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भारतीय शहद उद्योग : वर्तमान स्थिति, चुनौतियां एवं संभावनाएं

संदर्भ

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात में भारत के शहद उद्योग की उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला। उन्होंने पिछले एक दशक में देश में शहद उत्पादन में 60% की प्रभावशाली वृद्धि को रेखांकित किया और इसे ग्रामीण आजीविका को सशक्त बनाने वाली ‘मधुर क्रांति’(Sweet Revolution) का नाम दिया। 

भारतीय शहद उद्योग के बारे में

  • भारत में शहद उद्योग (मधुमक्खी पालन) एक प्राचीन और महत्वपूर्ण कृषि-आधारित व्यवसाय है। यह न केवल शहद उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि परागण के माध्यम से कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में भी योगदान देता है। 
  • भारत, अपने विविध जलवायु और वनस्पति के कारण, शहद उत्पादन के लिए आदर्श परिस्थितियाँ प्रदान करता है।

शहद उत्पादन की वर्तमान स्थिति

  • कुल शहद उत्पादन : भारत का कुल शहद उत्पादन वर्ष 2023-24 के आधार पर  लगभग 1.3 लाख मीट्रिक टन (MT) हुआ।
  • वृद्धि : पिछले एक दशक में भारत में शहद उत्पादन में 60% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
    • यह वृद्धि मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में नवाचारों और ग्रामीण क्षेत्रों में इसे अपनाने का परिणाम है।
  • शहद उत्पादक राज्य : उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, और बिहार।
  • विश्व में स्थान : भारत विश्व के शीर्ष 5 शहद उत्पादक देशों में शामिल है।
    • 1.चीन 2. तुर्किये 3. ईरान 4. भारत 5. अर्जेंटीना
  • निर्यात गंतव्य : भारत 20 से अधिक देशों को शहद का निर्यात करता है, जिनमें अमेरिका, सऊदी अरब, और यू.ए.ई. आदि प्रमुख हैं।

क्या आप जानते हैं?

  • शहद का सबसे प्राचीन साक्ष्य लगभग 8,000 वर्ष पुराना है। स्पेन के वैलेंसिया में अराना गुफा की चित्रकारी (लगभग 6000 ईसा पूर्व) में एक व्यक्ति को मधुमक्खी के छत्ते से शहद निकालते हुए दर्शाया गया है, जो मधुमक्खी पालन की शुरुआत को इंगित करता है।
  • भारतीय सभ्यता में शहद का उल्लेख वेदों और आयुर्वेद (लगभग 1500 ईसा पूर्व) में मिलता है। ऋग्वेद में शहद को "मधु" कहा गया और इसे औषधीय गुणों वाला पवित्र पदार्थ माना गया। आयुर्वेद में शहद का उपयोग पाचन, त्वचा रोग, और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता था।

प्रमुख सरकारी पहलें

राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (NBHM)

  • आरंभ : वर्ष 2020 में 
  • उद्देश्य: वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना, उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार लाना, निर्यात को प्रोत्साहित करना।
  • कुल बजट: 500 करोड़
  • योजनावधि : (2020-21 से 2022-23)
  • क्रियान्वयन एजेंसी : राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड
  • मंत्रालय :  कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय

हनी मिशन (Honey mission)

  • आरंभ : खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग द्वारा वर्ष 2017-18 में 
  • उद्देश्य : ग्रामीण क्षेत्रों, विशेषकर आर्थिक रूप से पिछड़े और आदिवासी इलाकों में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना और किसानों, बेरोजगार युवाओं तथा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना।
  • मंत्रालय : सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय 

प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (PMFME)

