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यात्री सुरक्षा : स्लीपर बसें एवं संबंधित खतरे

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल के समय में राजस्थान (जैसलमेर-जोधपुर मार्ग), उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश (कुरनूल) जैसे राज्यों में भीषण बस दुर्घटना और बस में अग्निकांड की घटनाएँ देखने को मिली हैं। इन लक्ज़री स्लीपर बस में आग लगने से कई लोगों की जलकर मौत हो गई। ऐसे हादसे यह दर्शाते हैं कि स्लीपर बसें यात्रियों के लिए कितनी असुरक्षित होती जा रही हैं।

बस दुर्घटनाओं के कारण

  • असुरक्षित बॉडी मॉडिफिकेशन : अधिकतर बसें बड़े ब्रांड्स के इंजन और चेसिस पर आधारित होती हैं किंतु बॉडी लोकल वर्कशॉप्स में बनाई जाती है जहाँ सुरक्षा मानकों की अनदेखी होती है।
  • ज्वलनशील सामग्री का प्रयोग : पर्दों, बेड व इंटीरियर में सस्ते एवं अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग किया जाता है।
  • असुरक्षित ईंधन टैंक : कई बार अतिरिक्त फ्यूल टैंक फिट किए जाते हैं जिससे आग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
  • आपातकालीन निकास का अभाव : अधिकांश स्लीपर बसों में चार निर्धारित निकास (दो दरवाजे और दो विंडो) नहीं होते हैं जिससे यात्रियों का बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।
  • अप्रशिक्षित चालक : ड्राइवरों को आपात स्थिति में यात्रियों की सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है।

क्या है ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड्स (AIS) 

भारत के सड़क परिवहन मंत्रालय ने ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड्स (AIS) तैयार किए हैं जिनका उद्देश्य वाहनों की संरचनात्मक एवं अग्नि सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं-

  • संरचनात्मक मजबूती: बस की बॉडी के निर्माण में मजबूत एवं प्रमाणित सामग्री का उपयोग आवश्यक है।
  • फायर सेफ्टी: आग लगने पर अलार्म और फायर डिटेक्शन सिस्टम अनिवार्य हैं।
  • चार आपातकालीन निकास: दो मुख्य दरवाजे और दो अस्थायी विंडो आवश्यक मानी गई हैं।
  • क्रैश टेस्ट अनिवार्यता: बस की पूरी संरचना का परीक्षण आवश्यक है ताकि टक्कर के समय यात्री सुरक्षित रहें।
  • अग्निरोधक पदार्थों का उपयोग: पर्दे, सीटें व स्लीपर सामग्री आग प्रतिरोधी होनी चाहिए।

हालाँकि, वस्तुत: अधिकतर बॉडी बिल्डिंग वर्कशॉप्स द्वारा इन प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता है।

दुर्घटनाओं को रोकने के सुझाव

  • AIS मानकों का कड़ाई से पालन: सरकार को सभी स्लीपर बसों के लिए लाइसेंस तभी देना चाहिए जब वे AIS के सभी मानकों का पालन करें।
  • नियमित निरीक्षण: हर छह महीने में बसों का तकनीकी और अग्नि सुरक्षा परीक्षण अनिवार्य किया जाए।
  • ड्राइवर प्रशिक्षण: प्रत्येक ड्राइवर को आपातकालीन प्रबंधन और यात्रियों की सुरक्षा पर प्रशिक्षण दिया जाए।
  • यात्रियों को जानकारी देना: विमान यात्रा की तरह बस में भी सुरक्षा नियमों और निकास की जानकारी यात्रियों को दी जाए।
  • पुरानी बसों का पुनः प्रमाणीकरण: मौजूदा स्लीपर बस फ्लीट का पुनः परीक्षण और अप्रूवल के बिना संचालन प्रतिबंधित किया जाए।
  • अग्निशमन उपकरणों की अनिवार्यता: प्रत्येक बस में कार्यशील फायर डिटेक्टर और फायर एक्सटिंग्विशर होना चाहिए।

निष्कर्ष 

स्लीपर बस दुर्घटनाएँ केवल तकनीकी विफलता का परिणाम नहीं हैं बल्कि प्रणालीगत लापरवाही का प्रतीक हैं। सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा बनाए गए सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन और नियमित निगरानी ही ऐसे हादसों को रोक सकती है। यात्रियों की जान की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्लीपर बसों को ‘चलती मौत का जाल’ बनने से बचाना अब सरकार और उद्योग दोनों की संयुक्त जिम्मेदारी है।

सड़क सुरक्षा पर चौथा वैश्विक मंत्रिस्तरीय सम्मलेन

  • आयोजन: 18 से 20 फरवरी 2025 को मोरक्को के मराकेश में
  • उद्देश्य: वर्ष 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं में मौतों को आधा करने के सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में हुई प्रगति का आकलन करना
  • थीम: जीवन के प्रति प्रतिबद्धता
  • मेजबानी: मोरक्को सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा

पृष्ठभूमि

  • पहला सम्मेलन: वर्ष 2009 में रूस में हुआ था।
  • संयुक्त राष्ट्र की पहल: संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2010 में 2011-2020 के दशक को ‘सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई का दशक’ घोषित किया था।
  • दूसरा सम्मेलन: वर्ष 2015 में ब्राज़ील में हुआ था।
    • इस सम्मेलन में सतत विकास लक्ष्य (SDG) 3.6 को हासिल करने के लिए ब्रासीलिया घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए थे।
    • इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों एवं चोटों को आधा करना है।
  • तीसरा सम्मेलन : 19-20 फरवरी, 2020 को स्टॉकहोम (स्वीडन) में आयोजित
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