
प्रकाश प्रदूषण का अर्थ है कृत्रिम बाहरी रोशनी का अत्यधिक, गलत दिशा में या अनावश्यक रूप से उपयोग।
यह एक बढ़ती हुई पर्यावरणीय चिंता है जो मानव स्वास्थ्य, वन्यजीवों, पारिस्थितिकी तंत्र और खगोलीय अवलोकनों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
प्रकाश प्रदूषण के प्रकार:-
- स्काईग्लो (Skyglow):
- जनसंख्या वाले क्षेत्रों के ऊपर रात के आकाश का अत्यधिक उजाला।
- तारों और खगोलीय पिंडों को देखना मुश्किल होता है।
- ग्लेयर (Glare):
- अत्यधिक चमक जो देखने में असुविधा देती है, विशेषकर ड्राइवरों के लिए।
- लाइट ट्रेसपास (Light Trespass):
- किसी के घर या संपत्ति में अनचाही कृत्रिम रोशनी का प्रवेश।
- क्लटर (Clutter):
- शहरी क्षेत्रों में अत्यधिक, भ्रमित करने वाली रोशनी के समूह।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
सर्केडियन रिदम (Circadian Rhythm) में विघटन
- मानव शरीर की प्राकृतिक जैविक घड़ी प्रकाश और अंधेरे के चक्र से नियंत्रित होती है।
- रात में कृत्रिम रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन को दबाती है, जो नींद और मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
अल्जाइमर रोग से संबंध
- हालिया अध्ययन में पाया गया है कि रात के समय प्रकाश प्रदूषण अल्जाइमर रोग के खतरे को बढ़ा सकता है।
- तंत्र: नींद चक्र बाधित → स्मृति कमजोर → मेलाटोनिन की कमी → मस्तिष्क में एमिलॉयड-बीटा का जमाव।
अन्य स्वास्थ्य प्रभाव:
- अनिद्रा, नींद की खराब गुणवत्ता।
- अवसाद और मानसिक विकार।
- मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग।
- स्तन और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा।
जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
पक्षी और जानवर:
- प्रवासी पक्षी तारों से दिशा तय करते हैं; स्काईग्लो उनके मार्ग को भ्रमित करता है।
- कृत्रिम प्रकाश शिकार को उजागर करता है, जिससे वे शिकारियों के लिए आसान शिकार बन जाते हैं।
- मेंढक, चमगादड़, कछुए जैसे रात्रिचर प्राणियों की प्रजनन क्रियाएँ प्रभावित होती हैं।
कीट और परागण:
- कृत्रिम प्रकाश कीटों को आकर्षित करता है, जिससे वे थककर मर जाते हैं।
- पतंगे जैसे परागकण ले जाने वाले कीट फूलों से दूर हो जाते हैं, जिससे परागण कम होता है।
पारिस्थितिक असंतुलन:
- शिकारी-शिकार के संबंधों में बदलाव।
- रात्रिकालीन भोजन व्यवहार, निवास स्थान की पसंद और प्रजातियों के वितरण में परिवर्तन।
खगोल विज्ञान पर प्रभाव:
- स्काईग्लो खगोलीय वस्तुओं को देखने में बाधा बनता है।
- पृथ्वी आधारित वेधशालाओं से वैज्ञानिक अध्ययन कठिन हो जाते हैं।
- रात के आकाश से सांस्कृतिक और वैज्ञानिक जुड़ाव में कमी।
ऊर्जा, जलवायु और आर्थिक प्रभाव:
- अनावश्यक रोशनी ऊर्जा बर्बाद करती है, जो प्रायः जीवाश्म ईंधनों से उत्पन्न होती है।
- यह कार्बन उत्सर्जन बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन में योगदान देती है।
- हर साल अरबों रुपये बेकार रोशनी पर खर्च होते हैं, जिससे शहरी व्यय और बिजली की मांग बढ़ती है।
प्रकाश प्रदूषण को कम करने के उपाय:
- फुली शील्डेड फिक्स्चर:– ऐसी लाइटें जो केवल नीचे की ओर प्रकाश डालें, आकाश की ओर नहीं।
- स्मार्ट लाइटिंग तकनीक:– मोशन-सेंसर लाइट, टाइम-नियंत्रित स्ट्रीट लाइट्स।
- कम तीव्रता और गर्म रोशनी:– कम रोशनी और गर्म रंग वाले एलईडी का उपयोग।
- विधायी एवं शहरी नियोजन:– शहरों और कस्बों में प्रकाश प्रदूषण के लिए नियम और लद्दाख जैसे “डार्क स्काई” रिज़र्व (भारत का पहला)।
- जन जागरूकता अभियान:– घरों और व्यवसायों में ज़िम्मेदार प्रकाश उपयोग को प्रोत्साहन।
- पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA):– वन्यजीव आवासों के पास प्रमुख प्रकाश परियोजनाओं के लिए अनिवार्य EIA।
कानूनी और नीति संबंधी पहल:
- भारत में फिलहाल प्रकाश प्रदूषण पर कोई समर्पित राष्ट्रीय नीति नहीं है।
- हालांकि, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत दिशा-निर्देशों पर विचार चल रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय डार्क-स्काई एसोसिएशन (IDA) विश्व स्तर पर अंधेरे-आकाश-अनुकूल प्रकाश व्यवस्था को बढ़ावा देता है।