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नेल्ली नरसंहार : असम के इतिहास का दर्दनाक अध्याय

(प्रारंभिक परीक्षा: भारत का इतिहास, समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, विषय; भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ)

संदर्भ 

असम सरकार ने वर्ष 1983 के नेल्ली नरसंहार (Nellie Massacre) की जांच रिपोर्ट को नवंबर में आगामी विधानसभा सत्र में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है।

नेल्ली नरसंहार के बारे में

  • नेल्ली नरसंहार भारत में स्वतंत्रता पश्चात सबसे भीषण सांप्रदायिक हत्याकांडों में से एक है।
  • यह असम के नौगांव (अब नगांव) ज़िले के नेल्ली और आसपास के गांवों में 18 फरवरी, 1983 को हुआ था।
  • यह घटना असम आंदोलन के चरम पर हुई थी जब राज्य में ‘विदेशी नागरिकों’ यानी बांग्लादेशी मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन चल रहा था।

ऐतिहासिक घटनाक्रम

  • 18 फरवरी, 1983 को विधानसभा चुनाव के दिन स्थानीय मुस्लिम ग्रामीणों पर भीड़ ने हमला कर दिया।
  • यह हिंसा कथित रूप से गैर-असमिया (मुख्यतः बांग्लादेशी मूल के) मतदाताओं को निशाना बनाकर की गई थी।
  • विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, 2,000 से अधिक लोग मारे गए। हालांकि, गैर-सरकारी अनुमानों में यह संख्या 3,000 से 5,000 तक बताई जाती है।
  • अधिकांश पीड़ित महिलाएं और बच्चे थे।
  • शवों को नदियों एवं खेतों में फेंक दिया गया था और राहत व न्याय की प्रक्रिया लगभग नगण्य रही।

जांच आयोग

  • तत्कालीन असम सरकार ने इस नरसंहार की जांच के लिए न्यायमूर्ति त्रिभुवन प्रसाद तिवारी की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया था।
  • आयोग का उद्देश्य था:
    • हिंसा के कारणों की जांच करना
    • प्रशासनिक और राजनीतिक विफलताओं की पहचान करना
    • भविष्य में ऐसी घटनाओं की रोकथाम के उपाय सुझाना
  • आयोग ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1984 में सरकार को सौंपी किंतु यह कभी विधानसभा में प्रस्तुत नहीं की गई क्योंकि रिपोर्ट की प्रति पर आयोग के अध्यक्ष के हस्ताक्षर अनुपस्थित थे।

रिपोर्ट प्रस्तुत होने का महत्व

  • मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने घोषणा की है कि अब यह रिपोर्ट विधानसभा में रखी जाएगी, जिससे जनता को आधिकारिक रूप से उस समय की घटनाओं और निष्कर्षों की जानकारी मिल सकेगी।
  • यह कदम ऐतिहासिक न्याय और पारदर्शिता की दिशा में एक प्रयास माना जा रहा है।
  • रिपोर्ट सार्वजनिक होने से यह स्पष्ट हो सकेगा कि प्रशासनिक ढांचे एवं राजनीतिक निर्णयों में कहाँ कमी रही और कैसे ऐसी त्रासदी को भविष्य में रोका जा सकता है।

निष्कर्ष

नेल्ली नरसंहार न केवल असम, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक इतिहास पर एक गहरा कलंक है। चार दशक बाद इससे संबंधित रिपोर्ट का प्रस्तुत होना ऐतिहासिक सत्य और सामूहिक स्मृति के पुनर्मूल्यांकन का अवसर है। यह न केवल अतीत की त्रासदी को समझने में मदद करेगा, बल्कि भविष्य में सद्भावना और न्याय को सुदृढ़ करने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।

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