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सर्वोच्च न्यायालय

पृष्ठभूमि

  • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के साथ हुई। यह ब्रिटिश भारत की फेडरल कोर्ट (1937) और प्रिवी काउंसिल (लंदन) की अपीलीय भूमिका का उत्तरवर्ती है।
  • फेडरल कोर्ट की स्थापना वर्ष 1937 में भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत हुई थी।
  • स्वतंत्रता के बाद, भारत में एक सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता महसूस की गई, जो संविधान की रक्षा कर सके और न्याय का अंतिम केंद्र बन सके।
  • सर्वोच्च न्यायालय की पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को प्रिंसिपल चैंबर, संसद भवन में हुई थी। वर्ष 1958 में इसे तिलक मार्ग, नई दिल्ली स्थित वर्तमान भवन में स्थानांतरित किया गया।
  • वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति संजीव खन्ना 13 मई, 2025 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इनके बाद न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई (बी.आर. गवई) 52वें मुख्य न्यायाधीश होंगे।

मुख्य न्यायाधीश से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • नियुक्ति : संविधान का अनुच्छेद 124 (2) राष्ट्रपति को 'अन्य न्यायाधीशों के परामर्श से निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश के अनुसार' अगले मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
    • परंपरा के अनुसार, वर्तमान मुख्य न्यायाधीश द्वारा सुझाया गया उत्तराधिकारी प्रायः सर्वोच्च न्यायालय का सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश होता है।
    • हालाँकि, यह परंपरा दो बार टूट चुकी है।
    • वर्ष 1973 में न्यायमूर्ति ए.एन. रे को तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों के स्थान पर मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
    • वर्ष 1977 में न्यायमूर्ति हंस राज खन्ना की जगह न्यायमूर्ति मिर्जा हमीदुल्लाह बेग को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

