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मैंग्रोव संरक्षण (Mangrove Conservation)

मैंग्रोव ऐसे अनूठे वेलांचली (littoral) पादप समुदाय हैं जो विश्व के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय समुद्री तटों में पाए जाते हैं। इन्हें तटवर्ती वन, ज्वारीय वन या मैंग्रोव वन भी कहा जाता है। ये लवण-सहिष्णु पौधे उच्च तापमान (26–35°C), उच्च वर्षा (1,000–3,000 मिमी) तथा अंतर-ज्वारीय क्षेत्रों में पनपते हैं। भारत में मैंग्रोव पारितंत्र विशेष रूप से सुंदरबन (पश्चिम बंगाल), एम.पी.टी.आर. (अंडमान-निकोबार), भितरकनिका (ओडिशा), मैत्री नदी क्षेत्र (गुजरात) और गोदावरी–कृष्णा डेल्टा (आंध्र प्रदेश) में विकसित है।

भारत में मैंग्रोव का विस्तार

ISFR 2023 के अनुसार—

  • भारत का कुल मैंग्रोव आवरण: 0.15%
  • विश्व के मैंग्रोव क्षेत्रफल में भारत का योगदान: लगभग 3%
  • पिछले वर्षों में मैंग्रोव क्षेत्र में वृद्धि मुख्यतः अंडमान-निकोबार, ओडिशा और महाराष्ट्र में दर्ज की गई है।

मैंग्रोव की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं

(1) कार्बन प्रच्छादन (Blue Carbon Ecosystem)

  • मैंग्रोव, समान आकार के अन्य उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 3 गुना अधिक कार्बन भंडारण करते हैं।
  • मिट्टी में दीर्घकालिक कार्बन जमा (long-term carbon burial) की क्षमता अधिक।

(2) प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा

  • तूफ़ान, चक्रवात और बाढ़ के दौरान ये wave energy को 60–70% तक कम कर देते हैं।
  • शोधों के अनुसार ये बाढ़ की गहराई को 15–20% तक घटाते हैं।

(3) तटीय समुदायों के लिए आजीविका

  • मछली पालन, शहद उत्पादन, नर्सरी फार्मिंग, इको-टूरिज़्म।
  • भारत में हजारों परिवार सीधे इस पारितंत्र पर निर्भर।

(4) जैव विविधता हॉटस्पॉट

  • भारतीय मैंग्रोव में 5700+ पादप और जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • इनमें फिडलर क्रैब, मडस्किपर, किंगफिशर, मगरमच्छ, बाघ (सुंदरबन) आदि शामिल हैं।

मैंग्रोव के खतरे

वैश्विक संदर्भ (Global Mangrove Alliance, 2024)

  • विश्व के आधे मैंग्रोव प्रांत संकटग्रस्त हैं (IUCN Red List of Ecosystems)।
  • समुद्र-स्तर वृद्धि और प्रदूषण प्रमुख कारण।

भारत में प्रमुख खतरे

(1) मानवजनित विकास गतिविधियां

  • औद्योगिक झींगा जलीय कृषि का विस्तार (AP, WB, Gujarat)।
  • ऑयल पाम बागानों और चावल की खेती हेतु मैंग्रोव भूमि का रूपांतरण।
  • बंदरगाह विकास, तटीय सड़क निर्माण, रियल एस्टेट विस्तार।

(2) जलवायु परिवर्तन

  • समुद्र का बढ़ता स्तर, तटीय कटाव, चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि।

(3) तटीय प्रदूषण

  • ब्लैक कार्बन (विशेषकर कोलकाता–गंगा-सिंधु क्षेत्र से)।
  • अपशिष्ट जल और प्लास्टिक प्रदूषण।

(4) भूजल दोहन व खारापन परिवर्तन

  • तटीय क्षेत्रों में भूजल पंपिंग से मृदा-लवणता में बदलाव।

(5) स्थानीय जैविक दबाव

  • अवैध लकड़ी कटाई, चारकोल उत्पादन, अवैध मछली पकड़।

मैंग्रोव संरक्षण के लिए भारत की पहलें

(1) MISHTI योजना — Mangrove Initiative for Shoreline Habitats & Tangible Income

  • केंद्रीय बजट 2023–24 में शुरू।
  • तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में मैंग्रोव plantation व restoration
  • इसमें स्थानीय समुदायों की आय बढ़ाने पर ध्यान।

