चर्चा में क्यों?
- वर्ष 2025 की चौथी राष्ट्रीय लोक अदालत ने 2.59 करोड़ विवादों का सफलतापूर्वक समाधान किया।
- इसके साथ ही वर्ष 2022–23 से 2024–25 की अवधि में देशभर की विभिन्न लोक अदालतों द्वारा 23.5 करोड़ से अधिक मामलों का निपटान किया जा चुका है।
- यह उपलब्धि भारत में वैकल्पिक विवाद निपटान (ADR) प्रणाली की प्रभावशीलता और लोक अदालतों की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करती है।
लोक अदालत क्या है?
- लोक अदालत वह मंच है जहाँ न्यायालयों में लंबित मामलों अथवा अदालत में जाने से पूर्व के विवादों को आपसी सहमति (Mutual Settlement) के माध्यम से सुलझाया जाता है।
- यह व्यवस्था औपचारिक न्यायालयों की तुलना में कम खर्चीली, कम समय लेने वाली और सरल होती है तथा न्याय को आम नागरिकों के अधिक निकट लाती है।
संवैधानिक एवं विधिक आधार
1. संविधान का अनुच्छेद 39A
- राज्य को निर्देश देता है कि वह
- समान न्याय सुनिश्चित करे
- निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराए
- उद्देश्य: आर्थिक या सामाजिक बाधाओं के कारण कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित न रहे।
2. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987
- इसी अधिनियम के अंतर्गत
- लोक अदालतों की स्थापना
- NALSA, SLSA, DLSA और तालुका समितियों का गठन किया गया।
लोक अदालत की संरचना
लोक अदालत सामान्यतः निम्न सदस्यों से मिलकर बनती है—
- एक न्यायिक अधिकारी (कार्यरत या सेवानिवृत्त)
- एक अधिवक्ता
- एक सामाजिक कार्यकर्ता
यह संरचना कानूनी, सामाजिक और मानवीय दृष्टिकोण का संतुलन सुनिश्चित करती है।
किन मामलों का निपटारा होता है?
लोक अदालत में केवल समझौते योग्य (Compromiseable) मामलों का निपटारा किया जाता है, जैसे—
- दीवानी मामले – भूमि विवाद, धन वसूली
- पारिवारिक विवाद – तलाक, भरण-पोषण
- श्रम विवाद
- मोटर वाहन दुर्घटना मुआवजा
- चेक बाउंस – धारा 138 (परक्राम्य लिखत अधिनियम)
- उपयोगिता सेवाओं से जुड़े विवाद – बिजली, पानी, टेलीफोन बिल
- गंभीर आपराधिक मामले (हत्या, बलात्कार, आतंकवाद आदि) लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते।
लोक अदालत के निर्णय की प्रकृति
- लोक अदालत का निर्णय:
- अंतिम और बाध्यकारी होता है
- इसके विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती
- इसे सिविल कोर्ट की डिक्री के समान माना जाता है।
लोक अदालत की प्रमुख विशेषताएँ
- कोई अदालती शुल्क नहीं
- पहले से जमा शुल्क वापस किया जा सकता है
- त्वरित न्याय (Speedy Justice)
- सरल एवं अनौपचारिक प्रक्रिया
- दोनों पक्षों की सहमति अनिवार्य
लोक अदालत का महत्व
- न्यायालयों पर लंबित मामलों का बोझ कम करता है
- गरीब, ग्रामीण और कमजोर वर्गों को न्याय तक आसान पहुँच
- सौहार्दपूर्ण एवं सहयोगात्मक समाधान को बढ़ावा
- न्याय में विलंब (Delay in Justice) की समस्या का प्रभावी समाधान
- सामाजिक शांति और विश्वास निर्माण में सहायक
लोक अदालतों के प्रकार
1. राष्ट्रीय लोक अदालत (National Lok Adalat – NLA)
- वर्ष में कई बार आयोजित
- सुप्रीम कोर्ट से लेकर तालुका स्तर तक
- एक ही दिन, पूरे देश में एक साथ आयोजन
- उद्देश्य: अधिकतम मामलों का त्वरित निपटारा
2. स्थायी लोक अदालत (Permanent Lok Adalat – PLA)
- सार्वजनिक जन-उपयोगिता सेवाओं से जुड़े विवादों के लिए
- परिवहन, डाक, तार, बिजली, जल आपूर्ति आदि
- ₹ 1 करोड़ तक के मामलों का निपटारा
- समझौता विफल होने पर निर्णय देने की शक्ति भी होती है (विशेषता)
3. ई-लोक अदालत एवं मोबाइल/सचल लोक अदालत
- ई-लोक अदालत:
- डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से
- दूरस्थ क्षेत्रों में न्याय की पहुँच
- मोबाइल लोक अदालत:
- एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर
- ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में विवाद निपटान
लोक अदालत की 4-स्तरीय संगठनात्मक संरचना
|
स्तर
|
प्राधिकरण
|
प्रमुख अधिकारी
|
मुख्य कार्य
|
|
1
|
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)
|
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के अधीन
|
नीतिगत दिशा-निर्देश जारी करना, निगरानी एवं विनियमन
|
|
2
|
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA)
|
संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश / कार्यकारी अध्यक्ष
|
NALSA नीतियों का क्रियान्वयन, लोक अदालतों का आयोजन
|
|
3
|
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA)
|
जिला एवं सत्र न्यायाधीश
|
जिला-स्तरीय लोक अदालतें, कानूनी सहायता
|
|
4
|
तालुका विधिक सेवा समिति
|
सबसे वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी
|
तालुका/मंडल स्तर पर लोक अदालतें, नागरिकों का प्रथम संपर्क बिंदु
|