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समलैंगिक युगलों के चिकित्सीय अधिकार

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा व बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान तथा निकाय) 

 संदर्भ

दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से इस बारे में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है कि समलैंगिक युगलों को एक-दूसरे के लिए चिकित्सीय सहमति देने की अनुमति क्यों नहीं है जिससे कानूनी मान्यता एवं अधिकारों की कमी को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुईं हैं।

हालिया वाद 

  • एक समलैंगिक युगल ने आपात स्थिति में अपने साथी के लिए चिकित्सीय निर्णय लेने के अधिकार से वंचित किए जाने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की थी। 
  • याचिकाकर्ता के अनुसार अस्पताल ने भारतीय कानून के तहत उनके संबंधों को मान्यता न मिलने का हवाला देते हुए समलैंगिक साथी की सहमति लेने से इनकार कर दिया।
    • भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार एवं नैतिकता) विनियम, 2002 चिकित्सा प्रक्रियाओं/उपचार के लिए पति या पत्नी, नाबालिग के मामले में माता-पिता या अभिभावक या स्वयं रोगी की सहमति अनिवार्य करते हैं।

उच्च न्यायालय की टिप्पणी

  • उच्च न्यायालय ने चिकित्सीय अधिकारों में भेदभाव पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करता है।
  • इसने व्यक्तिगत स्वायत्तता के महत्त्व और स्वास्थ्य सेवा जैसे व्यावहारिक मामलों में समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता देने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण माँगा है कि-
    • समलैंगिक युगलों को चिकित्सा प्रतिनिधि या निकटतम रिश्तेदार के रूप में कार्य करने से बाहर क्यों रखा गया है?
    • क्या वर्तमान अस्पताल/आई.सी.यू. सहमति ढाँचे में गैर-पारंपरिक परिवारों को शामिल किया जा सकता है?

समलैंगिकता पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराधमुक्त कर दिया।
    • हालाँकि, LGBTQ+ व्यक्तियों के विवाह, गोद लेने एवं चिकित्सा सहमति जैसे नागरिक अधिकारों के संबंध में अभी भी स्पष्ट प्रावधानों का अभाव है।

उच्च न्यायालय की टिप्पणी का नीति एवं शासन के लिए निहितार्थ

  • समलैंगिक व्यक्तियों के व्यक्तिगत एवं चिकित्सा अधिकारों में कमियों को उजागर करता है।
  • यह स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिए व्यापक कानून या प्रशासनिक निर्देशों की आवश्यकता का संकेत देता है।
  • यह भारत में नागरिक संघ अधिकारों व समलैंगिक युगलों की कानूनी मान्यता पर बहस को प्रभावित कर सकता है।
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