(2) SAIME — Sustainable Aquaculture in Mangrove Ecosystem

  • मैंग्रोव के बीच सस्टेनेबल झींगा/मछली जलीय कृषि
  • पश्चिम बंगाल में सफल मॉडल।

(3) राष्ट्रीय तटीय मिशन (NCM)

  • मैंग्रोव और प्रवाल भित्ति के संरक्षण व प्रबंधन।
  • तटीय पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करना।

(4) Magical Mangroves Campaign

  • समुदाय आधारित जागरूकता और पारिस्थितिक शिक्षा।

(5) CAMPA फंड

  • मैंग्रोव पुनर्स्थापन में उपयोग।

वैश्विक पहलें

(1) Mangrove Breakthrough (Global Mangrove Alliance)

  • लक्ष्य: 2030 तक 15 मिलियन हेक्टेयर मैंग्रोव की सुरक्षा एवं पुनर्स्थापन

(2) Mangrove Climate Alliance

  • UAE एवं इंडोनेशिया द्वारा नेतृत्व।
  • ‘Blue Carbon’ के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन।

(3) UN Decade on Ecosystem Restoration (2021–2030)

  • देशों से degraded coastal ecosystems बहाल करने की अपील।

(4) Ramsar Convention & CBD

  • तटीय आर्द्रभूमि संरक्षण में मैंग्रोव को प्राथमिकता।

चुनौतियाँ

  • डेटा की कमी और मैंग्रोव health mapping का अभाव।
  • विभिन्न विभागों (मत्स्य, तटीय विकास, वन) के बीच समन्वय की कमी।
  • सामुदायिक सहभागिता के बिना संरक्षण के प्रयास सीमित।
  • तटीय नियोजन में मैंग्रोव को पर्याप्त प्राथमिकता नहीं।
  • ब्लू इकोनोमी परियोजनाओं के प्रसार से भूमि दबाव बढ़ रहा है।

आगे की राह (Way Forward)

(1) विधिक ढाँचे को मजबूत करना

  • वन संरक्षण अधिनियम 1980,
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 (EIA)
  • भारतीय वन अधिनियम 1927

इन कानूनों में मैंग्रोव संरक्षण के लिए स्पष्ट प्रविधानों को सुदृढ़ करना आवश्यक है।

(2) मैंग्रोव को स्थलीय वनों से जोड़ना (Landscape-level Management)

उदाहरण: सुंदरबन मैंग्रोव को सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान से जोड़कर एक बड़ा संरक्षित पारितंत्र बनाना।

(3) "मैंग्रोव जर्मप्लाज्म संरक्षण केंद्र" की स्थापना

  • संकटग्रस्त प्रजातियों के बीज, टिश्यू व नर्सरी संरक्षण को बढ़ावा।

(4) समुदाय आधारित प्रबंधन (CBM)

  • आजीविका आधारित संरक्षण मॉडल— Eco-friendly Aquaculture, Honey Value Chain, Ecotourism।

(5) वैज्ञानिक पुनर्स्थापन

  • प्रकृति-आधारित समाधान (Nature-based Solutions)।
  • hydrology-based restoration (tidal flow restoration)।

(6) राष्ट्रीय मैंग्रोव मानचित्रण मिशन

  • ड्रोन, LiDAR, GIS आधारित राष्ट्रीय मैंग्रोव health index।

(7) अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • ब्लू कार्बन मार्केट्स में भारत की भूमिका बढ़ाना।
  • IORA, ASEAN के साथ सहयोग।

निष्कर्ष

मैंग्रोव जलवायु परिवर्तन से लड़ने, तटीय समुदायों की रक्षा करने और जैव विविधता को संरक्षित रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण पारितंत्र हैं। भारत में MISHTI, SAIME जैसी पहलों ने शुरुआत तो की है, लेकिन जनसंख्या दबाव, विकास परियोजनाएँ और जलवायु परिवर्तन अभी भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं। भविष्य के लिए भारत को नीति-संवेदनशील योजना, सामुदायिक भागीदारी, और वैज्ञानिक पुनर्स्थापन तकनीकों पर जोर देना होगा ताकि मैंग्रोव आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सकें।

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