(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी) |
संदर्भ
5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट, ‘स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट इन फिगर्स 2025’ जारी की।
रिपोर्ट के बारे में
- यह रिपोर्ट भारत के समक्ष पर्यावरण, कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और मानव विकास जैसे क्षेत्रों में गंभीर संकटों को रेखांकित करती है।
- यह रिपोर्ट 48 संकेतकों के आधार पर तैयार की गई है जिसमें 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की स्थिति का विश्लेषण किया गया है।
प्रमुख निष्कर्ष
पर्यावरणीय संकट
- अत्यधिक मौसमी घटनाएँ : वर्ष 2024 भारत का सबसे गर्म वर्ष रहा, जिसमें 88% दिन अत्यधिक मौसमी घटनाओं से प्रभावित रहे। बाढ़, सूखा और तूफान जैसी आपदाओं ने 54 लाख लोगों को विस्थापित किया, जिसमें असम सबसे अधिक प्रभावित रहा।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: भारत का वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में हिस्सा 7.8% तक पहुँच गया है, जो वर्ष 1970 के बाद सर्वाधिक है।
- वर्ष 2020-23 के बीच उत्सर्जन वृद्धि दर में तेजी आई।
- जल संकट : देश के 135 जिले अब 40 मीटर से अधिक गहराई से भूजल निकाल रहे हैं, जो वर्ष 2014 की तुलना में दोगुना है। वर्ष 2022 में आधे निगरानी स्थलों पर नदियों में विषैली भारी धातुएँ पाई गईं।
- कचरा प्रबंधन: पिछले सात वर्षों में ई-कचरा 147% बढ़ गया है और प्लास्टिक कचरा वर्ष 2022-23 में 41.4 लाख टन तक पहुँच चुका है। वर्ष 2026 की समय-सीमा के बावजूद, केवल आधा पुराना कचरा ही निपटाया जा सका है।
- वन विनाश: विकास परियोजनाओं के लिए 29,000 हेक्टेयर जंगल काटे गए, जिससे वन्यजीव गलियारों में व्यवधान और मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ा। वर्ष 2023-24 में हाथी हमलों से मृत्यु दर 36% बढ़ी।
कृषि और ग्रामीण संकट
- सिक्किम ने जैविक खेती और टिकाऊ भूमि उपयोग के कारण कृषि रैंकिंग में शीर्ष स्थान प्राप्त किया, लेकिन किसान कल्याण में कमी रही।
- बड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में कृषि उत्पादकता और किसान आय निम्न रही, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा।
सार्वजनिक स्वास्थ्य
- वायु प्रदूषण : दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा लगभग 8 वर्ष और लखनऊ में 6 वर्ष कम हुई है, इसके अलावा 13 राजधानियों में हर तीसरे दिन असुरक्षित हवा दर्ज की गई।
- स्वास्थ्य ढाँचा : भारत को 36% अधिक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की आवश्यकता है, और विशेषज्ञों की 80% कमी है।
- महामारी का प्रभाव : वर्ष 2020-21 में 30.6 लाख अतिरिक्त मृत्यु दर्ज की गई, जो आधिकारिक कोविड मृत्यु से छह गुना अधिक है।
आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ
- आय में कमी : वर्ष 2017-23 के बीच वेतनभोगी और स्वरोजगारियों की वास्तविक आय में कमी आई। 73% कार्यबल अनौपचारिक है, और आधे नियमित कर्मचारियों को बुनियादी सुविधाएँ नहीं मिलतीं।
- लैंगिक असमानता : 60% पुरुषों की तुलना में केवल 20% महिलाएँ पूर्णकालिक रोजगार में हैं, और उनकी कार्य अवधि भी पुरुषों की तुलना में कम है।
विभिन राज्यों का प्रदर्शन
- आंध्र प्रदेश : वन और जैवविविधता संरक्षण में शीर्ष पर, लेकिन सीवेज उपचार और नदी प्रदूषण नियंत्रण में कमजोर प्रदर्शन।
- सिक्किम : जैविक खेती में अग्रणी, लेकिन किसान कल्याण में पीछे।
- गोवा : सार्वजनिक स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे में शीर्ष, लेकिन अस्पताल बिस्तरों की कमी और कमजोर महिला श्रम भागीदारी।
- बड़े राज्य : उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य सभी श्रेणियों में निम्न प्रदर्शन, जो बड़े देश की जनसंख्या के लिए जोखिम पैदा करता है।
चुनौतियाँ
- डाटा की कमी : विश्वसनीय और पारदर्शी डाटा का अभाव नीति निर्माण में बाधक है।
- नीति कार्यान्वयन : कचरा प्रबंधन, नदी स्वच्छता और उत्सर्जन नियंत्रण जैसे लक्ष्यों में देरी चिंताजनक है।
- जलवायु जोखिम : बढ़ती प्राकृतिक आपदाएँ और विस्थापन आर्थिक स्थिरता को खतरे में डाल रहे हैं।
समाधान के लिए सुझाव
- डाटा संग्रहण और पारदर्शिता : सरकार को डाटा संग्रह में निवेश बढ़ाना चाहिए, ताकि सटीक नीतियाँ बन सकें।
- टिकाऊ विकास : पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। इसके अलावा जैविक खेती और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए।
- स्वास्थ्य सुधार : रिपोर्ट में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढाँचे को मजबूत करने और निजी स्वास्थ्य खर्च को कम करने के लिए निवेश बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
- जलवायु अनुकूलन : बाढ़ और सूखा प्रबंधन के लिए क्षेत्रीय योजनाएँ और आपदा तैयारियों को मजबूत करने की आवश्यकता है।
- महिला सशक्तिकरण : रोजगार और शिक्षा में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।