(प्रारंभिक परीक्षा: कला एवं संस्कृति) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य एवं वास्तुकला, 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय) |
संदर्भ
6 जुलाई, 2025 को महाराष्ट्र के पंढरपुर में चंद्रभागा नदी के तट पर हज़ारों वरकरी (वारकरी) संप्रदाय (भगवान विट्ठल के भक्त) के लोगों ने आषाढ़ी एकादशी का पूजन किया।
पंढरपुर यात्रा के बारे में
- यह महाराष्ट्र की एक प्रमुख धार्मिक एवं सांस्कृतिक यात्रा है जो भगवान विठोबा/विठ्ठल (भगवान विष्णु का रूप) को समर्पित है।
- इस यात्रा को ‘वारी यात्रा’ भी कहा जाता है।
- ‘वारी’ का अर्थ है- एक नियमित तीर्थ यात्रा।
- इस यात्रा में भाग लेने वाले तीर्थयात्री ‘वारीकर’ या ‘वारी भक्त’ कहलाते हैं।
- वारकरी संप्रदाय भक्ति आंदोलन का हिस्सा है जो 13वीं सदी में शुरू हुआ और जाति व्यवस्था को चुनौती देता है। यह सभी के लिए भक्ति व मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
- यह यात्रा 18 जून से लेकर 10 जुलाई तक आयोजित की जाती है।
यात्रा का प्रारंभ एवं मार्ग
यह यात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की एकादशी (आषाढ़ी एकादशी) को पंढरपुर (जिला सोलापुर) पहुँचती है।
- यात्रा मुख्य रूप से दो पवित्र स्थलों से प्रारंभ होती है:
- देहू : संत तुकाराम की पालखी (पुणे जिले से)
- अलंदी : संत ज्ञानेश्वर की पालखी (पुणे जिले से)
- संत परंपरा एवं संस्कृति
- इस यात्रा की परंपरा 13वीं सदी में संत ज्ञानेश्वर एवं संत तुकाराम ने स्थापित की।
- परंपरा के प्रमुख संत : संत नामदेव, संत मीराबाई, संत एकनाथ, संत जनाबाई, संत चोखामेला, संत सोयराबाई
सांस्कृतिक महत्त्व
यात्रा के दौरान वारकरी अभंग (भक्ति गीत), कीर्तन, भजन एवं पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ चलते हैं। यह महाराष्ट्र की लोक-सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
सामाजिक महत्त्व
- जाति, वर्ग, लिंग आदि से परे सभी लोग समान भाव से यात्रा में भाग लेते हैं।
- यह यात्रा सामाजिक समरसता, सहिष्णुता एवं समानता का संदेश देती है।
- यह एकजन-आंदोलन की तरह है जो हर वर्ग को जोड़ता है।
पर्यावरणीय प्रबंधन
- यह भारत की सबसे बड़ी पर्यावरण-अनुकूल तीर्थ यात्राओं में से एक मानी जाती है जिसमें प्रशासन की ओर से पानी, चिकित्सा, शौचालय एवं सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की जाती है।
- वर्ष 2023-24 से महाराष्ट्र सरकार ने इसे ‘हरित वारी’ (Green Wari) बनाने की पहल की है।
आर्थिक प्रभाव
स्थानीय व्यापार, पर्यटन व हस्तशिल्प को बढ़ावा मिलता है। लाखों तीर्थयात्री महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों से होते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है।
वर्तमान संदर्भ
- कोविड-19 महामारी के दौरान यात्रा को प्रतीकात्मक रूप में आयोजित किया गया।
- हाल के वर्षों में इसमें डिजिटल एवं ऑनलाइन माध्यमों का उपयोग भी बढ़ा है।
- इसे यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल करने का प्रस्ताव महाराष्ट्र सरकार ने दिया है।