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भारत की मानसून सुभेद्यता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएँ (जल-स्रोत व हिमावरण सहित) तथा वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन तथा इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव)

संदर्भ 

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून पर भारत की निर्भरता उसके सामाजिक-आर्थिक व पर्यावरणीय परिदृश्य में एक आवर्ती विषय बनी हुई है। 
  • तकनीकी प्रगति, नीतिगत सुधारों एवं अर्थव्यवस्था के विविधीकरण के बावजूद मानसून से कृषि उत्पादन, ग्रामीण आय, जल सुरक्षा एवं मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति निर्धारित होती है। 
  • वर्षा का असमान स्थानिक वितरण एक बार फिर भारत के विकास पथ में गहराई से अंतर्निहित कमज़ोरियों को उजागर करता है।

भारत की सुभेद्यता

पहाड़ी क्षेत्रों में अनियमित विकास

  • हिमालयी राज्यों में विशेषज्ञों द्वारा अपरिवर्तनीय रूप से कमज़ोर ढलानों की चेतावनी के बावजूद पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में ढलान-सुरक्षित इंजीनियरिंग जैसे समायोजनों के बिना वनों की कटाई एवं सड़क चौड़ीकरण जारी है। 
  • बार-बार आने वाली आपदाओं के बावजूद पूर्व चेतावनी एवं निकासी व्यवस्था अभी भी अविकसित है। 
    • भारी बारिश का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता में सुधार हुआ है किंतु इसे विश्वसनीय ज़मीनी चेतावनियों में तब्दील नहीं किया जा रहा है। 
  • नुकसान होने के बाद राहत एजेंसियाँ सक्रिय हो जाती हैं किंतु व्यवस्थित अभ्यास, पहले से तैयार आपूर्ति और सामुदायिक तैयारी अपर्याप्त रहती है।

भारतीय मानसून प्रतिरूप एवं विसंगतियाँ

  • मानसून अनियमितता : वर्ष 2025 के मानसून में विशिष्ट अनियमितताएँ देखी गई हैं, जैसे-कुछ क्षेत्रों में देर से शुरुआत, कुछ में बाढ़ और कहीं-कहीं लंबे समय तक सूखा।
  • चरम सीमाओं घटनाओं में वृद्धि : बार-बार बादल फटना, शहरी बाढ़ एवं वर्षा आधारित क्षेत्रों में सूखे जैसी स्थितियाँ।
  • अल नीनो-ला नीना चक्र : अल नीनो-ला नीना चक्र एक निर्णायक बाह्य कारक बना हुआ है किंतु वनों की कटाई, भूजल की कमी एवं तेज़ी से शहरीकरण जैसे स्थानीय कारक इसके प्रभाव की तीव्रता में वृद्धि कर रहे हैं।

भारतीय कृषि की मानसून पर निर्भरता

  • भारत का लगभग 50% शुद्ध बोया गया क्षेत्र वर्षा पर निर्भर है, जिससे खाद्य सुरक्षा के लिए मानसून का प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • दलहन, तिलहन एवं मोटे अनाज जैसी फसलें अत्यधिक मानसून पर निर्भर होती हैं। कम बारिश के कारण उत्पादन में गिरावट आने से आपूर्ति में कमी आती है और खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ती है।
  • सिंचाई नेटवर्क अभी भी असंतुलित है और पूर्वी एवं मध्य भारत नहरों के मामले में पिछड़ रहा है, जिससे अनियमित वर्षा पर निर्भरता बढ़ रही है।

जल संकट एवं शहरी कमज़ोरियाँ

  • बाढ़ एवं सूखे की घटना वर्तमान में सामान्य हो गई है। दिल्ली, बेंगलुरु व चेन्नई जैसे शहर खराब जल निकासी के कारण शहरी बाढ़ का सामना करते हैं जबकि आसपास के ग्रामीण इलाके भूजल संकट से जूझ रहे हैं।
  • भूजल तेज़ी से घट रहा है जो 60% से ज़्यादा सिंचाई और 80% से ज़्यादा पेयजल आवश्यकताओं को पूरा करता है। 
  • शहरी क्षेत्रों के कंक्रीट निर्माण में वृद्धि और आर्द्रभूमि में कमी के कारण मानसून का पुनर्भरण अपर्याप्त है।

आर्थिक प्रभाव

  • अनियमित वर्षा मुद्रास्फीति के दबाव को बढ़ाती है, खासकर खाद्य एवं ऊर्जा के क्षेत्र में।
  • वर्षा आधारित किसानों और सुनिश्चित सिंचाई वाले किसानों के बीच अंतराल बढ़ने से ग्रामीण संकट गहराता जा रहा है। 
  • आपदा राहत लागत और बुनियादी ढाँचे का नुकसान राज्य के वित्त पर अधिक दबाव डाल रहा है।

आगे की राह

  • जलवायु-अनुकूल कृषि : सूखा-प्रतिरोधी बीजों को व्यापक रूप से अपनाना, फसल विविधीकरण और सूक्ष्म सिंचाई जैसी कुशल जल-उपयोग तकनीकों को अपनाना
  • सिंचाई अवसंरचना का विस्तार : प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत लंबित परियोजनाओं को पूरा करना, नहर प्रणालियों का समान वितरण और पारंपरिक जल निकायों का पुनरुद्धार
  • शहरी नियोजन : बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए वर्षा जल निकासी, आर्द्रभूमि संरक्षण एवं स्पंज-शहर मॉडल
  • जल प्रशासन : एकीकृत जल प्रबंधन, कठोर भूजल विनियमन एवं समुदाय-नेतृत्व वाली पुनर्भरण पहल
  • आपदा तैयारी : संवेदनशील जिलों में पूर्व-चेतावनी प्रणालियों, जलवायु बीमा कवरेज एवं लचीलापन निर्माण का विस्तार
  • नीतिगत समन्वय : समग्र मानसून प्रबंधन के लिए कृषि, जल एवं शहरी विकास मंत्रालयों के बीच समन्वय

निष्कर्ष

भारत की मानसून पर निर्भरता एक संरचनात्मक कमजोरी है किंतु यह एक स्थायी संकट नहीं है। जलवायु अनुकूलन, सतत जल उपयोग और लचीली कृषि को नीति में शामिल करके भारत मानसून के आघातों के पूर्वाभास को कम कर सकता है।

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