(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन) |
संदर्भ
भारत का फार्मास्युटिकल सेक्टर देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति में एक महत्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में उभरा है। अप्रैल, 2025 में इस क्षेत्र में 7.8% की उल्लेखनीय वृद्धि ने यह संकेत दिया है कि यह उद्योग न केवल तेजी से विकसित हो रहा है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में भी भारत की भूमिका मजबूत हो रही है।
भारत में फार्मा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति
- वैश्विक स्थान : भारत, मात्रा के आधार पर विश्व का तीसरा और मूल्य के आधार पर चौदहवाँ सबसे बड़ा दवा उत्पादक देश है।
- प्रमुख आपूर्तिकर्ता :भारत किफायती टीकों का भी प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जो विश्व के गरीब और विकासशील देशों के लिए जीवन रक्षक सिद्ध होते हैं।
- कारोबार वृद्धि : वर्ष 2023-24 में भारत के फार्मा उद्योग का कारोबार 4,17,345 करोड़ रुपये पर पहुँच चुका है, जो पिछले पांच वर्षों में लगभग 10% वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है।
- जेनेरिक दवाओं का निर्यात: भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है जो कि वैश्विक मांग का लगभग 20% पूरी करता है विशेष रूप से अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका में।
भारत में फार्मा क्षेत्र की संभावनाएँ
- वैश्विक आपूर्ति केंद्र बनने की क्षमता : भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है तथा किफायती टीकों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता भी है। वैश्विक स्वास्थ्य मांग के चलते भारत का यह स्थान और मजबूत होने की संभावना है।
- स्वास्थ्य सेवा का सशक्तिकरण : सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाओं की उपलब्धता से भारत के दूर-दराज और ग्रामीण क्षेत्रों तक प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाई जा रही हैं। इससे स्वास्थ्य सेवा की समावेशन और जनसामान्य की जीवन गुणवत्ता में सुधार संभव हो रहा है।
- निर्यात का विस्तार : भारत की दवाओं की मांग अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप और अन्य अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेजी से बढ़ रही है। इससे देश की विदेशी मुद्रा आय बढ़ेगी और फार्मा क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता मजबूत होगी।
- रोजगार सृजन : फार्मा उद्योग का छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी विस्तार है, जिससे वहाँ रोजगार के अवसर बढ़े हैं। इससे क्षेत्रीय विकास और आर्थिक समावेशन को बल मिलेगा।
- आयात निर्भरता में कमी : बल्क ड्रग पार्क्स और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से भारत कच्चे माल और सक्रिय दवा घटकों पर अपनी आयात निर्भरता कम कर रहा है। इससे लागत घटेगी और आपूर्ति श्रृंखला अधिक स्थिर होगी।
फार्मा क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
- अनुसंधान एवं विकास (R&D) में कमी : भारत का फार्मा सेक्टर जेनेरिक दवाओं में तो अग्रणी है, लेकिन नई दवाओं के शोध पर खर्च सीमित है, जिससे पेटेंट वाली नई दवाओं का उत्पादन कम होता है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाता है।
- गुणवत्ता नियंत्रण और मानकों की अनियमितता : दवाओं की गुणवत्ता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है, खासकर जब निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन जरूरी होता है।
- कई बार घटिया या नकली दवाओं के कारण भारत की छवि प्रभावित होती है।
- उदाहरण : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में निर्मित कफ सिरप को पश्चिमी अफ्रीकी देश गाम्बिया में 66 बच्चों की तीव्र किडनी विफलता और मृत्यु का कारण बताया है।
- कच्चे माल (API) पर आयात निर्भरता : फार्मास्युटिकल क्षेत्र में आवश्यक सक्रिय दवा घटकों (API) का लगभग 60-70% आयात पर निर्भर है, विशेषकर चीन से, जो आपूर्ति श्रृंखला में जोखिम उत्पन्न करता है।
- विनियामक जटिलताएं : फार्मा क्षेत्र में नियम और मंजूरी लेने की प्रक्रिया धीमी और जटिल है, जिससे नए उत्पादों और तकनीकों के बाजार में आने में देरी होती है।
- यह नवाचार और निवेश को बाधित करता है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा का दबाव : चीन, अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों से भारत को लागत, गुणवत्ता और नवाचार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
- लगातार तकनीकी उन्नयन और लागत नियंत्रण आवश्यक है।
- मानव संसाधन की कमी और कौशल विकास की आवश्यकता : फार्मास्युटिकल अनुसंधान और उच्च तकनीकी उत्पादन के लिए कुशल वैज्ञानिक और मानव संसाधन की कमी है।
प्रमुख सरकारी पहल
- प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJP) : यह योजना सस्ती, गुणवत्ता युक्त जेनेरिक दवाओं को पूरे देश में उपलब्ध कराने पर केंद्रित है।
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI) : यह फार्मा उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता है ।
- बल्क ड्रग पार्क्स योजना : इसके तहत गुजरात, हिमाचल प्रदेश, और आंध्र प्रदेश में बड़े स्तर पर बल्क ड्रग पार्क्स का निर्माण किया जा रहा है। जिससे कच्चे माल के उत्पादन की लागत कम करके और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके।
- फार्मास्युटिकल्स सेक्टर इनिशिएटिव (SPI) : यह रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग द्वारा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित योजना है।
आगे की राह
- गुणवत्ता नियंत्रण और नियामक सुधार : गुणवत्ता मानकों को और सख्त करना और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाए रखना।
- नियामक प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाना ताकि नई दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के लिए तेजी से मंजूरी मिल सके।
- अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश बढ़ाना : सरकारी और निजी दोनों स्तरों पर R&D के लिए ज्यादा बजट आवंटित करना।
- कच्चे माल (Raw Material) की उपलब्धता सुनिश्चित करना : बल्क ड्रग पार्क्स और स्थानीय कच्चे माल उत्पादन को और विस्तार देना ताकि आयात निर्भरता पूरी तरह खत्म हो सके।
- मानव संसाधन का विकास : फार्मा क्षेत्र के लिए विशेष शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम चलाना।
- नवाचार और स्टार्टअप इकोसिस्टम को प्रोत्साहन : फार्मा-टेक स्टार्टअप्स के लिए निवेश और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
- क्लीनिकल ट्रायल्स और दवा विकास में नवाचार को प्रोत्साहित करना।
- निर्यात बाजारों का विस्तार और विविधीकरण : अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे नए बाजारों में पहुंच बढ़ाना।
- ट्रेड और द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से भारतीय दवाओं की पहुंच आसान बनाना।