(प्रारंभिक परीक्षा : विश्व का भूगोल, अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: विश्व का भूगोल) |
संदर्भ
एक नए अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी के क्रोड (कोर) से स्वर्ण (गोल्ड) एवं अन्य कीमती धातुएँ धीरे-धीरे ऊपरी परतों, विशेषकर मेंटल व भूपटल (क्रस्ट) की ओर रिस रही हैं। यह प्रक्रिया विशेष रूप से हवाई जैसे ज्वालामुखीय द्वीपों के निर्माण के दौरान देखी गई है।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी की संरचना को मुख्यत: तीन परतों में विभाजित किया जाता है:
- भूपटल (Crust) : यह पृथ्वी की सबसे बाह्य परत है जो महाद्वीपों एवं महासागरों के नीचे पाई जाती है। इसकी मोटाई 5 से 70 किमी. तक हो सकती है।
- मेंटल (Mantle) : भूपटल के नीचे स्थित यह परत लगभग 2,900 किमी. मोटी है। यह चट्टानी पदार्थों से बनी है और इसमें मैग्मा की गति देखी जाती है।
- क्रोड (Core) : पृथ्वी का कोर दो परतों- एक ठोस आंतरिक कोर और एक तरल बाह्य कोर में विभाजित है। इसमें ठोस आंतरिक कोर मुख्यत: लोहा व निकल से निर्मित है और इसका आकार चंद्रमा के लगभग 70% है। बाह्य कोर पिघली हुई धातुओं से निर्मित है और यह पृथ्वी की सतह से लगभग 1,800 मील नीचे तक फैला है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का अधिकांश सोना एवं अन्य कीमती धातुएँ, जैसे-रूथेनियम, पैलेडियम आदि इसके पिघले हुए कोर में मौजूद हैं। ये धातुएँ लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी के निर्माण के दौरान क्रोड में संचित हुई थीं।
कोर से रिसाव से संबंधित नया शोध
- पृष्ठभूमि : शोधकर्ताओं के अनुसार लगभग 40 वर्ष पहले यह सिद्धांत प्रस्तावित किया गया था कि कोर से कुछ सामग्री मेंटल (आवरण) में रिस रही हो सकती है किंतु इसके प्रमाण अस्पष्ट थे। हालिया विश्लेषण से इस बात की पुष्टि हुई है कि कोर से कुछ सामग्री मेंटल में पहुँच रही है।
- शोध के प्रमुख निष्कर्ष : हाल के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने हवाई के ज्वालामुखीय चट्टानों का विश्लेषण किया जो मैग्मा प्लम्स के ऊपर उठने से बनी थीं।
- अध्ययन में पाया गया है कि क्रोड से स्वर्ण एवं अन्य भारी धातुएँ मेंटल की ओर रिस रही हैं जो इस विचार का समर्थन करते हैं कि पृथ्वी का कोर पूरी तरह से सील नहीं है।
- शोध की प्रक्रिया : शोधकर्ताओं ने आधा किग्रा. बेसाल्ट चट्टान को पीसकर पाउडर बनाया। इसे रासायनिक प्रक्रियाओं से पिघलाया और तरल रूप में परिवर्तित किया। इस प्रक्रिया से प्लैटिनम समूह के दुर्लभ तत्वों, विशेष रूप से रूथेनियम, को अलग किया गया।
- यह धातु सोने जितनी ही दुर्लभ है और सामान्यतः कोर में पाई जाती है जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि कोर से धातुएँ धीरे-धीरे ऊपरी परतों में स्थानांतरित हो रही हैं।
दीर्घकालिक प्रभाव
- यह रिसाव एक अत्यंत धीमी प्रक्रिया है जो 4.5 अरब वर्षों से चल रही है। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह प्रक्रिया इतनी सूक्ष्म है कि किसी एक द्वीप के स्तर पर इसका प्रभाव नगण्य है।
- हालाँकि, यदि इसे पृथ्वी के पूरे इतिहास (4.5 अरब वर्ष) के संदर्भ में देखा जाए, तो यह पृथ्वी की रासायनिक संरचना को बदल सकती है। इसका अर्थ है कि भविष्य में ज्वालामुखीय क्षेत्रों के पास स्वर्ण एवं अन्य दुर्लभ तत्वों के नए स्रोत बन सकते हैं।
हालिया खोज का महत्व
- भूवैज्ञानिक समझ : यह खोज पृथ्वी के कोर एवं मेंटल के बीच सामग्री के आदान-प्रदान की पुष्टि करती है जो पृथ्वी की आंतरिक संरचना और गतिशीलता को समझने में मदद करती है। यह दर्शाता है कि कोर पूरी तरह से सील नहीं है, जैसा पहले माना जाता था।
- संसाधन उपलब्धता : सोने एवं दुर्लभ धातुओं (जैसे- रूथेनियम) का कोर से ऊपरी परतों में रिसाव भविष्य में नए खनिज स्रोतों की संभावना को दर्शाता है। विशेष रूप से ज्वालामुखीय क्षेत्रों (जैसे- हवाई) में स्वर्ण के नए भंडार बन सकते हैं, जो खनन उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है।
- वैज्ञानिक अनुसंधान : यह अध्ययन भू-रसायन और ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं के अध्ययन में नई दिशाएँ प्रदान करता है। यह ग्रहों के निर्माण और उनकी आंतरिक प्रक्रियाओं को समझने में भी योगदान देता है, जो अंतरिक्ष विज्ञान के लिए प्रासंगिक है।
- पर्यावरण एवं संसाधन प्रबंधन : स्वर्ण एवं दुर्लभ धातुओं के नए स्रोतों की संभावना खनन व संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।