चर्चा में क्यों ?
- भारत में राजनीतिक दलों के भीतर लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को लागू करने में चुनाव आयोग (ECI) की भूमिका लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है।
- अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चयन, नीतियों का निर्माण और नेतृत्व के उभरने की प्रक्रियाओं में पूरी पारदर्शिता और लोकतांत्रिक नियमों का पालन कर रहे हैं।
- इस मुद्दे पर अनेक आयोगों और समितियों ने रिपोर्टें और सिफारिशें दी हैं, लेकिन अभी भी इसकी व्यवहारिक कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र क्या है ?
आंतरिक लोकतंत्र का अर्थ है राजनीतिक दल की आंतरिक व्यवस्था और संरचना में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन। यह सुनिश्चित करता है कि:
- उम्मीदवारों का चयन पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से हो।
- नेता और पदाधिकारी खुले प्रतिस्पर्धात्मक चुनावों के माध्यम से उभरें।
- नीतियों और रणनीतियों के निर्माण में सभी स्तरों के सदस्य शामिल हों।
- फंडिंग और संसाधनों का उपयोग नियमों के तहत और पारदर्शिता के साथ किया जाए।
सरल शब्दों में, यह पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक शासन, जवाबदेही और सभी हितधारकों की भागीदारी को सुनिश्चित करता है।
आंतरिक लोकतंत्र की आवश्यकता क्यों है ?
विकेंद्रीकरण
- आंतरिक लोकतंत्र पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा केंद्रीकृत और विवेकाधीन नियंत्रण को सीमित करता है। इससे अलग-अलग स्तरों के सदस्य निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं।
अपराधीकरण को रोकना
- वर्तमान में नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों में लगभग 46% के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, ADR)। आंतरिक लोकतंत्र उम्मीदवार चयन में पारदर्शिता लाकर अपराधीकरण को कम करने में मदद करता है।
प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना
- आंतरिक लोकतंत्र नागरिकों को राजनीति में समान अवसर प्रदान करता है और राजनीतिक सहभागिता को बढ़ावा देता है।
युवाओं की भागीदारी
- इससे नई प्रतिभाओं को मंच मिलता है और पार्टी में शीर्ष नेताओं के एकाधिकार की संभावना कम होती है।
भ्रष्टाचार में कमी
- अधिक केंद्रीकृत नेतृत्व भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 2008 की रिपोर्ट में कहा गया कि आंतरिक लोकतंत्र भ्रष्टाचार को कम करने में सहायक है।
पारदर्शिता और सूचना का मुक्त प्रवाह
- जॉन स्टुअर्ट मिल ने "ऑन लिबर्टी" (1859) में विचार और चर्चा की स्वतंत्रता की आवश्यकता पर जोर दिया। आंतरिक लोकतंत्र इसी सिद्धांत को लागू करता है।
राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी के कारण
कानूनी समर्थन का अभाव:
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 29A केवल राजनीतिक दलों के पंजीकरण का प्रावधान करती है। इसमें आंतरिक चुनाव और उम्मीदवार चयन के लिए कोई बाध्यकारी नियम नहीं हैं।
दंडात्मक प्रावधानों का अभाव:
- सुप्रीम कोर्ट के मामले, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाम इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल वेलफेयर में यह स्पष्ट किया गया कि वर्तमान में ECI किसी दल का पंजीकरण रद्द नहीं कर सकता।
संरचनात्मक चुनौतियां:
- वंशवादी राजनीति और केंद्रीकृत नेतृत्व संरचनाएं।
- 1985 का दलबदल-रोधी कानून (संविधान का 52वां संशोधन), जिसमें पार्टी लाइन का सख्त पालन आवश्यक है।
अन्य मुद्दे:
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
- कमजोर संगठनात्मक ढांचा
आगे की राह
पारदर्शिता बढ़ाना
- सरकार द्वारा गठित प्रमुख चुनाव सुधार समितियों, जैसे तारकुंडे समिति (1975), दिनेश गोस्वामी समिति (1990), और इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) ने राजनीतिक दलों में पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर दिया।
चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की सिफारिशें
- 255वीं रिपोर्ट में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में नया अध्याय IVC शामिल करने की सिफारिश की गई।
- इसमें आंतरिक लोकतंत्र, उम्मीदवार चयन, मतदान प्रक्रिया और गैर-अनुपालन पर कार्रवाई करने की ECI की शक्ति का प्रावधान है।
राष्ट्रीय आयोग की सिफारिश
- राष्ट्रीय आयोग (NCRWC) ने राजनीतिक दलों के पंजीकरण और कार्यप्रणाली को विनियमित करने के लिए व्यापक कानून, जैसे कि राजनीतिक दल (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, बनाने की सिफारिश की।
निष्कर्ष:
- राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र सिर्फ नियमों का पालन नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों, पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक माध्यम है। भारत में इसके कार्यान्वयन के लिए कानूनी सुधार, राजनीतिक इच्छाशक्ति और संगठनात्मक मजबूती आवश्यक है।