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भारत में पराली दहन से संबधित मुद्दे

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शीतकाल की बुवाई या रबी की फसल की तैयारी के लिए पराली दहन करते हुए पकड़े गए किसानों पर मुकदमा चलाने की संभावना पर विचार किया है। 

उत्तर भारत में पराली दहन की समस्या 

  • प्रत्येक वर्ष शीतकाल में दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा में वायु प्रदूषण के लिए ‘पराली दहन’ को एक प्रमुख कारक माना जाता है।
  • इन क्षेत्रों में पराली दहन से गंगा के मैदानी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय वृद्धि होती है जिससे दिल्ली-एन.सी.आर. में स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं। बार-बार प्रतिबंधों एवं योजनाओं के बावजूद यह समस्या बनी हुई है।
  • एक केंद्रीय निकाय के रूप में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) अपनी शक्तियों का प्रयोग राजनीतिक दबाव से स्वतंत्र तरीके से करने में विफल रहा है। 

परली दहन के लिए उत्तरदायी कारक 

  • धान की कटाई एवं गेहूँ की बुवाई के बीच बुवाई का समय कम होना
  • पराली प्रबंधन की उच्च लागत और विकल्पों की सीमित उपलब्धता (जैसे- हैप्पी सीडर, बायो-डीकंपोजर)
  • किसानों की आजीविका की असुरक्षा और लाभकारी प्रोत्साहनों का अभाव

संबंधित मुद्दे

  • पर्यावरणीय प्रभाव: बड़े पैमाने पर पराली दहन से CO₂, CO, PM 2.5 और अन्य प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं जिससे धुंध व जलवायु परिवर्तन की स्थिति पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: पराली दहन के मौसम में श्वसन संबंधी बीमारियाँ, आँखों में जलन और दीर्घकालिक बीमारियाँ (Chronic Disease) बढ़ जाती हैं।

नीतिगत हस्तक्षेप

  • वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) का गठन 
  • फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के लिए सब्सिडी योजनाएँ
  • दिल्ली और अन्य राज्यों में पूसा बायो-डीकंपोजर को बढ़ावा
  • राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) और राज्य कानूनों के तहत जुर्माने व दंड
  • विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए पीएम-प्रणाम (2023) जैसी योजनाएँ

चुनौतियाँ

  • पराली दहन प्रबंधन से संबंधित विभिन्न योजनाओं की जमीनी स्तर पर खराब कार्यान्वयन व निगरानी
  • लागत, समय की कमी और व्यवहार्य विकल्पों की कमी के कारण किसानों की अनिच्छा
  • केंद्र एवं राज्यों के बीच कमज़ोर समन्वय

आगे की राह 

  • कृषि-आर्थिक उपाय: फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना (पानी की अधिक खपत वाले धान से बाजरा/दाल की ओर बदलाव)
  • नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर बल: सस्ती मशीनरी, विकेंद्रीकृत बायोमास संग्रह प्रणाली और बायो-डीकंपोजर का विस्तार
  • संस्थागत समर्थन: वैकल्पिक फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नीतियों को मज़बूत करना तथा किसान-उत्पादक संगठनों (FPO) को बढ़ावा देना
  • क्षेत्रीय सहयोग: समन्वित उपायों के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली के बीच संयुक्त कार्य योजनाएँ
  • जागरूकता एवं सामुदायिक भागीदारी: किसान शिक्षा अभियान एवं ग्राम-स्तरीय सहभागिता पर बल
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