New
The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June.

विशेष विवाह अधिनियम : प्रमुख विशेषताएँ तथा चुनौतियाँ

(प्रारम्भिक परीक्षा : भारतीय राज्य तंत्र और शासन संविधान – अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र – 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दो भिन्न धर्मों के व्यक्तियों द्वारा केवल विवाह के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करना अनुचित है।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 सभी भारतीय नागरिकों तथा कुछ विशेष मामलों में विदेश में रह रहे भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है। यह अधिनियम मुख्य रूप से अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाह से सम्बंधित है। इसके तहत, विवाह के लिये दोनों पक्षों को अपना-अपना धर्म छोड़ने की आवश्यकता नहीं होती।

मुख्य विशेषताएँ

  • अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य अंतर-धार्मिक विवाहों को एक धर्मनिरपेक्ष संस्था के रूप में स्थापित करना तथा सभी धार्मिक औपचारिकताओं को केवल विवाह पंजीकरण से प्रतिस्थापित करना है।
  • अधिनियम की धारा 5 के तहत, विवाह करने वाले जोड़े को सम्बंधित ज़िले के विवाह अधिकारी के समक्ष मैरिज नोटिस देने की आवश्यकता होती है। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि विवाह करने वाले जोड़े में किसी एक ने उस ज़िले में कम-से-कम 30 दिनों तक निवास किया हो।
  • धारा 6 के तहत, विवाह अधिकारी विवाह करने वाले जोड़े के नोटिस को प्रकाशित करता है तथा इसकी मूल प्रति को सुरक्षित रखता है।
  • अधिनियम के तहत विवाहित जोड़ा विवाह की तारीख के 1 वर्ष पश्चात् ही तलाक के लिये याचिका दायर कर सकता है।
  • इस अधिनियम के तहत पंजीकृत विवाहित व्यक्ति के उत्तराधिकारी तथा उसकी सम्पत्ति को भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नियंत्रित किया जाता है।

अधिनियम के अंतर्गत अन्य प्रावधान

  • विवाह के लिये लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष तथा लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिये।
  • अधिनियम के तहत विवाह करने वाले जोड़े में से कोई भी चित-विकृति के कारण सहमति देने में असमर्थ नहीं होना चाहिये।
  • अधिनियम के अनुसार कोर्ट मैरिज में मैरिज रजिस्ट्रार के समक्ष तीन गवाहों की उपस्थति अनिवार्य है।
  • अगर विवाह अधिकारी विवाह के लिये अनुमति देने से मना करता है तो ज़िला अदालत में अपील की जा सकती है।

विवाद के बिंदु

  • अधिनियम की धारा 6 के तहत विवाह पक्ष के निजी विवरणों को भी प्रकाशित किया जाता है। इसमें आपत्तियाँ दर्ज करने हेतु सार्वजनिक रूप से 30 दिनों का समय दिया जाता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 21 (निजता का अधिकार) का उल्लंघन है। ध्यातव्य है कि इस सम्बंध में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई है।
  • असामाजिक तत्त्वों द्वारा सार्वजनिक नोटिस से विवाह करने वाले जोड़े की व्यक्तिगत तथा गोपनीय जानकारी एकत्र कर लव-जिहाद, साम्प्रदायिकता तथा हिंसा का वातावरण निर्मित कर अव्यवस्था उत्पन्न की जाती है। ध्यातव्य है कि गत जुलाई में केरल सरकार के विवाह पंजीकरण विभाग ने मैरिज नोटिस के अनुचित प्रयोग के कारण इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना बंद कर दिया है।
  • कुछ राजनीतिक दलों द्वारा कोर्ट मैरिज सम्बंधी नोटिसों की संवेदनशील जानकारी का उपयोग धार्मिक और जातिगत आधार पर राजनीतिक लाभ के लिये भी किया जाता है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR