(प्रारंभिक परीक्षा: महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट एवं घटनाक्रम)
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संदर्भ
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2025 में देश को सामान्य से 8% अधिक मानसूनी वर्षा प्राप्त हुई। यह वर्ष 2001 के बाद पांचवाँ सर्वाधिक और वर्ष 1901 से अब तक का 38वाँ सबसे उच्च आँकड़ा है। यह बारिश कृषि एवं जलसंग्रहण के लिए शुभ संकेत है जबकि उत्तर भारत समेत कई हिस्सों में भारी तबाही का कारण भी बनी है।
2025 में IMD की मानसून रिपोर्ट
- मानसून वर्षा अवधि: 1 जून से 30 सितंबर, 2025
- कुल औसत वर्षा: 93.7 सेमी. (सामान्य से 8% अधिक)
- क्षेत्रवार स्थिति
- उत्तर पश्चिम भारत: 27% अधिक (74.79 सेमी. 2001 के बाद सर्वाधिक)
- मध्य भारत: 15% अधिक
- दक्षिण प्रायद्वीप: 10% अधिक
- पूर्वोत्तर भारत: केवल 80% (108.9 सेमी. जो 1901 के बाद दूसरा न्यूनतम)
- मानसून की शुरुआत: 13 मई (अंडमान-निकोबार), 24 मई (केरल), पूरे देश में 29 जून (सामान्य तिथि से पहले)
अधिक वर्षा का कारण
- भूमध्यसागरीय क्षेत्र से आए तूफान : मानसूनी धारा से जुड़ने पर अत्यधिक वर्षा हुई।
- सात मानसूनी डिप्रेशन : ये अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी में निर्मित हुए।
- एक गहरा डिप्रेशन : यह सामान्य से अधिक दिनों (69 दिन, जबकि औसत 55 दिन) तक सक्रिय रहा है।
- जलवायु घटनाएँ : ला नीना (La Niña) की संभावित स्थिति एवं महासागरीय असामान्यताओं ने भी प्रभाव डाला है।
प्रभाव
लघुकालिक प्रभाव
- उत्तर भारत में बाढ़, भूस्खलन, जान-माल की हानि
- शहरी क्षेत्रों में जलभराव एवं बुनियादी ढाँचे को नुकसान
- बिजली व परिवहन सेवाओं पर दबाव
दीर्घकालिक प्रभाव
- कृषि उत्पादन में वृद्धि और सिंचाई की स्थिति में सुधार
- जलाशयों एवं भूजल स्तर में सुधार
- जलवायु परिवर्तन की वजह से मानसून की अनिश्चितता और चरम घटनाओं की पुनरावृत्ति की संभावना
चुनौतियाँ
- क्षेत्रीय असमानता: उत्तर-पश्चिम में अधिक बारिश, जबकि पूर्वोत्तर में कमी।
- बाढ़ प्रबंधन: नदियों का उफान और शहरी जल निकासी तंत्र की विफलता।
- कृषि जोखिम: कुछ इलाकों में अत्यधिक वर्षा से फसलें खराब।
- जलवायु अनिश्चितता: मानसून के पैटर्न का अनुमान कठिन होता जा रहा है।
- बुनियादी ढाँचे पर दबाव: सड़कों, पुलों और आवासों को नुकसान।
आगे की राह
- क्षेत्रीय जल प्रबंधन : अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों का पानी सूखा प्रभावित क्षेत्रों तक पहुँचाने की योजना
- बाढ़ और आपदा प्रबंधन : शहरी जल निकासी और नदी तटबंधों को मजबूत करना
- स्मार्ट कृषि रणनीति : मानसून आधारित फसलों के लिए वैज्ञानिक योजना
- जलवायु अनुकूलन : जलवायु परिवर्तन के अनुसार दीर्घकालिक रणनीति बनाना
- तकनीकी समाधान : मौसम पूर्वानुमान प्रणाली को और उन्नत करना