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वर्तमान डिजिटल युग में गोपनीयता से संबंधित मुद्दे

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता)

संदर्भ

डिजिटल युग ने लोगों के बातचीत करने, अभिव्यक्ति करने एवं अपने जीवन को साझा करने के तरीके को बदल दिया है। इससे यद्यपि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विस्तार हुआ है किंतु यह गोपनीयता संबंधी चुनौतियाँ भी उत्पन्न करता है। 

डिजिटल युग से संबंधित मुद्दे 

डिजिटल प्रदर्शन का उदय

  • इंस्टाग्राम, एक्स (ट्विटर) और यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म निरंतर दृश्यता को बढ़ावा देते हैं, जो मानवीय अनुभवों को सामग्री (Content) में बदल देते हैं।
  • व्यक्तिगत क्षण, जैसे- जन्मदिन, शोक, विरोध आदि प्राय: मान्यता, लाइक या प्रभाव के लिए साझा किए जाते हैं।

डिजिटल सतर्कता में वृद्धि

  •  यह  एक तरह का अनौपचारिक न्याय है जहाँ ऑनलाइन उपयोगकर्ता नैतिक प्रवर्तक के रूप में कार्य करते हैं। 
    • औपचारिक प्रणालियों के विपरीत यह अटकलों पर आधारित है, जिसके त्वरित और प्राय: अपरिवर्तनीय परिणाम होते हैं।

गोपनीयता का क्षरण

  • वर्तमान में व्यक्ति पोस्ट, बायोमेट्रिक टूल, लोकेशन-शेयरिंग और फिटनेस ऐप्स के माध्यम से निजी डाटा को स्वेच्छा से साझा कर रहे हैं।
  • निगरानी पूंजीवाद (Surveillance Capitalism) फल-फूल रहा है क्योंकि तकनीकी कंपनियाँ व्यक्तिगत व्यवहार एवं प्राथमिकताओं का मुद्रीकरण कर रही हैं।

सामाजिक प्रभाव

  • सेल्फ़-सेंसरशिप, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और पहचान प्रदर्शन (क्यूरेटेड डिजिटल सेल्फ) में वृद्धि।
    • सेल्फ़-सेंसरशिप से तात्पर्य आलोचना से बचने के लिए अपनी कथनी एवं करनी पर नियंत्रण रखना है। 
  • भावनाओं की प्रामाणिकता व प्रदर्शनात्मकता के बीच की रेखाओं का धुंधला होना।
  • लेटरल सर्विलांस, डॉक्सिंग, साइबरबुलिंग व डाटा उल्लंघन जैसे मुद्दों में वृद्धि।
    • लेटरल सर्विलांस वह घटना है जहाँ व्यक्ति डिजिटल उपकरणों के माध्यम से एक-दूसरे की निगरानी करने के साथ ही उन्हें उजागर करते हैं।

कानूनी और नैतिक कमियाँ

  • भारत में एक व्यापक डाटा सुरक्षा कानून का अभाव है (हालाँकि, डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम, 2023 एक शुरुआत है)।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचनात्मक आत्मनिर्णय के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
    • सूचनात्मक आत्मनिर्णय व्यक्तियों का अपने व्यक्तिगत डाटा को नियंत्रित करने का मौलिक अधिकार है जिसमें वे यह निर्णय लेते हैं कि कब, कहाँ और किस उद्देश्य से इसे एकत्रित, उपयोग व प्रकट किया जा सकता है।

सुझाव

  • ज़िम्मेदारीपूर्ण डिजिटल शेयरिंग को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल साक्षरता अभियान
  • उपयोगकर्ता की सहमति और शिकायत निवारण तंत्र सहित मज़बूत डाटा सुरक्षा ढाँचा
  • प्लेटफ़ॉर्म को नैतिक एल्गोरिथम डिज़ाइन लागू करने, निगरानी पर अंकुश लगाने और नाबालिगों की सुरक्षा के लिए प्रोत्साहित करना
    • डिजिटल न्यूनतावाद और गोपनीयता के प्रति जागरूक व्यवहार की संस्कृति को बढ़ावा देना
  • डिजिटल न्यूनतावाद प्रौद्योगिकी के जानबूझकर एवं सोच-समझकर उपयोग को प्रोत्साहित करता है। इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी के लाभों को अधिकतम और इसकी कमियों को न्यूनतम करना है।
  • पत्रकारिता को अपनी गेटकीपिंग भूमिका की पुष्टि करनी चाहिए, वायरल आकर्षण की तुलना में सत्यापन और आनुपातिकता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

निष्कर्ष

डिजिटल युग में गोपनीयता केवल एक कानूनी चिंता का विषय नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक एवं नैतिक चिंता का विषय है। भारत को एक मानवीय, अधिकार-आधारित डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना चाहिए जहाँ दृश्यता बाध्यता के बजाय एक विकल्प हो।

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