New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM

वकील से परामर्श का अधिकार: चिंताएं एवं समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना; पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।)

संदर्भ

15 अक्टूबर 2025 को सर्वोच्च न्यायलय ने केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर पूछताछ या जांच के दौरान किसी व्यक्ति को वकील से परामर्श करने के अधिकार को लागू करने के लिए जवाब मांगा है।

वकील से परामर्श का अधिकार

  • पूछताछ या जांच के दौरान वकील से परामर्श का अधिकार भारत के संविधान और कानूनों में निहित एक मूल अधिकार है। 
  • यह अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से चुने गए वकील से सलाह ले सके ताकि वह स्व-दोषारोपण (self-incrimination) से बच सके। 
  • यह विशेष रूप से पुलिस, प्रवर्तन निदेशालय (ED), या अन्य जांच एजेंसियों द्वारा पूछताछ के दौरान महत्वपूर्ण है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 38 स्पष्ट रूप से कहती है कि गिरफ्तार और पूछताछ के दौरान व्यक्ति को अपने पसंद के वकील से मिलने का अधिकार है, हालांकि पूरे समय वकील की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। 
  • यह अधिकार न केवल संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि जांच की निष्पक्षता और पारदर्शिता को भी बढ़ावा देता है।

परामर्श का अधिकार: संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 20(3): यह स्व-दोषारोपण के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है, यानी कोई भी व्यक्ति अपने खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 21: यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें निष्पक्ष जांच और सुनवाई का अधिकार शामिल है।
  • अनुच्छेद 22: यह गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता और वकील से परामर्श का अधिकार प्रदान करता है। ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि जांच एजेंसियां मनमानी या दमनकारी कार्रवाई न करें। 
  • सर्वोच्च न्यायलय ने कई फैसलों में इन अधिकारों को दोहराया है, जैसे नंदिनी सत्पथी बनाम पी.एल. दानी (1978), जिसमें पूछताछ के दौरान वकील की उपस्थिति को मौलिक अधिकार माना गया।

सर्वोच्च न्यायलय द्वारा सरकारों को नोटिस

  • 15 अक्टूबर 2025 को सर्वोच्च न्यायलय की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन शामिल थे, ने अधिवक्ता शफी माथर की जनहित याचिका पर सुनवाई की। 
  • याचिका में कहा गया कि पूछताछ के दौरान वकील से परामर्श का अधिकार, हालांकि वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त है, लेकिन पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों (जैसे ED) द्वारा इसका पालन असंगत रूप से किया जाता है। 
  • कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जवाब मांगा और इस मुद्दे को "अत्यंत महत्वपूर्ण" बताया। 

संबंधित चिंताएं

  • यातना और दुरुपयोग: वकील की अनुपस्थिति में, जांच एजेंसियां दबाव डाल सकती हैं, जिससे स्व-दोषारोपण और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं बढ़ती हैं।
    • 'नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर' की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में 125 हिरासत में मौतें दर्ज की गईं, जिनमें 93 यातना के कारण और 24 संदिग्ध परिस्थितियों में थीं।
  • निष्पक्षता पर सवाल: वकील की सीमित पहुंच से जांच की पारदर्शिता और विश्वसनीयता प्रभावित होती है, जो न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करती है।
  • कानूनी असमानता: विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए वकील की पहुंच न होना असमानता को बढ़ाता है।
  • विशेष कानूनों की कमी: PMLA और NDPS जैसे कानूनों में स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी के कारण जांच में मनमानी होती है।
  • न्यायिक आदेशों की अवहेलना: सर्वोच्च न्यायालय के पहले के निर्देशों के बावजूद, जांच एजेंसियां इस अधिकार को लागू करने में विफल रही हैं।
  • असंगत लागूकरण: कुछ मामलों में वकील को केवल पूछताछ के कुछ हिस्सों में उपस्थित रहने की अनुमति दी जाती है, जो संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है।

आगे की राह

  • दिशानिर्देशों का निर्माण: विशेष कानूनों (जैसे PMLA, NDPS) के तहत पूछताछ के दौरान वकील की उपस्थिति को अनिवार्य करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए जाएं।
  • जांच की निगरानी: स्वतंत्र निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए ताकि हिरासत में यातना और दुरुपयोग को रोका जा सके।
  • जागरूकता और प्रशिक्षण: पुलिस और जांच एजेंसियों को संवैधानिक अधिकारों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे इस अधिकार का सम्मान करें।
  • कानूनी सहायता तक पहुंच: गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता को बढ़ावा दिया जाए।
  • न्यायिक हस्तक्षेप: सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों को नियमित रूप से इस मुद्दे की निगरानी करनी चाहिए और समयबद्ध तरीके से उल्लंघनों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
  • कानून में संशोधन: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और अन्य कानूनों में संशोधन कर पूछताछ के दौरान वकील की उपस्थिति को पूर्ण रूप से अनिवार्य किया जाए।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X