नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 नागरिकता अधिनियम, 1955 में किया गया एक महत्वपूर्ण संशोधन है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को देशीकरण के माध्यम से नागरिकता प्रदान करना है
इस अधिनियम के तहत ऐसे आवेदकों के लिए निवास की अनिवार्य अवधि 11 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दी गई है तथा OCI द्वारा कानून उल्लंघन की स्थिति में केंद्र सरकार को OCI पंजीकरण रद्द करने का अधिकार दिया गया है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 : पक्ष और विपक्ष
पक्ष में तर्क:
- मानवीय राहत और संरक्षण:
- CAA का उद्देश्य अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न झेल रहे अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता और सुरक्षित जीवन प्रदान करना है।
- ऐतिहासिक उत्तरदायित्व:
- यह अधिनियम 1947 के विभाजन के दौरान धार्मिक आधार पर विस्थापित समुदायों के प्रति भारत की नैतिक और ऐतिहासिक जिम्मेदारी को संबोधित करता है।
- मौजूदा नागरिकों पर प्रभाव नहीं:
- CAA किसी भी वर्तमान भारतीय नागरिक, मुस्लिम समुदाय सहित, की नागरिकता को प्रभावित नहीं करता है।
- संवैधानिक और राष्ट्रीय सुरक्षा औचित्य:
- सरकार के अनुसार यह अधिनियम उचित वर्गीकरण पर आधारित है और अवैध प्रवासन को नियंत्रित कर राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करता है।
- स्पष्ट कट-ऑफ तिथि:
- 31 दिसंबर 2014 की कट-ऑफ तिथि नीति में स्पष्टता और प्रशासनिक निश्चितता प्रदान करती है।
विपक्ष में तर्क:
- देशों का चयनात्मक वर्गीकरण:
- आलोचकों का तर्क है कि यह अधिनियम श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों में उत्पीड़न झेल रहे समुदायों को बाहर रखता है।
- धार्मिक समुदायों का सीमित दायरा:
- CAA केवल छह धार्मिक समुदायों को शामिल करता है, जबकि अन्य उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को इसमें स्थान नहीं दिया गया है।
- समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) पर प्रश्न:
- मुसलमानों, यहूदियों और नास्तिकों का बहिष्कार संविधान के समानता के अधिकार के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है।
- तिथि-आधारित भेदभाव:
- 31 दिसंबर 2014 के बाद भारत आए उत्पीड़ित प्रवासियों को नागरिकता से वंचित किया जाना भेदभावपूर्ण माना जाता है।
- असम समझौते से विरोधाभास:
- असम समझौते में 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तिथि निर्धारित थी, जबकि CAA इसे 31 दिसंबर 2014 तक बढ़ा देता है।
- विदेश नीति और वैश्विक छवि पर प्रभाव:
- यह अधिनियम भारत-बांग्लादेश संबंधों तथा भारत की धार्मिक बहुलवाद की वैश्विक छवि को प्रभावित कर सकता है।
CAA 2019 पर बहस भारत की पहचान, धर्मनिरपेक्ष चरित्र और नागरिकता की अवधारणा से जुड़े व्यापक सवालों को उजागर करती है। सरकार का मानना है कि यह अधिनियम उत्पीड़ित और कमजोर अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने के लिए आवश्यक है, जबकि आलोचक आशंका जताते हैं कि इससे समाज में धर्म के आधार पर विभाजन की भावना बढ़ सकती है।
CAA 2019 के तहत OCI में प्रमुख परिवर्तन
1. OCI पंजीकरण रद्द करने की शक्ति
CAA 2019 के तहत केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि यदि कोई OCI कार्डधारक सरकार द्वारा अधिसूचित किसी भी कानून का उल्लंघन करता है, तो उसका OCI पंजीकरण रद्द किया जा सकता है। इस व्यापक शक्ति को लेकर मनमाने या अत्यधिक उपयोग की आशंकाएँ व्यक्त की गई हैं, क्योंकि सरकार को यह तय करने की छूट मिल जाती है कि किन कानूनों के उल्लंघन पर OCI रद्द किया जाएगा।
2. OCI रद्द करने के पाँच आधार
अधिनियम के अनुसार निम्न परिस्थितियों में OCI पंजीकरण रद्द किया जा सकता है-
- यदि पंजीकरण धोखाधड़ी के माध्यम से प्राप्त किया गया हो।
- यदि व्यक्ति भारतीय संविधान के प्रति निष्ठावान न हो।
- यदि युद्ध के समय शत्रु देश से संपर्क रखा गया हो।
- यदि भारत की संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा या लोकहित की रक्षा के लिए रद्द करना आवश्यक हो।
- यदि पंजीकरण के पाँच वर्षों के भीतर, OCI धारक को दो वर्ष या उससे अधिक के कारावास की सजा सुनाई गई हो।
3. अत्यधिक प्रत्यायोजन की आलोचना
आलोचकों का कहना है कि यह प्रावधान कार्यपालिका को अत्यधिक विवेकाधिकार प्रदान करता है, जिससे OCI कार्डधारकों के अधिकार और सुरक्षा कमजोर हो सकते हैं।
4. कानूनी अस्पष्टता की समस्या
यह स्पष्ट नहीं है कि “सरकार द्वारा अधिसूचित कौन-से कानून” OCI रद्द करने का आधार बन सकते हैं, जिससे कई OCI धारकों में अपने अधिकारों और स्थिति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।