  • आरंभ : जून 2020 में
  • मंत्रालय: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय
  • लक्ष्य: सूक्ष्म उद्यमियों को शहद जैसे उत्पादों के प्रसंस्करण में सहायता देना
  • कार्यान्वयन अवधि :वर्ष 2020 से 2025 
  • कुल बजट : 10,000 करोड़
  • प्रमुख सुविधाएं
    • क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी
    • व्यक्तिगत और क्लस्टर-आधारित सहायता
    • ब्रांडिंग, मार्केटिंग और क्षमता निर्माण

शहद उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ

  • आधुनिक तकनीकों का अभाव: कई क्षेत्रों में मधुमक्खी पालकों को उन्नत तकनीकों और उपकरणों की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • जलवायु परिवर्तन: मधुमक्खियों के लिए अनुकूल पर्यावरण पर जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिससे फूलों की उपलब्धता और परागण प्रभावित हो रहा है।
  • बाजार प्रतिस्पर्धा: वैश्विक बाजार में गुणवत्ता और मूल्य निर्धारण के मामले में भारतीय शहद को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
  • जागरूकता की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन के लाभों और तकनीकों के बारे में जानकारी का अभाव है।
  • नकली शहद: बाजार में नकली और मिलावटी शहद की मौजूदगी उपभोक्ताओं के विश्वास को प्रभावित करती है। साथ ही इससे निर्यात भी प्रभावित होता है 
  • प्राकृतिक आवास का क्षरण :  वनों की कटाई और कीटनाशकों का प्रयोग मधुमक्खियों की संख्या को कम कर रहा है।

भविष्य की संभावनाएं

  • निर्यात केंद्र : वैश्विक स्तर पर जैविक और प्राकृतिक शहद की माँग बढ़ रही है, जिसका लाभ भारत उठा सकता है।
  • ग्रामीण रोजगार: मधुमक्खी पालन एक कम लागत वाला व्यवसाय है, जो ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
  • पर्यावरणीय लाभ: मधुमक्खी पालन से परागण को बढ़ावा मिलता है, जो कृषि उत्पादकता और जैव-विविधता के लिए लाभकारी है।
  • मूल्यवर्धित उत्पाद: शहद के साथ-साथ मोम, रॉयल जेली और प्रोपोलिस जैसे उत्पादों का उत्पादन और विपणन बढ़ाया जा सकता है।
  • एग्रो-टूरिज्म और शिक्षा : शहद उत्पादन स्थलों को पर्यटन और प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में विकसित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत में शहद उत्पादन केवल कृषि या उद्योग से जुड़ा विषय नहीं है, बल्कि यह स्वरोजगार, जैव विविधता संरक्षण, स्वास्थ्य, निर्यात और आत्मनिर्भरता के व्यापक आयामों से जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रतिपादित “मीठी क्रांति” भारत को एक स्वस्थ, समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में सशक्त कदम है।

इसे भी जानिए!

शहद के बारे में 

यह शर्करा, अमीनो एसिड, एंजाइम, पॉलीफेनोल और फ्लेवोनोइड्स से भरपूर पदार्थ है, जो इसके रोगाणुरोधी, एंटीऑक्सीडेंट और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुणों में योगदान करते हैं।

प्रमुख औषधीय गुण

  • एंटीऑक्सीडेंट : शहद में मौजूद फ्लेवोनोइड्स और पॉलीफेनोल्स जैसे एंटीऑक्सीडेंट शरीर को मुक्त कणों से बचाते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।
    • मुक्त कण अस्थिर अणु होते हैं जो शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं और पुरानी बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
  • जीवाणुरोधी प्रभाव: शहद में प्राकृतिक जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो घावों को ठीक करने और संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं।
  • पाचन स्वास्थ्य: शहद पाचन तंत्र को बेहतर बनाने और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में सहायक है।
  • खाँसी और सर्दी में राहत: शहद को प्राकृतिक रूप से खाँसी और गले की खराश के उपचार में उपयोग किया जाता है।
  • त्वचा और बालों के लिए लाभकारी: शहद का उपयोग त्वचा को नमी प्रदान करने और बालों को पोषण देने के लिए किया जाता है।
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