सर्वोच्च  न्यायालय के अन्य न्यायाधीश

  • संविधान के अनुसार, कुल संख्या संसद द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • मूल संविधान में एक मुख्य न्यायाधीश और 7 अन्य न्यायाधीशों का प्रावधान था।
  • किंतु समय के साथ, कार्यभार बढ़ने के कारण न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि होती गई और वर्ष 2019 में 34 न्यायाधीश (वर्तमान संख्या) का प्रावधान किया गया।
  • अप्रैल 2025 तक अधिकतम 34 न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश सहित) नियुक्त किए जा सकते हैं।
  • सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा कॉलेजियम प्रणाली के आधार पर की जाती है।
  • कॉलेजियम व्यवस्था के तहत भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण का निर्णय मुख्य न्यायाधीश (CJI) और वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह द्वारा लिया जाता है।
कार्यकाल : एक बार नियुक्त होने के बाद मुख्य न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहते हैं।
    • संविधान में कार्यकाल की कोई निश्चित पदावधि निर्धारित नहीं की गई है।
    • इन्हें केवल संसद द्वारा निश्चित पदच्युत प्रक्रिया के माध्यम से ही हटाया जा सकता है।
  • शपथ/प्रतिज्ञान : मुख्य न्यायाधीश को अपना कार्यभार संभालने से पूर्व राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष निम्नलिखित शपथ लेनी होती है-
    • भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा।
    • भारत की प्रभुता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखूँगा।
    • अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान एवं विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूँगा।
    • संविधान एवं विधियों की मर्यादा बनाए रखूँगा।
  • वेतन एवं भत्ते: मुख्य न्यायाधीश को प्राप्त वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार, अवकाश व पेंशन का निर्धारण समय-समय पर संसद द्वारा किया जाता है।
    • वित्तीय आपातकाल के दौरान इनको कम किया जा सकता है।
    • वर्ष 2018 में मुख्य न्यायाधीश का वेतन प्रतिमाह 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 2.80 लाख रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है।
    • इसके अलावा अन्य भत्ते, निःशुल्क आवास और अन्य सुविधाएँ (जैसे- चिकित्सा, कार, टेलीफोन आदि) भी मिलती हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, पेंशन एवं भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं, जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते राज्यों की संचित निधि पर तथा पेंशन भारत की संचित निधि पर भारित होती है।
  • कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश: राष्ट्रपति किसी भी न्यायाधीश को भारत के सर्वोच्च न्यायालय का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है, यदि;
    • मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो।
    • अस्थायी रूप से मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित हो।
    • मुख्य न्यायाधीश अपने दायित्वों के निर्वहन में असमर्थ हो।
  • पदच्युत प्रक्रिया: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है, जो मुख्य न्यायाधीशों पर भी लागू होती है।
    • अनुच्छेद 124 (4) सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा, जब तक कि राष्ट्रपति द्वारा पारित आदेश के पश्चात् संसद के प्रत्येक सदन द्वारा, उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा, सिद्ध कदाचार (महाभियोग द्वारा) या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाने के लिए उसी सत्र में राष्ट्रपति के समक्ष अभिभाषण प्रस्तुत न कर दिया गया हो।
  • महाभियोग प्रक्रिया: न्यायाधीश जाँच अधिनियम (1968) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है :
    • राष्ट्रपति के निष्कासन का प्रस्ताव 100 सदस्यों (लोक सभा) या 50 सदस्यों (राज्य सभा) द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद अध्यक्ष/सभापति को दिया जाना चाहिए।
    • यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष/सभापति द्वारा इसकी जाँच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश एवं प्रतिष्ठित न्यायवादी होते हैं।
    • यदि समिति न्यायाधीश को दुर्व्यवहार का दोषी या असक्षम पाती है तो सदन इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है। विशेष बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
    • अंत में राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी कर देते हैं।
    • अभी तक किसी मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग नहीं लगाया गया है।
    • कार्यवाहक राष्ट्रपति का दायित्व राष्ट्रपति (कार्य निर्वहन): अधिनियम, 1969 में निर्दिष्ट है कि राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति दोनों के पद रिक्त होने की स्थिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेंगे।
    • न्यायमूर्ति मोहम्मद हिदायतुल्लाह भारत के पहले ऐसे मुख्य न्यायाधीश थे जो भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति बने।
  • कार्य: भारत के संविधान के अनुच्छेद 145 और वर्ष 1966 के सर्वोच्च न्यायालय के प्रक्रिया नियम के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश को अन्य न्यायाधीशों को मामलें/कार्य आवंटन का अधिकार होता हैं।
    • मुख्य न्यायाधीश को 'मास्टर ऑफ द रोस्टर' (Master of the Roster) और 'समकक्षों में प्रथम' (First among Equals) कहा जाता है।
      • 'मास्टर ऑफ द रोस्टर' के अपने कार्य के रूप में, मुख्य न्यायाधीश न्यायालय की विभिन्न पीठों को मामले आवंटित करते हैं और संविधान पीठ बनाने के लिए न्यायाधीशों का चयन करते हैं, जो कानून के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर निर्णय लेते हैं।
      • मुख्य न्यायाधीश 'समानों में प्रथम' हैं, जिसका अर्थ है कि न्यायिक पक्ष में मुख्य न्यायाधीश के पास किसी भी अन्य न्यायाधीश के समान शक्ति है, जबकि प्रशासनिक पक्ष में मुख्य न्यायाधीश के पास अन्य न्यायाधीशों से अधिक कुछ अन्य शक्तियाँ प्राप्त हैं।
    • इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश 'भारतीय राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय' के वास्तविक कुलपति (de facto Chancellor), राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के मुख्य संरक्षक और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल के अध्यक्ष होते हैं।
  • वरीयता सूची में स्थान: भारत में वरीयता क्रम की सूची में भारत के मुख्य न्यायाधीश को छठें स्थान पर लोक सभा अध्यक्ष के साथ संयुक्त रूप से रखा गया है।
    • वरीयता क्रम सूची राष्ट्रपति सचिवालय के माध्यम से स्थापित की जाती है और गृह मंत्रालय द्वारा बनाए रखी जाती है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति

संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 124 और 217 न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित हैं परंतु कॉलेजियम शब्द का उल्लेख मूल संविधान में नहीं है। यह न्यायपालिका द्वारा विकसित व्यवस्था है।

संरचना

  • सर्वोच्च न्यायालय के लिए: भारत के मुख्य न्यायाधीश + सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश
  • उच्च न्यायालय के लिए: संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश + 2 वरिष्ठतम न्यायाधीश
  • कॉलेजियम व्यवस्था अभी भी लागू है।
  • नेशनल जुडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) अधिनियम, 2014 लाकर इसे बदलने की कोशिश हुई, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया।
  • सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष

कॉलेजियम प्रणाली

  • 'कॉलेजियम' सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय द्वारा विकसित एक प्रणाली है जो न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण से संबंधित है।भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 सर्वोच्च व उच्च न्यायालय में क्रमशः न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबद्ध हैं। हालाँकि, कॉलेजियम प्रणाली संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित नहीं है।

कॉलेजियम प्रणाली का विकास 

  • प्रथम न्यायाधीश मामला (1981): इसके अंतर्गत न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के सुझाव को अस्वीकार किया जा सकता है, बशर्ते इसके पीछे ठोस कारण हो। इस निर्णय के कारण अगले 12 वर्षों के लिए न्यायपालिका के ऊपर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित हो गई थी।
  • द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993): कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यहाँ पर 'परामर्श' का अर्थ वास्तव में 'सहमति' है। इसमें ली जाने वाली राय मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत नहीं होगी अपितु सर्वोच्च न्यायालय के 2 वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली हुई संस्थागत राय होगी।
  • तृतीय न्यायाधीश मामला (1998): राष्ट्रपति ने एक प्रेसिडेंशियल रेफरेंस जारी किया। इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच सदस्यों के समूह के रूप में कॉलेजियम को मान्यता दी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होंगे।

कॉलेजियम के सदस्य

  • सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होते हैं। वहीं उच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता उसके मुख्य न्यायाधीश करते हैं और उनके साथ चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश सदस्य होते हैं।
  • कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है और इसके बाद ही इस प्रक्रिया में सरकार की भूमिका आती है।

नियुक्ति प्रक्रिया

  • सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए वरिष्ठता को आधार बनाया जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को कॉलेजियम द्वारा अनुशंसा की जाती है।
  • राष्ट्रपति चाहे तो अनुशंसा को स्वीकार अथवा अस्वीकार भी कर सकता है। अस्वीकार करने की दशा में अनुशंसा वापस कॉलेजियम को लौटा दी जाती है। यदि कॉलेजियम अपनी अनुशंसा पुनः राष्ट्रपति को भेजता है तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकार करना पड़ता है।
  • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति इस आधार पर की जाती है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य से न होकर किसी अन्य राज्य से होगा।
  • चयन का निर्णय कॉलेजियम द्वारा लिया जाता है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश भारत के मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले एक कॉलेजियम द्वारा की जाती है।

संविधान तथा शक्ति का स्रोत

  • भारतीय संविधान का भाग V. अध्याय IV (अनुच्छेद 124 से 147) सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित है।
  • यह संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक निकाय है। 
  • इसकी शक्तियाँ और अधिकार संविधान से प्राप्त होते हैं,विशेषकर-
    • संविधान की सर्वोच्चता की रक्षा करना।
    • संवैधानिक व्याख्या करना।
    • मौलिक अधिकारों की रक्षा करना।
  • यह भारत का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है।

न्यायिक अधिकारिता क्षेत्र

सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता को निम्न श्रेणियों में बांटा जा सकता है-

मूल अधिकारिता

अनन्य मूल अधिकार क्षेत्र अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र और राज्यों के बीच, या राज्यों के आपसी विवादों में सीधा सुनवाई का अधिकार।

