(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राजनीतिक व्यवस्था) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन एवं कार्य; विवाद निवारण तंत्र व संस्थान) |
संदर्भ
राजस्थान राज्य सरकार ने 9 मई, 2025 के एक आदेश के माध्यम से 16 स्थायी लोक अदालतों को गैर-कार्यात्मक घोषित कर दिया था। इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा है कि यह मामला न्याय तक पहुँच को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करता है।
लोक अदालत के बारे में
- लोक अदालत एक वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) प्रणाली है जो विशेष रूप से न्याय व्यवस्था पर दबाव को कम करने और त्वरित, सुलभ व प्रभावी तरीके से मामलों का समाधान प्रदान करने के लिए बनाई गई है।
- यह न्यायालय के बाहर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से विवादों का समाधान करने का एक तरीका है।
प्रमुख विशेषताएँ
- कानूनी आधार : लोक अदालत का गठन लीगल सर्विसेज अथॉरिटी एक्ट, 1987 के तहत किया जाता है।
- स्तर : इसे राष्ट्रीय, राज्य, जिला या तालुका स्तर पर आयोजित किया जा सकता है।
- स्वैच्छिक समाधान : लोक अदालत में सभी पक्षों की सहमति से ही मामला हल होता है। इसमें पक्षकारों पर कोई दबाव नहीं डाला जाता है।
- सरकारी संस्थाएँ : इनका आयोजन न्यायपालिका द्वारा या कानूनी प्राधिकृत संस्थाओं द्वारा किया जाता है। इसमें न्यायाधीश, वरिष्ठ वकील एवं अन्य कानूनी विशेषज्ञ उपस्थित रहते हैं।
- सस्ती प्रक्रिया : लोक अदालत में कोई महंगा कानूनी शुल्क नहीं होता है।
- त्वरित निवारण : पारंपरिक अदालतों के मुकाबले लोक अदालतों में मामलों का निवारण अधिक तेजी से किया जाता है।
- विवादों का प्रकार : इनमें विभिन्न प्रकार के मामले, जैसे- पारिवारिक विवाद, बैंकिंग, श्रम, भूमि विवाद, उपभोक्ता शिकायतें व वाणिज्यिक विवाद आदि हल किए जाते हैं।
- समाधान : लोक अदालतों में विवाद का समाधान समझौते, मध्यस्थता या अन्य वैकल्पिक उपायों से किया जाता है।
लोक अदालत की प्रक्रिया
- मामला दर्ज करना : किसी भी पक्षकार को अपने विवाद को लोक अदालत में दर्ज करने के लिए आवेदन देना होता है।
- समय व तिथि-निर्धारण : लोक अदालत का आयोजन एक विशिष्ट तिथि और समय पर किया जाता है, जिसमें सभी पक्षों को आमंत्रित किया जाता है।
- मध्यस्थता एवं सुलह : दोनों पक्षों के बीच बातचीत करके विवाद का समाधान निकाला जाता है।
- अगर पक्षकार समझौते पर सहमत होते हैं तो मामला समाप्त कर दिया जाता है।
- यदि समझौता नहीं होता है तो मामला पुन: न्यायालय के पास भेज दिया जाता है।
- समझौता प्रमाण पत्र : यदि समाधान हो जाता है तो समझौते का एक प्रमाण-पत्र जारी किया जाता है जो कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त होता है।
लोक अदालत की सीमाएँ
- गंभीर आपराधिक मामले (जैसे- हत्या, बलात्कार) लोक अदालत में नहीं लाए जा सकते हैं।
- दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक है।
- जटिल कानूनी मामलों में प्रभावी नहीं हो सकता है।
राजस्थान में लोक अदालत संबंधी हालिया मुद्दा
- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने 3 मई को जारी आदेश में स्पष्ट किया है कि जिन सदस्यों का कार्यकाल 8 अप्रैल को समाप्त हो गया है, वे विवाद समाधान में भाग नहीं ले सकते हैं।
- इस आदेश के कारण हुई देरी से 8 अप्रैल से इनका संचालन पूरी तरह से बंद हो गया है, जिससे कई लंबित विवादों का समाधान रुक गया है।
उच्च न्यायालय का निर्णय
- नीतिगत मामला होने के बहाने अदालतें निष्पक्ष व त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकतीं हैं।
- बृज मोहन लाल बनाम भारत संघ (2012) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि अगर नीतिगत फैसले मनमाने या दुर्भावनापूर्ण पाए जाते हैं तो वे न्यायिक समीक्षा के लिए खुले रहते हैं।
- न्यायालय ने राज्य के उच्च पदस्थ अधिकारियों को इस मामले में प्रतिवादी बनाया है तथा उन्हें अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
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