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न्यायाधीशों का स्वंय को सुनवाई से अलग करना

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, संवैधानिक निकाय से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र 2 - भारतीय संविधान, न्यायपालिका की कार्यप्रणाली से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ 

हाल ही में, शीर्ष न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने पश्चिम बंगाल से संबंधित मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया। इसके अतिरिक्त, दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने आईटी नियमों की वैधता को चुनौती देने वाली डिजिटल मीडिया की याचिका पर सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया है।

सुनवाई से स्वंय को अलग करने का कारण

  • जब हितों का टकराव होता है, तो न्यायाधीश मामले की सुनवाई से पीछे हट सकते हैं ताकि यह धारणा न बने कि उन्होंने मामले का फैसला करते समय पक्षपात किया है। 
  • हितों का टकराव कई तरह से हो सकता है-
    • जब उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की जाती है तथा अपील की सुनवाई के दौरान वही न्यायाधीश हो, जिन्होंने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहते समय फैसला दिया था। 
    • एक वादी कंपनी में शेयर रखने से लेकर मामले में शामिल किसी पक्ष के साथ पूर्व या व्यक्तिगत संबंध रखने तक।    
  • यह प्रथा कानून की उचित प्रक्रिया के मुख्य सिद्धांत से उपजी है कि कोई भी अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता है। 
  • कोई भी हित या हितों का टकराव किसी मामले से हटने का आधार होगा; क्योंकि निष्पक्ष कार्य करना न्यायाधीशों का कर्तव्य है।

अस्वीकृति की प्रक्रिया एवं नियम  

  • किसी भी संभावित हितों के टकराव का खुलासा करना न्यायाधीशों के अंतःकरण और स्वविवेक पर निर्भर होने के कारण आमतौर पर स्वयं को अलग करने का निर्णय न्यायाधीशों की तरफ़ से ही आता है।
  • कुछ न्यायाधीश मौखिक रूप से मामले में शामिल वकीलों को अपने अलग होने के कारणों से अवगत कराते हैंकई नहीं। कुछ अपने क्रम में कारणों की व्याख्या करते हैं 
  • कुछ परिस्थितियों में, मामले में वकील या पक्ष इसे न्यायाधीश के सामने लाते हैं।
  • यदि कोई न्यायाधीश सुनवाई में शामिल होने से इनकार करता है, तो मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक नई पीठ को आवंटित करने के लिये सूचीबद्ध किया जाता है।
  • पुनर्मूल्यांकन को नियंत्रित करने वाला कोई औपचारिक नियम नहीं है, हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों ने इस मुद्दे से संबंधित व्याख्याएँ की हैं।
  • रंजीत ठाकुर बनाम भारत संघ (1987) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पक्षपात की संभावना का परीक्षण पार्टी के मन में आशंका की तर्कसंगतता है।

    चिंताएँ

    न्यायिक स्वतंत्रता को क्षीण करना

    • यह वादियों को अपनी पसंद की पीठ चुनने की अनुमति देता है, जो न्यायिक निष्पक्षता को कम करता है।
    • साथ ही, इन मामलों में अलग होने का उद्देश्य न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता दोनों को कमज़ोर करता है।

      विभिन्न व्याख्याएँ

      • चूँकि, यह निर्धारित करने के लिये कोई नियम नहीं हैं कि न्यायाधीश इन मामलों में कब स्वंय को अलग कर सकते हैं। एक ही स्थिति की अलग-अलग व्याख्याएँ हैं।

      प्रक्रिया में देरी

      • अदालत के कार्य को बाधित करने के लिये या मुद्दों को उलझाने के लिये या कार्यवाही में बाधा डालने और देरी करने के इरादे से या किसी अन्य तरीके से न्याय की कार्यवाही को विफ़ल करने या बाधित करने के इरादे से कुछ अनुरोध किये जाते हैं।

      आगे का रास्ता 

      • किसी भी न्यायाधीश द्वारा स्वयं को मामले से अलग करने का प्रयोग न्याय को बदलने के लिये एक उपकरण के रूप में और न्यायिक कार्य से बचने के लिये एक साधन के रूप में नहीं करना चाहिये।
      • न्यायिक अधिकारियों को हर तरह के दबाव का विरोध करना चाहिये, चाहे वह कहीं से भी उत्पन्न होता हो और यदि वे इससे विचलित होते हैं, तो यह कृत्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान को ही कमज़ोर कर देगा।
      • न्यायपालिका या संसद को ज़ल्द से ज़ल्द ऐसे नियमों या प्रक्रिया को निर्धारित करना चाहिये, जो न्यायाधीशों की ओर से अलग होने की प्रक्रिया को निर्धारित करती हों।     
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