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कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में बाल अधिकार संरक्षण

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2:सामाजिक न्याय और कल्याण )

संदर्भ

  • वर्तमान में हम इतिहास की पहली कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) पीढ़ी के बीच रह रहे हैं।आज के दौर में बच्चे आभासी वास्तविकता और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) द्वारा संचालित विश्व में जन्म ले रहें हैं।
  • ऐसे में सभी आधारभूत तकनीकी परिवर्तनों की तरहए.आई. न केवल सभी मानवीय क्रियाकलापों को बदल रहा है, बल्कि यह हमारे व्यवहारों, प्राथमिकताओं,सांसारिक अवधारणाओं के साथ-साथ हम सभी को आकार दे रहा है।

प्रमुख चिंताएँ

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता की सर्वप्रमुखचिंताओं में से एक प्रमुख बिंदु यह है कि इस परिवर्तन को हर कोई अवसरों के रूप में नहीं बदल सकता। यूनिसेफ और इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन (आई.टी.यू.) के अनुसार, दुनिया के दो-तिहाई बच्चों के पास घर पर इंटरनेट तक पहुँच नहीं है।
  • भारत में, डिजिटल और गैर-डिजिटल विषमता का होना गंभीर समस्या है जब तक हम इस डिजिटल विभेद को दूर करने के लिए तेजी से और ठोस कार्रवाई नहीं करते,ए.आई. मौलिक रूप से विभिन्न वर्गों (सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, लैंगिक और क्षेत्रीय) के बालकों के मध्य सामाजिक असमानताओं को बढ़ाएगा।
  • ए.आई.का विस्तार और परिनियोजन इसके निहितार्थों को समझने की हमारी क्षमता को सीमित कर रहा है, विशेषकर बालकों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
  • आभासी दुनिया गैर निरीक्षित "छुट्टियों" और "खेल के मैदानों" से लैश है, जहाँ किसी की कोई पहचान नहीं हैं। कई रिपोर्टें ने पहचान की है कि ऐसे आभासी खेल के मैदान बाल तस्करों के लिए तो "हनीपॉट्स" का काम करते हैं।
  • ध्यातव्य है कि जर्मनी में इंटरनेट से जुड़ी गुड़िया‘कायला’कोइसलिए प्रतिबंधितकर दिया गयाकि इसे हैक कर बच्चों की जासूसी की जा सकती थी। फिर भी ज्यादातर देशों में इस तरह के खिलौनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानूनीढाँचा नहीं है।
  • पूरी तरह से स्क्रीन टाइम पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद, यह सुनिश्चित करना कि बच्चे ऑनलाइन किसके साथ और क्या कर रहे हैं, अभिभावकों के लिये चुनौतीपूर्ण है। ऑनलाइन होमवर्क के साथ तो यह और भी कठिन हो गया है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता की उपयोगिता

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने साक्षरता, सामाजिक कौशल और भाषा के विकास को बढ़ावा दिया है। यह बच्चों के लिए रचनात्मक अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • आज कई ए. आई. खिलौने अपने स्वयं के व्यक्तित्व और आवाज के साथ पूर्व-क्रमबद्ध हैं। वे हमारे बच्चों को सुनते हैं चेहरे की पहचान और उनका पालन भी करते हैं।
  • शिक्षा क्षेत्र मेंए. आई. का उपयोग किया जा सकता है, जैसे-ट्यूशनिंग सिस्टम, अनुकूल पाठ्य-योजना निर्माण, कल्पनाशील आभासी वास्तविक निर्देश, समृद्ध और आकर्षक साक्षात्कार संबंधी अनुभव जो शैक्षिक परिणामों में सुधार ला सकते हैं।
  • इसके अलावा अन्य क्षेत्रों यथा- चिकित्सा, खेल, परिवहन, राजनीति इत्यादि में भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

बाल स्वतंत्रता का अधिकार

  • भले ही ए.आई. प्रणाली विभिन्न माध्यमों में सहायक रही हो अपितु इसने युवाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया है किशोरावस्था से काम उम्र से ही बच्चे डिजटल रूप से व्यसनी हो रहे हैं।
  • जब उन्हें एकाग्रता कौशल, भावनात्मक और सामाजिक बुद्धिमत्ता सीखने की जरूरत है,शुरुआती विचारों को आकार देने की आवश्यकता है उन्हें गहरे आभासी दुनिया में धकेला जा रहा है। जिसमें झूठी खबरों, साजिश के सिद्धांत, प्रचार, ऑनलाइन धूर्तता, घृणित भाषा और पसंद शामिल हैं।
  • हर क्लिक और स्क्रॉल के साथ, AI उन्हें विशेष रूप से अनुकूलित वातावरण में अलगकर रहा है और वे यह समझने लगे हैं कि वे जो भी हैं और जिस दुनिया में रहते हैं; यही सही है।
  • जबकीउनकी सहायता हेतुविभिन्न दृष्टिकोणों, वरीयताओं, विश्वासों और रीति-रिवाजों की समझविकसित करने में उनके लिये समझ और समानुभूति और सद्भावना के पुलों का निर्माण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

