- भारत, जिसे विश्व भर में "फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड" कहा जाता है, दवा निर्माण और निर्यात में एक अग्रणी देश है।
- भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग न केवल देश की जरूरतों को पूरा करता है बल्कि अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, और एशिया के देशों में सस्ती और प्रभावी दवाओं की आपूर्ति करता है।
- COVID-19 महामारी के समय भारत ने जिस प्रकार से विश्व को वैक्सीन, जेनेरिक दवाएं और दवा सामग्री उपलब्ध करवाई, उसने इस क्षेत्र की वैश्विक भूमिका को और सुदृढ़ किया।
- इस पृष्ठभूमि में, भारत सरकार ने औषध क्षेत्र में उत्पादन को प्रोत्साहित करने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बनने के लिए "उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना" (PLI Scheme) लागू की।

PLI -योजना
विशेषता
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विवरण
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योजना का नाम
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उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI) – औषध क्षेत्र
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प्रारंभ वर्ष
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वित्त वर्ष 2020-21
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अवधि
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2020-21 से 2028-29 तक
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प्रकार
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केंद्रीय क्षेत्रक की योजना
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नोडल एजेंसी
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भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI)
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कुल प्रोत्साहन राशि
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₹15,000 करोड़ (लगभग)
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लाभार्थी
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MSMEs और गैर-MSMEs, LLPs, पार्टनरशिप फर्म, प्राइवेट लिमिटेड कंपनियाँ आदि
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उद्देश्य
- भारत की औषध निर्माण क्षमताओं को सुदृढ़ करना।
- वैश्विक औषध मूल्य श्रृंखला में भारत की भागीदारी को मजबूत करना।
- नवाचार आधारित उत्पादों का निर्माण और निर्यात।
- वैश्विक चैंपियन कंपनियों का विकास करना।
- भारत को उच्च गुणवत्ता, लागत प्रभावी औषध उत्पादों के लिए प्रमुख केंद्र बनाना।
पात्र लाभार्थी
इस योजना में कई तरह की कंपनियों और संस्थाओं को शामिल किया गया है, जैसे:
- स्वामित्व फर्म (Proprietary Firms)
- साझेदारी फर्म (Partnership Firms)
- सीमित देयता भागीदारी (LLP)
- प्राइवेट/पब्लिक लिमिटेड कंपनियाँ
- MSME और गैर-MSME दोनों प्रकार की इकाइयाँ
उत्पादों की श्रेणियाँ
इस योजना के तहत तीन प्रमुख उत्पाद श्रेणियाँ निर्धारित की गई हैं:
- श्रेणी 1 (उच्च प्रौद्योगिकी उत्पाद): इस श्रेणी में बायोफार्मास्यूटिकल्स, जटिल जेनेरिक दवाएं, पेटेंट दवाएं, और ऑर्फन ड्रग्स शामिल हैं। इस श्रेणी का उद्देश्य भारत को उच्च तकनीक आधारित दवाओं का वैश्विक उत्पादक बनाना है।
- श्रेणी 2 (API/KSM/Drug Intermediates): इसमें वे सक्रिय औषधीय घटक (APIs), की-स्टार्टिंग मटेरियल (KSMs), और ड्रग इंटरमीडिएट्स (DIs) शामिल हैं, जो अन्य PLI योजनाओं में शामिल नहीं हैं। इस श्रेणी का उद्देश्य API उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।
- श्रेणी 3 (अन्य उत्पाद): इस श्रेणी में वे उत्पाद आते हैं जो श्रेणी 1 और 2 में नहीं आते। इस श्रेणी का लक्ष्य दवा उत्पादन में विविधता लाना और दवाओं की उपलब्धता बढ़ाना है।
वित्तीय प्रोत्साहन की संरचना
श्रेणी
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प्रारंभिक प्रोत्साहन दर
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न्यूनतम दर
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प्रोत्साहन की अवधि
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श्रेणी 1
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10%
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6% तक कम
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6 वर्ष
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श्रेणी 2
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10%
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6% तक कम
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6 वर्ष
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श्रेणी 3
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5%
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3% तक कम
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6 वर्ष
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विशेष: प्रोत्साहन वृद्धिशील बिक्री (incremental sales) के आधार पर मिलेगा, जिसका आधार वर्ष 2019-20 रखा गया है।
किया गया व्यय

नया संयंत्र, मशीनरी, उपकरण
- उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक मशीनों और तकनीकों में निवेश।
अनुसंधान एवं विकास (R&D)
- नई औषध संरचनाओं और नवाचारों के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान।
- R&D के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी उत्पादों का निर्माण।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Technology Transfer - ToT)
- उन्नत तकनीकों को घरेलू इकाइयों तक पहुँचाना।
- अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से तकनीकी साझेदारी को बढ़ावा देना।
उत्पाद पंजीकरण
- भारत और अन्य देशों में दवाओं का औपचारिक पंजीकरण कराना।
- निर्यात के लिए आवश्यक विनियामक अनुमोदन प्राप्त करना।
भवन निर्माण
- प्रयोगशालाओं, क्लीन रूम्स और विनिर्माण इकाइयों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास।
योजना के संभावित प्रभाव
आर्थिक प्रभाव
- फार्मा क्षेत्र में निवेश और रोजगार में वृद्धि।
- भारत के फार्मा निर्यात में बढ़ोत्तरी।
- आयात पर निर्भरता में कमी, विशेषकर API क्षेत्र में।
वैज्ञानिक एवं नवाचार प्रभाव
- अनुसंधान-आधारित दवा उत्पादन में वृद्धि।
- नवाचार को प्रोत्साहन, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सुधार।
सामाजिक प्रभाव
- आम जनता के लिए दवाओं की सुलभता और किफायती दर पर उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशनों को समर्थन।
चुनौतियाँ
- अवसंरचनात्मक बाधाएं: R&D सुविधाओं और लॉजिस्टिक्स में सुधार की आवश्यकता।
- कौशल की कमी: उन्नत तकनीकी प्रक्रियाओं के लिए कुशल मानव संसाधन की कमी।
- नियामकीय पारदर्शिता: ड्रग पंजीकरण प्रक्रिया की धीमी गति।
- वित्तीय पहुँच: विशेषकर MSMEs के लिए क्रेडिट की सुलभता।
नीति सिफारिशें
- MSME उन्मुख वित्तीय सहायता को और सरल बनाना।
- टेक्नोलॉजी क्लस्टर्स और बायो-इन्क्यूबेटर हब की स्थापना।
- नियामकीय सुधार के जरिए अनुमोदन प्रक्रिया में तेजी लाना।
- कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार।