(प्रारंभिक परीक्षा : विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न, किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी; खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन, बायो-टैक्नोलॉजी) |
संदर्भ
वैज्ञानिकों ने एशिया के 144 जंगली एवं घरेलू चावल की किस्मों के जीनोम के प्रमुख हिस्सों को एक साथ जोड़कर अपनी तरह का पहला ‘पैनजीनोम’ (Pan-genome) तैयार किया है।
क्या है चावल का पैनजीनोम
- परिचय : पैनजीनोम (Pan-genome) किसी एक प्रजाति की सभी किस्मों में मौजूद संपूर्ण जीनों का समुच्चय होता है। यह एक ऐसा संदर्भ जीनोम है जिसमें किसी प्रजाति (जैसे- चावल) की सभी उप-प्रजातियों के सामान्य एवं विशिष्ट जीनों को एक साथ मिलाकर रखा जाता है।
- यह वर्ष 2003 में प्रारंभ ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट की तरह ही है जिसने मानव प्रजाति की आनुवंशिक विविधता को व्यक्त करते हुए कई व्यक्तियों के जीनोम का मानचित्रण किया था।
- उद्देश्य : इसका उद्देश्य चावल की आनुवंशिक विविधता की एक समग्र तस्वीर प्रस्तुत करना है।
- प्रौद्योगिकी : इस शोध में वैज्ञानिकों ने पैकबायो हाई-फिडेलिटी (HiFi) अनुक्रमण प्रौद्योगिकी एवं कम्प्यूटेशनल विधियों की मदद से चावल की कुल 69,531 जीनों की पहचान की, जिसमें मुख्य (Core) जीन तथा जंगली चावल-विशिष्ट जीन शामिल हैं।
हालिया शोध के प्रमुख बिंदु
- उत्पत्ति एवं विकास की पहचान : इस अध्ययन ने इस परिकल्पना को समर्थन प्रदान किया है कि सभी एशियाई चावलों की उत्पत्ति ‘Or-IIIa’ नामक जंगली किस्म से हुई है जो जैपोनिका का पूर्वज है।
- जीन प्रवाह (Gene Flow) का गहन विश्लेषण : अध्ययन में घरेलू एवं जंगली किस्मों के बीच जीन प्रवाह की विस्तृत समीक्षा की गई, जिससे उनके प्राकृतिक चयन और मानव द्वारा घरेलू उपयोग किए जाने (Domestication) की प्रक्रियाएँ स्पष्ट हुईं।
- 20% जीन केवल जंगली चावल में पाए गए : ये विशेष जीन पर्यावरणीय अनुकूलन, पुनर्जनन क्षमता और विविधता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्हें भविष्य की बेहतर चावल किस्मों में उपयोग किया जा सकता है।
महत्व
- यह अध्ययन चावल में मौजूद आनुवंशिक विविधता के बारे में अधिक संपूर्ण समझ प्रस्तुत करता है।
- ये आनुवंशिक संसाधन चावल के पर्यावरण अनुकूलन, फेनोटाइपिक प्लास्टिसिटी एवं पुनर्जनन क्षमता की समझ में सुधार कर सकते हैं।
पैनजीनोम के संभावित लाभ
- उच्च उपज वाली किस्मों का विकास : उपज से संबंधित जीनों की पहचान करके नई किस्में विकसित की जा सकती हैं तथा विविध जलवायु परिस्थितियों में उपज स्थायित्व (Yield Stability) को बेहतर बनाया जा सकता है।
- जलवायु अनुकूलन : सूखा, बाढ़, गर्मी और लवणता जैसे तनावों से निपटने वाले सहिष्णुता जीनों की खोज व उनका उपयोग किया जा सकता है।
- इससे भविष्य के जलवायु लचीले किस्मों (Climate-resilient Varieties) का निर्माण किया जा सकेगा।
- रोग एवं कीट प्रतिरोध : परंपरागत एवं जंगली किस्मों में मौजूद प्रतिरोधक जीनों को पहचाना जा सकता है।
- इससे रोग-प्रतिरोधी चावल विकसित कर रासायनिक कीटनाशकों की निर्भरता को कम किया जा सकता है।
- जैव विविधता और पारंपरिक किस्मों का संरक्षण : एशिया में विविध देशी एवं स्थानीय किस्मों में पाए जाने वाले विशिष्ट जीनों को संरक्षित कर प्राकृतिक अनुकूलन की क्षमता को बनाए रखा जा सकता है।
चावल एवं जलवायु संकट के संदर्भ में भारत की स्थिति
- भारत में वर्ष 2024–25 में रिकॉर्ड औसतन 4.2 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता के साथ लगभग 220 मिलियन टन चावल का उत्पादन हुआ लेकिन अध्ययन बताते हैं कि बढ़ते तापमान के कारण न केवल उपज घटेगी, बल्कि कुछ किस्मों में आर्सेनिक अवशोषण भी बढ़ेगा।
- भारत का औसत तापमान वर्ष 1901 से अब तक 0.7°C बढ़ा है और वर्ष 2024 सबसे गर्म वर्ष रहा है।
- इस परिप्रेक्ष्य में यह ‘पैनजीनोम’ चावल की नई किस्में तैयार करने के लिए उच्च उपज और जलवायु-प्रतिरोधक क्षमता वाले गुणों की खोज में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकता है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने हाल ही में सांभा महसूरी (Samba Mahsuri) और MTU 1010 नामक दो जीन-संपादित किस्में विकसित की हैं, जिनमें अधिक उपज एवं सूखा-प्रतिरोध जैसी विशेषताएँ मौजूद हैं। हालाँकि, इन्हें अभी तक कृषि क्षेत्रों में जारी नहीं किया गया है।
निष्कर्ष
चावल का यह पहला एशियाई पैनजीनोम न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, बल्कि खाद्य सुरक्षा, जलवायु अनुकूलन और सतत कृषि विकास के लिए भी मील का पत्थर है। यह अध्ययन दर्शाता है कि कैसे जंगली एवं घरेलू किस्मों की आनुवंशिक जानकारी मिलाकर हम भविष्य की कृषि के लिए स्थायित्वपूर्ण और कुशल समाधान विकसित कर सकते हैं।