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माउंट केन्या वन पारिस्थितिकी तंत्र

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी एवं विश्व का भूगोल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

स्प्रिंगर नेचर जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2040 तक माउंट केन्या वन पारिस्थितिकी तंत्र (Mount Kenya Forest Ecosystem: MKFE) का 49–55% वनस्पति आवरण नष्ट हो जाने का अनुमान है। 

माउंट केन्या के बारे में 

  • परिचय : माउंट केन्या पूर्वी अफ्रीका में स्थित केन्या देश का सबसे ऊँचा पर्वत है जो माउंट किलीमंजारो के बाद अफ्रीका का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है।
  • भौगोलिक विशेषताएँ 
    • ज्वालामुखीय उत्पत्ति : माउंट केन्या एक निष्क्रिय ज्वालामुखी है जो लगभग 3 मिलियन वर्ष पूर्व विस्फोट के बाद शांत हुआ।
    • हिमनद (Glaciers) : पहले माउंट केन्या की चोटी पर कई हिमनद थे, परंतु जलवायु परिवर्तन के कारण अब अधिकांश समाप्त हो चुके हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव-विविधता : माउंट केन्या में विविध जलवायु क्षेत्र हैं जो इसकी ऊँचाई के साथ बदलते हैं, जिससे इसमें विभिन्न वनस्पति एवं जीव-समूह मिलते हैं:
    • प्रमुख जीव-जंतु (Fauna): हाथी, तेंदुआ, भालू, जंगली सूअर, अफ्रीकी भैंसा
    • ऊँचाई पर विशेषतकर पाए जाने वाले पक्षी, जैसे- सनबर्ड, जैक्सन फ्रेंकोलिन
    • स्थानिक प्रजातियाँ (Endemic Species), जैसे- माउंट केन्या हाइलैंड श्रू
  • पर्यावरणीय महत्त्व
    • केन्या के लिए जल संसाधन का प्रमुख स्रोत– देश की 40% ताजे जल की आपूर्ति
    • कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है। 
    • जलवायु विनियमन एवं वर्षा के लिए महत्वपूर्ण
    • जैव विविधता का केंद्र (Biodiversity Hotspot)

हालिया अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष 

  • बढ़ते तापमान, हाइड्रोलॉजिकल असंतुलन में वृद्धि के कारण माउंट केन्या के ग्लेशियर तेजी से गायब हो गए, जिसके परिणामस्वरूप निचले पर्वतीय वन, जो स्थिर नमी की स्थिति पर निर्भर हैं, सूखे के तनाव एवं बायोमास हानि के प्रति अधिक संवेदनशील हो रहे हैं। 
  • यह केन्या के लिए एक प्रमुख जैव-विविधता हॉटस्पॉट और महत्वपूर्ण जल स्रोत के रूप में कार्य करता है जो देश के 40% से अधिक मीठे पानी की आपूर्ति करता है।
  • वर्ष 2002 से 2021 तक देश ने अपने वन क्षेत्र में 14% की कमी का अनुभव किया, जिससे सालाना लगभग 5,000 हेक्टेयर का नुकसान हुआ। 
  • वन पारिस्थितिकी तंत्र के ह्रास को बढ़ावा देने वाले प्राथमिक कारक अनियमित चराई, कृषि विकास, लकड़ी की कटाई, लकड़ी का कोयला निर्माण एवं खराब वन प्रबंधन हैं।
  • शोध के निष्कर्ष वनों की कटाई, कृषि विकास एवं जलवायु से संबंधित तनावों, जैसे- अप्रत्याशित वर्षा और बढ़ते तापमान के संयुक्त प्रभावों पर जोर देते हैं।

प्रभाव एवं निहितार्थ

  • जलापूर्ति पर संकट → कृषि, पीने का पानी एवं पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित
  • जैव विविधता की क्षति
  • कार्बन सिंक की क्षमता में कमी
  • स्थानीय समुदायों की आजीविका एवं खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव

सुझाव 

  • वन संरक्षण के लिए कठोर नीतियाँ व कार्यान्वयन
  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी आधारित वनों का सह-प्रबंधन
  • पुनर्वनीकरण (Reforestation) और पारिस्थितिक पुनर्स्थापना
  • जलवायु अनुकूलन रणनीतियाँ, जैसे- जल संचयन, सूखा-प्रतिरोधी कृषि
  • उपग्रह निगरानी एवं डाटा-आधारित वन प्रबंधन निर्णय
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