(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में आवारा कुत्तों की समस्या गंभीर हो चुकी है, जो सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा बन रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने 11 अगस्त, 2025 को इस समस्या से निपटने के लिए सख्त आदेश जारी किए, जिसने व्यापक बहस छेड़ दी है।
दिल्ली में आवारा कुत्तों की स्थिति
- संख्या : दिल्ली-NCR में अनुमानित 10 लाख आवारा कुत्ते हैं।
- वितरण : ये कुत्ते आवासीय क्षेत्रों, स्कूलों, बाजारों, मंडियों एवं सड़कों पर पाए जाते हैं।
- प्रकृति : कुछ कुत्ते शांत होते हैं किंतु कई रेबीज से ग्रस्त या आक्रामक होते हैं, जो जोखिम में वृद्धि करता है।
- सामाजिक प्रभाव : कई निवासी इन कुत्तों को खाना खिलाते हैं, जबकि अन्य इनसे डरते हैं, जिससे सामाजिक तनाव पैदा होता है।
खतरे और समस्याएँ
- कुत्तों के हमले : हाल के मामलों में दिल्ली में कुत्तों के हमलों से बच्चों समेत कुछ लोगों की मृत्यु हुई और कई लोग घायल हुए तथा रेबीज से प्रभावित हुए।
- रेबीज का खतरा : रेबीज एक जानलेवा बीमारी है और दिल्ली में जनवरी-जून 2025 में 35,198 कुत्तों के काटने के मामले और 49 रेबीज के मामले दर्ज हुए।
- सार्वजनिक भय : विशेषकर बच्चे एवं बुजुर्ग जैसे लोग सड़कों पर सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं।
- स्वच्छता : आवारा कुत्ते कचरे को फैलाते हैं, जिससे स्वच्छता की समस्या बढ़ती है।
सर्वोच्च न्यायालय का हालिया आदेश
- प्रकृति : 11 अगस्त, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान (suo motu) मामले में दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश दिया।
- मुख्य निर्देश : सभी आवारा कुत्तों को तुरंत पकड़कर शेल्टर में रखा जाए और उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर वापस न छोड़ा जाए।
- प्रभावित क्षेत्र : दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद एवं फरीदाबाद।
प्रमुख निर्देश
- शेल्टर निर्माण :
- पहले चरण में 5,000 कुत्तों के लिए शेल्टर बनाए जाएँ, जिसमें पर्याप्त कर्मचारी हों।
- शेल्टर में नसबंदी एवं टीकाकरण की सुविधा होनी चाहिए।
- सी.सी.टी.वी. निगरानी : शेल्टर में सी.सी.टी.वी. लगाए जाएँ ताकि कुत्तों को छोड़ा न जाए।
- हेल्पलाइन : कुत्तों के हमले की शिकायत के लिए हेल्पलाइन शुरू हो और 4 घंटे के भीतर कार्रवाई हो।
- कठोर कार्रवाई : कुत्तों को पकड़ने में बाधा डालने वालों पर अवमानना की कार्रवाई होगी।
- रेबीज वैक्सीन : रेबीज वैक्सीन की उपलब्धता और मासिक उपचार के आंकड़े न्यायालय को सौंपे जाएँ।
- रिकॉर्ड रखरखाव : पकड़े गए कुत्तों का दैनिक रिकॉर्ड रखा जाए और न्यायालय में प्रस्तुत किया जाए।
आदेश का महत्व
- सार्वजनिक सुरक्षा : यह आदेश बच्चों एवं बुजुर्गों को रेबीज व कुत्तों के हमलों से बचाने में मदद करेगा।
- सामाजिक विश्वास : लोग सड़कों पर सुरक्षित महसूस करेंगे, जिससे सामाजिक भय कम होगा।
- नई नीति : यह अन्य राज्यों के लिए मिसाल बन सकता है जहाँ आवारा कुत्तों की समस्या है।
- प्रशासनिक जवाबदेही : न्यायालय का कठोर रुख प्रशासन को त्वरित कार्रवाई के लिए प्रेरित करेगा।
पशु संगठनों द्वारा विरोध
- आलोचना : पशु अधिकार संगठनों (जैसे- PETA व FIAPO) ने इसे ‘अव्यावहारिक’ और ‘अमानवीय’ बताया है।
- लागत : एक अनुमान के अनुसार 10 लाख कुत्तों को शेल्टर में रखने और खिलाने में ₹15,000 करोड़ तथा साप्ताहिक ₹5 करोड़ की लागत आएगी।
- कानूनी उल्लंघन : संगठनों का कहना है कि यह आदेश एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम, 2023 का उल्लंघन करता है जो नसबंदी एवं टीकाकरण के बाद कुत्तों को वापस छोड़ने की अनुमति देता है।
- स्वास्थ्य जोखिम : भीड़भाड़ वाले शेल्टर में बीमारियों और तनाव का खतरा बढ़ सकता है।
चुनौतियाँ
- बुनियादी ढांचा : 10 लाख कुत्तों के लिए शेल्टर बनाना और उनका रखरखाव एक बड़ी चुनौती है।
- वित्तीय बोझ : शेल्टर, कर्मचारी, भोजन एवं वैक्सीन की लागत बहुत अधिक है।
- प्रशिक्षित कर्मचारी : नसबंदी, टीकाकरण एवं देखभाल के लिए विशेषज्ञों की कमी है।
- सामाजिक विरोध : पशु प्रेमी एवं कार्यकर्ता इस आदेश का विरोध कर सकते हैं, जिससे लागू करना मुश्किल हो सकता है।
- कानूनी जटिलताएँ : ABC नियमों के साथ टकराव और संभावित कानूनी चुनौतियाँ भी हैं।
आगे की राह
- मानवीय दृष्टिकोण : कुत्तों को पकड़ने और शेल्टर में रखने में क्रूरता से बचना
- नसबंदी और टीकाकरण : बड़े पैमाने पर नसबंदी और रेबीज टीकाकरण कार्यक्रम को बढ़ावा देना
- जागरूकता अभियान : लोगों को रेबीज और घरेलू पशु (कुत्ता) प्रबंधन के बारे में शिक्षित करना
- NGO सहयोग : पशु कल्याण संगठनों को शामिल कर शेल्टर प्रबंधन और देखभाल में सुधार करना
- कचरा प्रबंधन : संख्या नियंत्रित करने के लिए कचरे को कम कर कुत्तों के लिए भोजन की उपलब्धता घटाना
- दीर्घकालिक नीति : आवारा कुत्तों की समस्या के लिए स्थायी एवं मानवीय नीति का निर्माण
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने का एक साहसिक कदम है। यह सार्वजनिक सुरक्षा को प्राथमिकता देता है किंतु पशु कल्याण के साथ संतुलन बनाना जरूरी है। सरकार, प्रशासन एवं समाज को मिलकर मानवीय व प्रभावी समाधान खोजने होंगे ताकि लोग तथा पशु दोनों सुरक्षित रहें।