समर्थन पाकिस्तान को FATF में कुछ राहत दिला सकता है।
- भारत को अन्य देशों के साथ मिलकर प्रमाणों की विश्वसनीयता और वैश्विक दबाव बनाने की रणनीति अपनानी होगी।
आगे की राह
FATF में पाकिस्तान को फिर से संदर्भित (refer) करने के प्रयास में भारत को केवल आरोप लगाने तक सीमित न रहकर एक रणनीतिक, प्रमाण-आधारित और बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाना होगा। ऐसे में भारत को निम्नलिखित कदम उठाये जाने की आवश्यकता है -
- प्रमाण-आधारित कूटनीति को सशक्त बनाना : भारत को आतंकवादी फंडिंग से संबंधित ठोस खुफिया सूचनाएं, बैंकिंग ट्रेल्स, हवाला लेन-देन, और धार्मिक/मानवता की आड़ में फंडिंग के दस्तावेज़ तैयार करने चाहिए।
- ये प्रमाण FATF की Mutual Evaluation प्रक्रिया के अनुकूल विस्तृत डोज़ियर के रूप में सौंपे जाने चाहिए।
- बहुपक्षीय समर्थन जुटाना : भारत को FATF के अन्य प्रभावशाली सदस्य देशों जैसे – फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी, जापान आदि का समर्थन जुटाने का भी प्रयास करना चाहिए।
- दक्षिण एशिया में FATF मानकों को बढ़ावा देना : भारत को अपने पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल आदि) के साथ FATF मानकों के अनुपालन हेतु सहयोग बढ़ाना चाहिए। यह कदम भारत को ‘FATF-नैतिक नेतृत्वकर्ता’ के रूप में स्थापित करेगा।
निष्कर्ष
पाकिस्तान में स्थित आतंकी ढाँचों के विरुद्ध भारत की सैन्य कार्रवाई और इसके प्रमाणों को FATF जैसी वैश्विक संस्थाओं के समक्ष प्रस्तुत करना, आतंकवाद के विरुद्ध भारत की 'जीरो टॉलरेंस' नीति को दर्शाता है। यदि यह पहल अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा गंभीरता से ली जाती है, तो यह क्षेत्रीय सुरक्षा, भारत की कूटनीतिक स्थिति और FATF के कार्यकलापों की विश्वसनीयता तीनों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।