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मानसून का समयपूर्व आगमन : कारण एवं प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का भूगोल)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ)

संदर्भ

भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने 24 मई, 2025 को केरल में दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन की घोषणा की, जो सामान्य तिथि 1 जून से आठ दिन पहले थी। जून से सितंबर की अवधि तक चलने वाला मानसून भारत की 70% से अधिक वार्षिक वर्षा के लिए जिम्मेदार है, जो इसे कृषि, जल प्रबंधन और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण बनाता है।

मानसून आगमन की घोषणा के मानदंड

IMD द्वारा लगभग 10 मई के बाद निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर मानसून के आगमन की घोषणा की जाती है:

  • वर्षा: दक्षिण भारत के 14 मौसम स्टेशनों (जैसे मिनिकॉय, तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, मैंगलोर) में से कम से कम 60% को लगातार दो दिनों तक 2.5 मि.मी. या अधिक वर्षा दर्ज करनी चाहिए।
  • हवा का प्रवाह: पश्चिमी हवाएं 15-20 नॉट्स (27-37 किमी/घंटा) की गति के साथ 925 मिलीबार पर चलनी चाहिए और 600 मिलीबार तक गहराई बनाए रखनी चाहिए।
  • बहिर्गामी दीर्घतरंगीय विकिरण (OLR): सैटेलाइट से प्राप्त ओ.एल.आर. मान 200 वाट प्रति वर्ग मीटर से कम होना चाहिए, जो वर्षा के लिए अनुकूल वायुमंडलीय स्थिति दर्शाता है।
  • वर्ष 2025 में ये मानदंड एक साथ पूरे हुए, जिसके परिणामस्वरूप केरल, लक्षद्वीप, माहे और अन्य क्षेत्रों में मानसून की शुरुआत हुई

मानसून समयपूर्व आगमन के कारण 

  • मैडन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO): यह भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाला एक जटिल महासागरीय-वायुमंडलीय घटना है। MJO में बादल, हवा और दबाव की गड़बड़ी 4-8 मीटर/सेकंड की गति से पूर्व की ओर बढ़ती है, जो 30-60 दिनों में विश्व का चक्कर लगा सकती है। अनुकूल चरण में, यह मानसून के दौरान भारत में वर्षा को बढ़ाता है।
  • मास्करीन हाई: दक्षिणी हिंद महासागर में मास्करीन द्वीपों के आसपास उच्च दबाव का क्षेत्र, जो भारत के पश्चिमी तट पर भारी वर्षा के लिए जिम्मेदार है।
  • संवहन (Convection): वायुमंडल में गर्मी और नमी का ऊर्ध्वाधर परिवहन बढ़ने से वर्षा होती है। उदाहरण के लिए, हरियाणा में एक संवहनीय प्रणाली ने दिल्ली में वर्षा को प्रेरित किया।
  • सोमाली जेट: मॉरीशस और उत्तरी मेडागास्कर से शुरू होने वाली यह निम्न-स्तरीय हवा अफ्रीका के पूर्वी तट को पार कर अरब सागर और भारत के पश्चिमी तट तक पहुंचती है। मजबूत सोमाली जेट मानसून की हवाओं को मजबूत करता है।
  • निम्न-ऊष्मा : गर्मियों में सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में जाने से अरब सागर में निम्न दबाव क्षेत्र विकसित होता है। पाकिस्तान और आसपास के क्षेत्रों में मजबूत निम्न-उष्मीय मानसून गर्त के साथ नम हवा को खींचता है, जो अच्छी वर्षा को प्रेरित करता है।
  • मानसून गर्त: यह निम्न-उष्मीय से लेकर उत्तरी बंगाल की खाड़ी तक फैला एक लंबा निम्न दबाव क्षेत्र है, जो जून-सितंबर में वर्षा का कारण बनता है।
  • अन्य कारक : अरब सागर में चक्रवाती गठन (मानसून ऑनसेट वोर्टेक्स) और दबाव प्रवणता ने भी समय-पूर्व आगमन को बढ़ावा दिया।

