New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM

आर्सेनिक प्रदूषण की जांच के लिए नया सेंसर

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय घटनाक्रम, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)

संदर्भ

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), जोधपुर के शोधकर्ताओं ने जल में आर्सेनिक प्रदूषण की पहचान के लिए एक नया सेंसर विकसित किया है।

IIT जोधपुर द्वारा विकसित नया सेंसर

  • आर्सेनिक की जांच के लिए वर्तमान तकनीक : अब तक आर्सेनिक की जांच के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपिक एवं इलेक्ट्रोकेमिकल तकनीकों का उपयोग होता रहा है जो तकनीकी रूप से जटिल और बहुत महंगी होती हैं। 
  • प्रमुख विशेषताएँ एवं लाभ 
    • शोधकर्ताओं के अनुसार यह पहला ऐसा सेंसर है जो बिना किसी जटिल लैब उपकरणों या विशेषज्ञ तकनीशियन की मदद के सटीक व बार-बार दोहराए जा सकने वाले परिणाम प्रदान करता है।
    • नया उपकरण आधुनिक तकनीक से पानी में आर्सेनिक आयन की अत्यल्प मात्रा को भी तेजी से पहचान सकता है। यह सेंसर महज 3.2 सेकंड में 0.90 पार्ट्स पर बिलियन (ppb) तक की आर्सेनिक की मात्रा को माप सकता है।
    • इसे एक सर्किट बोर्ड एवं ‘आर्डुइनो’ मॉड्यूल से जोड़ा गया है जिससे यह तुरंत रियल टाइम में भी आँकड़े भेज सकता है। इसकी वजह से यह मौके पर ही जाँच के लिए उपयुक्त बन जाता है।

आर्सेनिक प्रदूषण : एक वैश्विक संकट

  • आर्सेनिक (As): यह एक विषैली एवं अर्ध-धात्विक (Metalloid) तत्व है जो विषैले रूप में प्रायः आर्सेनेट (As⁵⁺) और आर्सेनाइट (As³⁺) आयनों के रूप में जल में मिलता है। 
  • सुरक्षित मात्रा : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पेयजल में आर्सेनिक की सुरक्षित सीमा 10 पार्ट्स पर बिलियन (ppb) है।
  • आर्सेनिक प्रदूषण : जब प्राकृतिक या मानवीय गतिविधियों के कारण जल, मृदा या पर्यावरण में आर्सेनिक की मात्रा स्वास्थ्य व पारिस्थितिकी के लिए हानिकारक स्तर तक बढ़ जाती है तो इसे आर्सेनिक प्रदूषण कहा जाता है।
    • यह प्रदूषण विशेष रूप से भूजल में पाया जाता है और लंबे समय तक मनुष्यों तथा जीवों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है।
  • आर्सेनिक प्रदूषण के स्रोत : 
    • प्राकृतिक स्रोत: चट्टानों एवं खनिजों से भूजल में घुलना (Geogenic Process) एवं ज्वालामुखीय गतिविधियाँ
    • मानव निर्मित स्रोत: कीटनाशकों व उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग, खनन उद्योग और औद्योगिक अपशिष्ट, धातु शोधन संयंत्र एवं कोयला दहन आदि 
    • स्वास्थ्य पर प्रभाव : लंबे समय तक आर्सेनिक युक्त जल के सेवन से त्वचा, फेफड़े, मूत्राशय एवं किडनी का कैंसर, त्वचा पर घाव, पाचन संबंधी विकार व न्यूरोलॉजिकल समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • इसे ‘साइलेंट पॉयजनिंग’ (Silent Poisoning) के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसके प्रभाव लंबे समय में दिखाई देते हैं। 

वैश्विक परिप्रेक्ष्य एवं भारत की स्थिति 

  • एक हालिया अध्ययन के अनुसार, विश्व के 108 देशों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा WHO द्वारा निर्धारित सीमा (10 ppb) से अधिक पाई गई है।
  • एशिया के 18 करोड़ से अधिक लोग आर्सेनिक युक्त जल के सेवन से स्वास्थ्य संबंधी खतरों का सामना कर रहे हैं।
  • भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उत्तर प्रदेश एवं झारखंड आर्सेनिक प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित हैं।
  • 20 राज्य और 4 केंद्रशासित प्रदेशों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा स्वीकार्य सीमा से अधिक है।
  • अनेक स्थानों पर यह प्रदूषण 50–100 ppb से अधिक स्तर पर पाया गया है जो गंभीर स्वास्थ्य संकट का संकेत है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X