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भारत की वैश्विक पहुँच कूटनीति

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।)

संदर्भ 

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर वैश्विक कूटनीतिक पहुँच के लिए सर्वदलीय सांसदों की सात टीमें (कुल 59 सदस्य) भेजने का निर्णय लिया है। इसमें सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के सांसद एवं राजनायिक अधिकारी भी शामिल है। ये टीम 31 देशों एवं यूरोपीय संघ (EU) का दौरा करेगी। 

भारत की वैश्विक पहुँच कूटनीति के बारे में

  • क्या है : 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद भारत की सैन्य प्रतिक्रिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के मद्देनजर केंद्र सरकार द्वारा अपना संदेश वैश्विक मंच पर पहुंचाने के लिए यह एक बड़ा कूटनीतिक अभियान है।
  • प्रतिनिधिमंडल का गठन : इस प्रयास के एक भाग के रूप में सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल प्रमुख देशों में भेजे जाएंगे।
    • उद्देश्य : एक एकीकृत राष्ट्रीय मोर्चा के माध्यम से इस बात पर प्रकाश डालना कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का शिकार होने के बावजूद भारत ने किस प्रकार निर्णायक प्रतिक्रिया दी है।
    • कार्य : प्रतिनिधिमंडल द्वारा विदेशी सरकारों और मीडिया को पहलगाम आतंकवादी हमले, ऑपरेशन सिंदूर तथा सीमा पार से उत्पन्न आतंकवाद पर भारत के व्यापक कूटनीतिक रुख के बारे में जानकारी दी जाएगी।
    • साथ टीमों के प्रतिनिधि मंडल के नेतागण
      • सत्ता पक्ष : रविशंकर प्रसाद (भाजपा), बैजयंत पांडा (भाजपा), श्रीकांत शिंदे (शिवसेना) और संजय झा (जनता दल (यूनाइटेड))
      • विपक्ष : शशि थरूर (कांग्रेस), के. कनिमोझी (द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक)), सुप्रिया सुले (राकांपा-एसपी)

इसे भी जानिए!

केंद्र सरकार द्वारा वैश्विक पहुँच के लिए प्रतिनिधिमंडल भेजने का कदम पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के उस निर्णय की याद दिलाता है जिसमें वर्ष 1994 में उन्होंने तत्कालीन विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के विशेष सत्र में भाग लेने के लिए भेजा था, जहाँ जम्मू एवं कश्मीर में मानवाधिकारों के मामले में भारत की निंदा करने के लिए पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव को सफलतापूर्वक विफल कर दिया गया था।

नीति का महत्व

  • आतंकवाद के खिलाफ रुख : भारत का यह अभियान वैश्विक समुदाय को यह संदेश देता है कि वह आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति अपनाए हुए है।
    • ऑपरेशन सिंदूर को आत्मरक्षा के अधिकार (UN Charter, Article 51) के तहत सही ठहराना भारत की कूटनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय एकता : सत्ता एवं विपक्ष के नेताओं का एक साथ काम करना भारत की राजनीतिक एकजुटता को प्रदर्शित करता है जो वैश्विक मंच पर विश्वसनीयता बढ़ाता है।
  • वैश्विक सहयोग : यह अभियान भारत को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक गठबंधनों, जैसे- वित्तीय कार्यवाही कार्य बल (FATF) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) में समर्थन जुटाने में मदद करेगा।
    • पाकिस्तान के साथ भी घनिष्ठ राजनयिक संबंध रखने वाले खाड़ी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना भारत की कूटनीतिक सफलता होगी।
  • सॉफ्ट पॉवर : भारत की कूटनीति आतंकवाद के पीड़ित के रूप में उसकी छवि को मजबूत करती है जिससे वैश्विक सहानुभूति एवं समर्थन प्राप्त होता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता : यह अभियान दक्षिण एशिया में शांति एवं स्थिरता के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता हैसाथ ही, पाकिस्तान की जवाबदेही को उजागर करता है।

चुनौतियाँ

  • वैश्विक धारणा : कुछ देश भारत की सैन्य कार्रवाई को आक्रामकता के रूप में देख सकते हैं जिससे कूटनीतिक समर्थन जुटाना मुश्किल हो सकता है।
    • पश्चिमी देशों में मानवाधिकार एवं युद्ध के नियमों को लेकर चिंताएँ उठ सकती हैं।
  • पाकिस्तान की जवाबी कूटनीति : पाकिस्तान अपनी स्थिति को सही ठहराने के लिए वैश्विक मंचों, जैसे- संयुक्त राष्ट्र (UN) एवं इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) का उपयोग करेगा।
    • खाड़ी देशों में पाकिस्तान के मजबूत संबंध भारत की कूटनीति के लिए चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय तनाव : यह अभियान भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव में और वृद्धि कर सकता है जिससे सीमा पर संघर्ष का खतरा बढ़ेगा।
    • चीन जैसे पाकिस्तान के सहयोगी देश भारत की कूटनीति का विरोध कर सकते हैं।
  • आंतरिक एकता : सर्वदलीय एकता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेष रूप से यदि विपक्षी दल सरकार की नीतियों की आलोचना शुरू करते हैं।
  • संसाधन एवं समन्वय : इतने बड़े पैमाने पर कूटनीतिक अभियान के लिए व्यापक संसाधनों, समन्वय एवं प्रशिक्षित राजनयिकों की आवश्यकता होगी।

आगे की राह 

  • बहु-स्तरीय कूटनीति : सरकारी स्तर के साथ-साथ ट्रैक-2 (गैर-सरकारी) और ट्रैक-1.5 (मिश्रित) कूटनीति को बढ़ावा देना, जिसमें थिंक टैंक्स, शिक्षाविद एवं सिविल सोसाइटी शामिल हों।
  • वैश्विक मंचों का उपयोग: UNSC, FATF एवं G-20 जैसे मंचों पर आतंकवाद रोधी प्रस्तावों को आगे बढ़ाना।
    • आतंकवाद के वित्तपोषण पर वैश्विक सहमति बनाने के लिए सहयोगियों (जैसे- अमेरिका, फ्रांस, इजरायल) के साथ काम करना।
  • क्षेत्रीय सहयोग : सार्क एवं बिम्सटेक में आतंकवाद रोधी सहयोग को मजबूत करना और अफगानिस्तान व बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ खुफिया साझेदारी बढ़ाना।
  • आर्थिक कूटनीति : खाड़ी देशों और यूरोप में निवेश व व्यापार समझौतों को बढ़ावा देकर कूटनीतिक समर्थन सुनिश्चित करना।
  • आंतरिक स्थिरता : जम्मू एवं कश्मीर में विकास व शांति पहलों को बढ़ावा देना ताकि वैश्विक मंचों पर मानवाधिकार के प्रश्नों का जवाब दिया जा सके।
  • पारदर्शी संचार : आतंकवाद रोधी नीतियों पर जनता का समर्थन बनाए रखने के लिए पारदर्शी संचार।
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