वर्ष 2025 में मानसून का कवरेज

  • 24 मई को मानसून ने दक्षिण-पश्चिम और पूर्व-मध्य बंगाल की खाड़ी, मालदीव, कोमोरिन क्षेत्र, दक्षिण और मध्य अरब सागर, केरल, लक्षद्वीप और माहे को कवर किया। यह पूर्वोत्तर भारत (मिजोरम), दक्षिणी और तटीय कर्नाटक, और तमिलनाडु (उत्तरी क्षेत्रों को छोड़कर) में भी पहुंचा।
  • सामान्य रूप से मानसून 5 जून के आसपास मध्य केरल और कर्नाटक को पार करता है, लेकिन वर्ष 2025 में यह 10 दिन पहले 25 मई तक, यह पश्चिम-मध्य और पूर्व-मध्य अरब सागर, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, और मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड के कुछ हिस्सों में आगे बढ़ा। 

मानसून के समय पूर्व आगमन के प्रभाव

  • कृषि : जल्दी मानसून खरीफ फसलों (जैसे धान, मक्का, कपास, दालें) की बुआई के लिए अनुकूल हो सकता है, क्योंकि समय पूर्व वर्षा मिट्टी को नम करती है और बुआई के लिए उपयुक्त स्थिति बनाती है। इससे फसल उत्पादकता बढ़ सकती है। हालांकि, अत्यधिक या असमान वर्षा से बाढ़ और फसल क्षति का जोखिम बढ़ सकता है।
  • जल संसाधन : जल्दी मानसून जलाशयों, नदियों और भूजल स्तर को पुनर्जनन करने में मदद कर सकता है। यह सूखे की स्थिति को कम करता है और सिंचाई, पेयजल और जलविद्युत उत्पादन के लिए जल उपलब्धता बढ़ाता है।
  • अर्थव्यवस्था :  भारत की 50% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है, और मानसून की समयपूर्व शुरुआत ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती है। अच्छी वर्षा से फसल उत्पादन बढ़ता है, जिससे किसानों की आय और बाजार में खाद्य आपूर्ति में सुधार होता है।
    • दूसरी ओर, असंतुलित वर्षा से बाढ़ या सूखे की स्थिति आर्थिक नुकसान, जैसे बुनियादी ढांचे को क्षति और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, का कारण बन सकती है।
  • पर्यावरण और जलवायु :  समयपूर्व वर्षा गर्मी के प्रभाव को कम कर सकती है, जिससे तापमान में राहत मिलती है और गर्मी से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं कम होती हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की अनिश्चितता (जैसे समयपूर्व या अनियमित आगमन) चरम मौसमी घटनाओं, जैसे बाढ़ और सूखा, की आवृत्ति को बढ़ा सकती है।

महत्त्व

  • आर्थिक महत्व: मानसून भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है, क्योंकि यह कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आय को सीधे प्रभावित करता है। समयपूर्व मानसून से बुआई का समय पहले शुरू हो सकता है, जिससे फसल चक्र में सुधार हो सकता है। साथ ही यह खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद करता है, क्योंकि पर्याप्त वर्षा खाद्य आपूर्ति को स्थिर करती है।
  • जलवायु परिवर्तन और नीति निर्माण: समयपूर्व मानसून जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दर्शाता है, जैसे मैडन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO), मास्करीन हाई, और सोमाली जेट की तीव्रता में बदलाव। यह जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • क्षेत्रीय विविधता और प्रबंधन : मानसून का असमान वितरण (जैसे तमिलनाडु के उत्तरी क्षेत्रों में देरी) क्षेत्र-विशिष्ट नीतियों और संसाधन प्रबंधन की आवश्यकता को दर्शाता है। समयपूर्व आगमन से दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्यों में जल्दी कृषि गतिविधियां शुरू हो सकती हैं, लेकिन उत्तरी क्षेत्रों में देरी से क्षेत्रीय असमानता बढ़ सकती है।

निष्कर्ष

वर्ष 2025 में मानसून का समयपूर्व आगमन भारत की कृषि, जल संसाधन और अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संभावनाएं लाता है, बशर्ते वर्षा का वितरण और मात्रा संतुलित रहे। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती अनिश्चितता के लिए बेहतर पूर्वानुमान, आपदा तैयारियों और क्षेत्र-विशिष्ट नीतियों की आवश्यकता है। 

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