(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
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संदर्भ
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा दिसंबर 2024 से बैंकिंग प्रणाली की तरलता में निरंतर वृद्धि उपायों के बावजूद भारत में ऋण की वृद्धि में गिरावट (कमी) आई है, जिससे आर्थिक गति एवं मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
आर.बी.आई. द्वारा तरलता बढ़ाने के प्रयास
- आर.बी.आई. ने दिसंबर 2024 में नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में 50 आधार अंकों की कमी करने के साथ ही सरकारी बॉन्ड खरीद और खुले बाजार परिचालन (OMO) जैसे उपायों के माध्यम से बैंकिंग प्रणाली में लगभग ₹10 लाख करोड़ की तरलता सुनिश्चित की।
- आर.बी.आई. ने फरवरी 2025 से ब्याज दरों में 100 आधार अंकों (bps) की कटौती भी की है।
- इसके अतिरिक्त, मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee: MPC) ने ऋण देने को प्रोत्साहित करने के लिए जून 2025 में रेपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती करके इसे 5.5% कर दिया।
उद्देश्य
- वर्ष 2024 में कर बहिर्वाह और आर.बी.आई. के विदेशी मुद्रा परिचालन के कारण उत्पन्न तरलता संकट को दूर करना
- रुपए को स्थिर करना
- आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए ऋण वृद्धि को प्रोत्साहित करना
परिणाम
- उधारी लागत कम होने के बावजूद गैर-खाद्य ऋण वृद्धि मई 2025 तक साल-दर-साल (YoY) घटकर 9.8% रह गई, जो अप्रैल में 11.2% और एक वर्ष पहले 16.2% थी।
स्थिर ऋण वृद्धि के कारण
- कमजोर माँग : कॉर्पोरेट एवं उपभोक्ता माँग में कमज़ोरी से ऋण आवश्यकता में कमी आई है क्योंकि व्यवसाय व व्यक्ति आर्थिक मंदी के बीच सतर्क बने हुए हैं।
- तरलता-ऋण वियोजन : अर्थशास्त्रियों का मानना है कि तरलता का प्रवाह सीधे तौर पर ऋण वृद्धि को बढ़ावा नहीं देता है।
- इसके बजाय ऋण की माँग, जमा एवं सी.आर.आर. चैनलों के माध्यम से तरलता को बढ़ावा देती है।
- अंतर-बैंक ऋण दरों (कॉल दरों) का एक सीमा तक पहुँचने के बाद अत्यधिक तरलता का प्रभाव सीमित होता है।
- बैंकों का व्यवहार : बैंक अतिरिक्त धनराशि को आर.बी.आई. की स्थायी जमा सुविधा (SDF) में जमा कर रहे हैं जो ऋण देने की तुलना में सुरक्षित रिटर्न को प्राथमिकता देने का संकेत है।
- संरचनात्मक मुद्दे : नीतिगत दरों में कटौती का ऋण दरों तक धीमा प्रभाव (एक वर्ष तक) और क्षेत्र-विशिष्ट चुनौतियाँ (जैसे- कुछ पोर्टफोलियो में उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA)) बैंकों को आक्रामक रूप से ऋण प्रदान करने से रोकती हैं।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- आर्थिक मंदी : एक अनुमान के अनुसार, मार्च 2026 तक ऋण वृद्धि दर घटकर 7-8% रह सकती है जो निवेश एवं उपभोग में कमी के साथ व्यापक आर्थिक मंदी का संकेत है।
- मौद्रिक नीति प्रभावशीलता : ऋण वृद्धि को बढ़ावा देने में ब्याज दरों में कटौती एवं तरलता प्रवाह की विफलता मंदी के दौरान अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने की आर.बी.आई. की क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
- बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता : बढ़ते बैंक धोखाधड़ी (वित्त वर्ष 2025 में ₹36,014 करोड़) और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा ऋण माफ़ी (वित्त वर्ष 2025 में ₹58,000 करोड़) मार्च 2025 में सकल एन.पी.ए. में 2.58% की गिरावट के बावजूद कमजोरियों को उजागर करते हैं।
आगे की राह
- मांग-पक्ष उपाय : उपभोग एवं निवेश को बढ़ावा देने वाली राजकोषीय नीतियाँ (जैसे- कर प्रोत्साहन या बुनियादी ढाँचे पर व्यय) आर.बी.आई. के प्रयासों का पूरक हो सकती हैं।
- संचरण को मज़बूत करना : आर.बी.आई. को दरों में कटौती का लाभ, ऋण दरों तक तेज़ी से पहुँचाने के लिए संभवतः बैंकों के लिए कड़े दिशानिर्देशों के माध्यम से तंत्र को मज़बूत करना चाहिए।
- एन.पी.ए. और धोखाधड़ी से निपटना : आर.बी.आई. के तरलता तनाव परीक्षणों एवं निजी बैंकों के लिए मज़बूत पर्यवेक्षी ढाँचे द्वारा प्रस्तावित मज़बूत पर्यवेक्षण आवश्यक है।
- वित्तीय समावेशन : डिजिटल भुगतान एवं प्राथमिकता वाले क्षेत्र को ऋण प्रदान करने को बढ़ावा देने से वंचित क्षेत्रों में ऋण की माँग में वृद्धि हो सकती है।
निष्कर्ष
आर.बी.आई. द्वारा रिकॉर्ड तरलता के बावजूद भी निवेश एवं ऋण वृद्धि को बढ़ावा देने में विफलता हाथ लगी है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक चुनौतियों को रेखांकित करता है। ऐसे में मौद्रिक नीति, बैंकिंग क्षेत्र की गतिशीलता एवं सतत विकास प्राप्त करने के लिए समन्वित राजकोषीय-मौद्रिक रणनीतियों की आवश्यकता है।