New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 New Year offer UPTO 75% + 10% Off | Valid till 03 Jan 26 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM New Year offer UPTO 75% + 10% Off | Valid till 03 Jan 26 GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

लोक अदालत : एक वैकल्पिक विवाद समाधान उपकरण

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : न्यायपालिका की संरचना, विवाद निवारण तंत्र एवं संस्थान)

संदर्भ

वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली के रूप में न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या को प्रभावी ढंग से कम करने में राष्ट्रीय लोक अदालतों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ (नाल्सा) ने लोक अदालतों के कार्यान्वन को अधिक प्रभावी बनाने एवं इनके मार्गदर्शन के लिये राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ पूर्व परामर्श और समीक्षा बैठकों का आयोजन प्रारंभ किया है।

लोक अदालत

  • न्यायिक सेवा अधिकारियों द्वारा आयोजित राष्‍ट्रीय और राज्‍य स्‍तरीय लोक अदालतों ने वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution) का एक तरीका प्रस्तुत किया है, जिसमें ‘मुकदमेबाजी से पूर्व’ एवं ‘लंबित मामलों’ को मैत्रीपूर्ण आधार पर सुलझाया जाता है। विदित है कि लोक अदालतों में कोई न्यायालय शुल्क नहीं देना पड़ता है।
  • इसमें संबंधित पक्षों को एक सहमति पर लाया जाता है। इससे कठिन न्‍यायिक प्रक्रिया के बोझ से छुटकारा मिलता है। इस प्रणाली में समय और धन की बचत होती है।

लोक अदालतों की उत्पत्ति

  • ‘न्याय सिद्धांत’ के अनुसार, ‘न्याय प्राप्ति में देरी, न्याय न मिलने के सामान है।’ अतः संसद ने 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद-39A अंतःस्थापित किया। इसमें ‘समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता’ सुनिश्चित करने का प्रावधान किया गया।
  • इसी अनुच्छेद को प्रभावी बनाने के लिये संसद ने ‘विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987’ पारित किया, जो वर्ष 1995 में लागू हुआ। वस्तुतः लोक अदालतों की स्थापना इस उद्देश्य से की गई थी कि समतामूलक न्याय को बढ़ावा दिया जा सके। उल्लेखनीय है कि लोक अदालतें औपचारिक न्यायिक व्यवस्था की अपेक्षा मामलों का त्वरित निपटारा करती हैं।
  • 'कानून के समक्ष समानता' संविधान में अंतर्निहित है। अनुच्छेद-14 के अनुरूप, राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। समानता के लक्ष्य को सुदृढ़ करने और जाति, पंथ या लिंग के आधार पर बिना भेदभाव के सभी को समान अवसर प्रदान करने में लोक अदालतें मुख्य भूमिका निभा सकती हैं।

लोक अदालतों में मुकदमों का त्वरित समाधान

  • लोक अदालतों में प्रक्रियागत लचीलापन, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 जैसे प्रक्रियात्मक कानूनों के अनुप्रयोग में ढील मामलों के त्वरित समाधान के प्रमुख कारण हैं।
  • इसके अतिरिक्त, लोक अदालतों के निर्णयों के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है, जिससे विवादों के निपटारे में तेज़ी आती है। साथ ही, संयुक्त समझौता याचिका दायर किये जाने के उपरांत लोक अदालतों द्वारा दिये गए निर्णय को दीवानी न्यायालय की डिक्री (Decree) का दर्ज़ा प्राप्त हो जाता है।
  • न्यायालयों व अन्य विवाद समाधान तंत्रों, जैसे- पंचाट और मध्यस्थता की तुलना में लोक अदालतों में मुकदमों का निपटारा तेज़ी से होता है।

ई-लोक अदालत

  • विधिक सेवा प्राधिकरणों ने जून 2020 में पारंपरिक तरीकों के साथ तकनीक को एकीकृत करके वर्चुअल लोक अदालतों की शुरुआत की। इन्हें 'ई-लोक अदालत' कहा जाता है।
  • कोविड-19 के कारण भारत में ई-लोक अदालत की अवधारणा विशेष रूप से प्रचलित हो रही है। छत्तीसगढ़ ने वर्ष 2020 में अपनी पहली ई-लोक अदालत का आयोजन किया। 
  • वर्ष 2021 के दौरान देश भर में आयोजित चार राष्ट्रीय लोक अदालतों में कुल 12.8 लाख मामलों का निपटारा किया गया। इसकी सफलता में तकनीकी उन्नति का अत्यधिक योगदान है। 
  • तकनीकी प्रगति से लोक अदालतों के पर्यवेक्षण और निगरानी में सहायता मिली है और सुदूर क्षेत्रों में से भी वादी कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं। इससे यात्रा एवं न्यायालय संबंधी खर्चों की बचत होती है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR