(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन)
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संदर्भ
भारत में सड़क परिवहन के विकास के साथ-साथ टोल संग्रहण प्रणाली में भी तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं। फास्टैग (FASTag) की सफलता के बाद अब सरकार उपग्रह आधारित टोलिंग प्रणाली (Satellite-Based Tolling System) को लागू करने की दिशा में अग्रसर है।
उपग्रह आधारित टोलिंग प्रणाली के बारे में
- क्या है : यह एक आधुनिक डिजिटल टोल संग्रहण व्यवस्था है, जिसमें जीपीएस (GPS) और उपग्रह संचार तकनीक का उपयोग करके टोल शुल्क लिया जाता है।
- कार्यप्रणाली:
- वाहन में GPS आधारित ट्रैकिंग डिवाइस की अनिवार्यता
- वाहन की गति और दिशा की उपग्रह द्वारा ट्रैकिंग
- वाहन की टोल योग्य दूरी का स्वतः आकलन
- लिंक्ड अकाउंट से निर्धारित शुल्क स्वतः कट जाएगा (जैसे फास्टैग या बैंक खाता)।
प्रमुख विशेषताएँ
- GPS तकनीक का उपयोग: वाहन में लगे GPS डिवाइस के जरिए उसकी गति और मार्ग की निगरानी की जाती है।
- ऑनबोर्ड यूनिट (OBU): वाहन में एक डिवाइस लगाई जाती है जो उपग्रह से संपर्क करके लोकेशन डाटा भेजती है।
- टोल प्लाज़ा की आवश्यकता नहीं : इसमें भौतिक टोल प्लाजा की कोई आवश्यकता नहीं होती। टोल शुल्क स्वचालित रूप से वाहन के वर्चुअल ट्रैकिंग के आधार पर संग्रहित किया जाता है।
- दूरी आधारित शुल्क (Distance-Based Tolling) : इस प्रणाली में "Pay as you drive" मॉडल अपनाया जाता है, यानी वाहन जितनी दूरी टोल वाली सड़क पर चलेगा, उतना ही शुल्क देना होगा।
- डिजिटल भुगतान की सुविधा : वाहन मालिक के बैंक खाते, फास्टैग वॉलेट, या अन्य डिजिटल मोड से टोल शुल्क स्वतः काट लिया जाता है ।
- वाहन ट्रैकिंग और निगरानी : सिस्टम वाहन की गति, लोकेशन और ट्रैवल रूट को ट्रैक करता है, जिससे बेहतर निगरानी एवं यातायात प्रबंधन संभव होता है।
उपग्रह आधारित टोलिंग प्रणाली के प्रमुख लाभ
- दूरी के आधार पर न्यायसंगत शुल्क : इस प्रणाली में वाहन जितनी दूरी टोल योग्य सड़कों पर तय करता है, उतना ही शुल्क लिया जाता है।
- ईंधन, समय और प्रदूषण में कमी : वाहनों को टोल प्लाज़ा पर रुकने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे ईंधन की बचत, यात्रा में लगने वाले समय और प्रदूषण में कमी आती है।
- भ्रष्टाचार और टोल चोरी में कमी : यह प्रणाली स्वचालित और डिजिटल है, इसलिए इसमें मानवीय हस्तक्षेप न्यूनतम होता है, जिससे टोल चोरी तथा भ्रष्टाचार की संभावना घट जाती है।
- बेहतर ट्रैफिक प्रबंधन और निगरानी : GPS आधारित ट्रैकिंग से वाहनों की मूवमेंट, लोकेशन और भीड़ की निगरानी संभव होती है, जिससे यातायात नियंत्रण और सड़क सुरक्षा बेहतर होती है।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा : सभी टोल भुगतान डिजिटल माध्यमों से होने के कारण यह प्रणाली डिजिटल लेन-देन और वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करती है।
- टोल प्लाज़ा के रखरखाव पर खर्च में कटौती : भौतिक टोल प्लाज़ा की आवश्यकता समाप्त हो जाने से संचालन, रखरखाव और मानव संसाधन पर होने वाला व्यय कम होता है।
- डाटा संग्रह और विश्लेषण : यह प्रणाली यातायात, सड़क उपयोग और यात्रा पैटर्न डाटा एकत्र कर सकती है, जो भविष्य की योजना और नीति निर्माण में उपयोगी होता है।
मुख्य चुनौतियाँ
- प्रौद्योगिकीय अवसंरचना की कमी : देशभर में खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में GPS और वाहन ट्रैकिंग उपकरणों की स्थापना और उपयोग को सुनिश्चित करना
- डाटा सुरक्षा और गोपनीयता: वाहन की लोकेशन और ट्रैवल डाटा के अत्यंत संवेदनशील होने के कारण डाटा के दुरुपयोग या हैकिंग की संभावना
- पुराने वाहनों में प्रणाली का समावेशन (Retrofitting): जो वाहन पहले से इस तकनीक से लैस नहीं हैं, उनमें उपकरण लगाना महंगा और समय-साध्य है।
- डिजिटल साक्षरता की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को डिजिटल भुगतान, GPS ट्रैकिंग आदि की जानकारी का अभाव
- विनियामक ढाँचे की आवश्यकता: उपग्रह आधारित टोलिंग के लिए स्पष्ट नियम, अधिकार, विवाद समाधान तंत्र और पारदर्शिता की आवश्यकता
- नेटवर्क और कनेक्टिविटी की समस्याएँ: भारत के कई दुर्गम क्षेत्रों में GPS सिग्नल और डाटा कनेक्टिविटी की निम्न सुलभता
- प्रारंभिक लागत: प्रणाली की स्थापना की शुरुआत में भारी पूँजी निवेश की आवश्यकता
आगे की राह
- तकनीकी अवसंरचना का विकास
- चरणबद्ध क्रियान्वयन
- नेविगेशन और ट्रैकिंग के लिए GPS आधारित उपकरणों का प्रसार
- निजी क्षेत्र की भागीदारी से नेटवर्क विस्तार
- डाटा सुरक्षा और गोपनीयता
- मजबूत साइबर सुरक्षा फ्रेमवर्क
- डाटा एन्क्रिप्शन और कस्टमर की सहमति आधारित एक्सेस
- डाटा संरक्षण कानूनों को लागू करना
- पुराने वाहनों में उपकरण लगाना (Retrofitting)
- सरकार द्वारा सब्सिडी या टैक्स रिबेट
- स्थानीय सर्विस सेंटरों के माध्यम से आसान इंस्टॉलेशन
- अनिवार्य फिटमेंट के लिए स्पष्ट समयसीमा
- डिजिटल साक्षरता और जागरूकता
- ग्रामीण व अर्ध-शहरी क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम
- टोल और जी.पी.एस. से संबंधित सामग्री स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराना
- सहायता केंद्र और हेल्पलाइन सेवा
- प्रभावी क्रियान्वयन और निगरानी व्यवस्था
- केंद्र-राज्य समन्वय के लिए एक संयुक्त टास्क फोर्स
- एकीकृत डिजिटल कंट्रोल रूम
- टोल ट्रैकिंग के लिए रीयल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम
- विनियामक व कानूनी ढाँचा
- स्पष्ट नीति एवं कार्यप्रणाली
- विवाद समाधान तंत्र की स्थापना
- निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए नियामक दिशानिर्देश
- नेटवर्क व कनेक्टिविटी समस्या का संधान
- दूरदराज़ क्षेत्रों में उपग्रह आधारित इंटरनेट (VSAT)
- 4G/5G नेटवर्क विस्तार पर बल
- मोबाइल टॉवरों की संख्या बढ़ाना
- उच्च प्रारंभिक लागत से निपटना
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- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP मॉडल)
- वैश्विक वित्तीय संस्थानों से सहयोग
- चरणबद्ध निवेश नीति अपनाना
निष्कर्ष
उपग्रह आधारित टोलिंग प्रणाली पारंपरिक टोल प्रणाली का एक आधुनिक विकल्प है, फिर भी इसके सफल कार्यान्वयन हेतु सरकार को ठोस तकनीकी अवसंरचना, कानूनी ढाँचा, और जन-सहभागिता को सुनिश्चित करना होगा। यदि इन चुनौतियों का समाधान किया जाए, तो यह प्रणाली भारत की सड़कों को अधिक स्मार्ट, सुरक्षित और कुशल बना सकती है।