(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
भारत में बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच निरंतर आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए विशेषज्ञों का यह मानना है कि अब इसका प्रमुख आधार आंतरिक मांग को सशक्त करना, रोज़गार सृजन और नवाचार पर निर्भर करेगा। इसके लिए भारतीय निजी पूँजी को घरेलू निवेश पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
भारतीय पूँजी की उभरती भूमिका
- स्वतंत्रता के बाद से लेकर 1991 के उदारीकरण के दौर तक भारतीय निजी पूँजी ने देश की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- उदारीकरण के बाद भारतीय कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए वैश्विक बाज़ारों में प्रसार किया और अंतर्राष्ट्रीय संपत्तियाँ हासिल कीं।
- हालाँकि, अब वैश्विक बाज़ार पहले जैसे लाभदायक नहीं रहे हैं। बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार व्यवधान एवं घटती निर्यात मांग के कारण भारतीय पूँजी को अपने फोकस को वैश्विक से घरेलू बाजार में पुनर्निर्देशित करने की आवश्यकता है।
- भारत की वर्ष 2036 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए घरेलू निवेश पर विशेष ध्यान केंद्रित करना ज़रूरी है।
घरेलू निवेश पर फिर से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता
- आज भारत का विकास मुख्य रूप से सार्वजनिक निवेश द्वारा संचालित हो रहा है, जबकि निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में कमी आई है।
- सरकारी पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2020 में 3.4 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 10.2 लाख करोड़ रुपए हो गया, जो 25% की वार्षिक वृद्धि है।
- इसके बावजूद, सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में निजी निवेश स्थिर है जो 22-23% के आसपास बना हुआ है।
- इसके विपरीत, भारतीय कंपनियों ने अपने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में तेज़ वृद्धि की है जो विगत 5 वर्षों में 12% से अधिक की दर से बढ़ा है, जबकि वैश्विक एफ.डी.आई. में गिरावट आई है। यह भारत में निवेश की बजाय विदेशी बाजारों में अवसर खोजने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- वैश्विक आर्थिक विखंडन, भारत के मजबूत घरेलू बुनियादी ढाँचे, जनसांख्यिकीय लाभांश एवं नीतिगत स्थिरता को ध्यान में रखते हुए घरेलू पुनर्निवेश को एक व्यवहारिक व रणनीतिक विकल्प के रूप में देखा जा सकता है।
घरेलू आर्थिक आधार को मजबूत करना
- मजदूरी विस्तार के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा देना
- भारत में कॉर्पोरेट लाभ 15 वर्षों के उच्चतम स्तर पर है किंतु वास्तविक मजदूरी वृद्धि स्थिर बनी हुई है। मुनाफे और मजदूरी के बीच असंतुलन ने घरेलू मांग को प्रभावित किया है।
- वित्त वर्ष 2026 में वास्तविक मजदूरी में केवल 6.5% वृद्धि का अनुमान है, जबकि उत्पादकता और मुनाफा बढ़ रहे हैं।
- नौकरी सृजन और स्थिर मजदूरी वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से विनिर्माण, कपड़ा व सेवा क्षेत्र में सुधार आवश्यक है।
- उच्च मजदूरी से घरेलू मांग बढ़ती है जिससे उपभोग एवं निवेश का एक सकारात्मक चक्र बनता है जो वैश्विक व्यापार में मंदी के बीच भारत के लिए आवश्यक है।
- निजी निवेश और नवाचार को बढ़ावा देना
- निजी निवेश ने ऐतिहासिक रूप से भारत के औद्योगिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, हाल के वर्षों में जोखिम से बचाव, कॉर्पोरेट ऋण शोधन और वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण निवेश में सतर्कता आई है।
- वर्तमान में नीतिगत माहौल विशेष रूप से सकारात्मक है:
- कॉर्पोरेट कर दर को घटाकर 22% (नई विनिर्माण कंपनियों के लिए 15%) किया गया है।
- उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना में 14 क्षेत्रों को कवर किया गया है जिसमें 1.97 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।
- लॉजिस्टिक्स, डिजिटल बुनियादी ढाँचे और व्यापार सुगमता में महत्वपूर्ण सुधार किए गए हैं।
- भारतीय कंपनियाँ अब हरित ऊर्जा, अर्धचालक, विद्युत गतिशीलता और डिजिटल प्रौद्योगिकियों जैसे उभरते क्षेत्रों में भी घरेलू पूंजीगत व्यय बढ़ाकर इन अवसरों का लाभ उठा सकती हैं।
- नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ बनाना
- भारत का अनुसंधान एवं विकास (R&D) व्यय सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.64% है जबकि अमेरिका, जापान व दक्षिण कोरिया जैसे देशों में यह 2-3% है।
- निजी क्षेत्र भारत के कुल आर.एंड.डी. व्यय में लगभग 36% का योगदान देता है, जबकि विकसित देशों में यह 70% से अधिक होता है।
- उभरते क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए भारतीय कंपनियों को विनिर्माण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव प्रौद्योगिकी और हरित प्रौद्योगिकियों में अपने आर.एंड.डी. निवेश को बढ़ाना होगा।
- दक्षिण कोरिया और चीन की सफलता यह दर्शाती है कि आर्थिक नीति द्वारा समर्थित निजी नवाचार एक विकासशील अर्थव्यवस्था को उच्च तकनीक वाले विनिर्माण केंद्र में बदल सकता है।
निजी पूंजी को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ जोड़ना
- भारत का दीर्घकालिक विकास इस बात पर निर्भर करेगा कि निजी पूंजी राष्ट्रीय आर्थिक उद्देश्यों के साथ कितना अच्छी तरह संरेखित होती है।
- सरकार ने पहले ही बुनियादी ढाँचे के उन्नयन, राजकोषीय अनुशासन और निवेश-अनुकूल सुधारों के माध्यम से आधार तैयार कर लिया है।
- अब, निजी क्षेत्र को:
- विदेशी अधिग्रहणों के बजाय घरेलू विनिर्माण एवं नवाचार में पुनर्निवेश करना होगा।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन और हरित परिवर्तन पहल जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में साझेदारी करनी होगी।
- विकेंद्रीकरण के लिए उभरते राज्यों और टियर-2 शहरों में निवेश करना होगा।
आगे की राह
- भारत की अर्थव्यवस्था एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। 7% से अधिक की स्थिर जी.डी.पी. वृद्धि, मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार और बढ़ते बुनियादी ढाँचे के निवेश के साथ देश आर्थिक उछाल के लिए अच्छी स्थिति में है।
- हालांकि, इस गति को बनाए रखने के लिए घरेलू निजी निवेश को गति देनी होगी और सार्वजनिक व्यय का पूरक बनना होगा।
- घरेलू बाजारों पर ध्यान केंद्रित करने से न केवल बाह्य आघातों के प्रति संवेदनशीलता कम होगी, बल्कि आत्मनिर्भरता, रोज़गार व नवाचार को भी बढ़ावा मिलेगा।