बाल अधिकार और संरक्षण संबंधी प्रयास

  • बाल अधिकारों पर कन्वेंशन सभी सार्वजनिक और निजी कार्यकर्ताओं से उनकी सभी विकासात्मक गतिविधियों और सेवाओं के प्रावधान के तहत बालकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करने का आग्रह करता है। फरवरी केएक ऐतिहासिक फैसले में, बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की समिति नेबाल अधिकारों पर कन्वेंशन को लागू करने और डिजिटल वातावरण में सभी बच्चों के अधिकारों को पूरा करने पर सामान्य टिप्पणी 25 को अपनाया।
  • यूनिसेफ की ‘जेनरेशन ए.आई.’ पहल वर्तमान में विश्व आर्थिक मंच के चौथे औद्योगिक क्रांति केंद्र और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर सुरक्षित और पारदर्शी तरीके से बच्चों के लिए ए. आई. क्षमता को पुनः हासिल करने के लिए काम कर रही है।
  • यूनेस्को द्वारा इस वर्ष सदस्य राज्यों द्वारा अपनाई जाने वाली नैतिक ए.आई. की सिफारिशों का मसौदा तैयार करने में अन्य हितधारकों के साथ परामर्श किया गया। साथ ही,एम.ओ.ओ.सी. के माध्यम से ए.आई. साक्षरता बढ़ाने पर प्रतिबद्धता जताईगई।
  • यूनेस्को की महात्मा गांधी शिक्षा संस्थान द्वारा शांति के लिए इस वर्ष भारत में यूनिसेफ, यूएनवी, और संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर भारत में युवा लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्णए.आई.से संबंधित नैतिक चिंताओं की पहचान करने हेतु युवाओं के साथ राष्ट्रव्यापी परामर्श किया गया।
  • भारत सरकार ने बच्चों के अधिकारों और भलाई की रक्षा के लिए एक विधायीढाँचे सहित मजबूत नीतियाँ बनाई हैं, जिनमें शिक्षा का अधिकार भी शामिल है। दुर्व्यवहार और हिंसा को रोकने के लिए कानून और नीतियाँ जैसे-नेशनल पॉलिसी फॉर चिल्ड्रेन (2013) को डिजिटल क्षेत्र में बच्चों के लिए विस्तारित की जा सकती हैं।

आगे की राह

  • इस ए.आई. जगत में एक अभिभावक, समाज और सरकार के रूप में, युवाओं के प्रति हमारी जिम्मेदारी का निर्वहन तभी संभव हैं, जब हम स्वयं इसे अच्छे से समझते हों और बच्चों तथा युवाओं को अपनी सुरक्षा हेतु जागरूक करें।
  • ऐसे में ऑनलाइन दुरुपयोग को कम करने के साथ-साथ बच्चों के वृद्धि और विकास को ध्यान में रखते हुए एक बहु-आयामी कार्रवाई योजना की आवश्यकता है।
  • चौथी औद्योगिक क्रांति के अगले चरण में सभी बच्चों तक इंटरनेट की पहुँच बढ़ाने के लिए एक व्यापक प्रयास किया जाना चाहिए।
  • डिजिटल विषमता को दूर करने के अतिरिक्त, बच्चों व युवाओं को ऑन-लाइन दुरुपयोग से बेहतर ढंग से संरक्षित करने तथा कानूनी और तकनीकी सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।
  • बच्चों में ऑनलाइन व्यसन को नियंत्रित करने व सामाजिक भावनात्मक क्षमता निर्माण हेतु एक ऑनलाइन संस्कृति टूल का विकास एवंए.आई. साक्षरता में वृद्धि करने की जरूरत है।
  • जिस प्रकार भारत मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को आकार देने में सहायक रहा और दुनिया को अहिंसा का सिद्धांत दिया, यह महान देश ए.आई.पीढ़ी के लिए एक नैतिक ए.आई. सुनिश्चित करने की दिशा में भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को प्रेरित कर सकता है।
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