  • अनुच्छेद 32 : मौलिक अधिकारों का प्रवर्तन।
  • सर्वोच्च न्यायालय रिट जारी कर सकता है (जैसे बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा एवं उत्प्रेषण रिट सहित निर्देश या आदेश)।
  • मामलों का हस्तांतरण: उच्च न्यायालयों या अधीनस्थ न्यायालयों के बीच दीवानी या आपराधिक मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति।
  • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता: मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत।

अपील अधिकारिता

  • उच्च न्यायालय से अपील अनुच्छेद 132(1), 133(1), 134 के तहत संविधान के संबंध में विधि के महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर।
  • दीवानी मामले की अपील यदि उच्च न्यायालय सामान्य महत्त्व के विधि के महत्त्वपूर्ण प्रश्न को प्रमाणित करता है अथवा उच्च न्यायालय की राय में, उक्त प्रश्न का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक है।
  • आपराधिक मामले अपील यदि, उच्च न्यायालय दोषमुक्ति के फैसले को पलट दे और दोषी ठहराए (मृत्यु, आजीवन कारावास, 10+ वर्ष)।
    • अनुच्छेद 132 : कुछ मामलों यानी संवैधानिक मामलों में उच्च न्यायालयों से अपील पर सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय अधिकार क्षेत्र।
    • अनुच्छेद 133 : सिविल मामलों के संबंध में उच्च न्यायालयों
    • अनुच्छेद 134: आपराधिक मामलों में अपील पर सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय अधिकार क्षेत्र।
    • अनुच्छेद 136:  सर्वोच्च न्यायालय के विवेकानुसार विशेष अनुमति द्वारा अपील/विशेष अनुमति याचिका ।
      • अनुच्छेद 136: के तहत सर्वोच्च न्यायालय किसी भी निर्णय, आदेश, या निर्णय के विरुद्ध विशेष अनुमति याचिका स्वीकार कर सकता है।

सलाहकार अधिकारिता

अनुच्छेद 143 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा कोई कानूनी या संवैधानिक प्रश्न पर परामर्श मांगा जा सकता है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय का ध्येय वाक्य: यतो धर्मस्ततो जयः
  • ब्रिटिश भारत के प्रथम मुख्य न्यायाधीश: सर मौरिस लिनफोर्ड ग्वायेर
  • स्वतंत्र भारत के प्रथम मुख्य न्यायाधीश : न्यायमूर्ति हरिलाल जे. कानिया
  • भारत के द्वितीय मुख्य न्यायाधीश: न्यायमूर्ति एम. पतंजलि शास्त्री
  • सबसे लंबा कार्यकाल: न्यायमूर्ति यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (16वें) (22 फरवरी, 1978-11 जुलाई, 1985)
  • सबसे छोटा कार्यकाल: (17 दिन) कमल नारायण सिंह (22वें) (25 नवंबर, 1991 से 12 दिसंबर, 1991 तक)
  • पहले अनुसूचित जाति के मुख्य न्यायाधीश: न्यायमूर्ति के. जी. बालाकृष्णन
  • पहले मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश: न्यायमूर्ति मोहम्मद हिदायतुल्लाह
  • पहली महिला न्यायाधीश: न्यायमूर्ति मीरा साहिब फातिमा बीबी (6 अक्तूबर, 1989-29 अप्रैल, 1992)
  • संबंधित अनुच्छेद
    • अनुच्छेद 124 (1): सर्वोच्च न्यायालय के गठन में मुख्य न्यायाधीश का उल्लेख
    • अनुच्छेद 124 (2): मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति
    • अनुच्छेद 124 (4): मुख्य न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया का उल्लेख
    • अनुच्छेद 124 (6) : राष्ट्रपति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान
    • अनुच्छेद 124 (7): भारत के राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय या किसी प्राधिकारी के समक्ष वकालत पर रोक
    • अनुच्छेद 125: न्यायाधीशों का वेतन एवं भत्ते
    • अनुच्छेद 126: कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति
    • अनुच्छेद 145: मुख्य न्यायाधीश को अन्य न्यायाधीशों को
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