(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा तथा बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान व निकाय) |
संदर्भ
किशोरों की निजता के अधिकार के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का सजा संबंधी हालिया निर्णय न्यायालय द्वारा पुनर्विचार करने का एक उल्लेखनीय उदाहरण है जिसमें एक आपराधिक मामले से सर्वाधिक प्रभावित युवा व्यक्ति की आवाज को प्राथमिकता दी है।
सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय
- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया और यौन अपराधों से बाल संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 6 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न के दोषी युवक की सजा को पलट दिया गया।
- यह मामला ग्रामीण पश्चिम बंगाल की एक 14 वर्षीय बालिका से संबंधित था, जो 25 वर्षीय व्यक्ति के साथ रहने के लिए अपना घर छोड़कर चली गई थी। इसमें आपराधिक न्याय प्रणाली की शुरुआत उसकी माँ द्वारा की गई थी।
- न्यायालय में बालिका से पुत्री के जन्म, बाल विवाह आदि के आधार पर पॉक्सो विशेष न्यायालय (Special Court) ने आरोपी को 20 वर्ष कैद की सजा सुनाई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को व्यापक यौन शिक्षा, जीवन-कौशल प्रशिक्षण, आपातकालीन सहायता, परामर्श सेवाएँ और इन हस्तक्षेपों पर व्यापक डाटा संग्रह के उपायों पर विचार करने का निर्देश दिया।
किशोर संबंधों के अपराधीकरण से संबंधित मुद्दे
POCSO के तहत व्यापक अपराधीकरण
- POCSO में 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को नाबालिग माना गया है।
- दो किशोरों के बीच सहमति से यौन क्रियाकलाप को भी आपराधिक माना जाता है।
किशोरों पर प्रभाव
- सहमति से संबंध बनाने वाले किशोरों (15-18 वर्ष) को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है।
- बालकों के लिए जेल और दोनों पक्षों के लिए आघात जैसे असंगत परिणाम।
माता-पिता और सामाजिक नियंत्रण
जाति, धर्म या वर्ग की सीमाओं का उल्लंघन करने वाले संबंधों को दंडित करने के लिए प्राय: माता-पिता द्वारा कानून का दुरुपयोग किया जाता है।
न्यायिक चिंता
- उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय ने कानून में सूक्ष्मता व सुधारों का आह्वान किया है।
- न्यायालयों ने कभी-कभी सहमति से रोमांटिक संबंध का हवाला देते हुए राहत प्रदान की है।
विधि आयोग और संसदीय पैनल की सिफ़ारिशें (2024)
- 16-18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच सहमति से किए गए कृत्यों को अपराधमुक्त करना
- ‘निकटतम आयु’ (Close-in-Age) छूट खंड लागू करना
आगे की राह
- POCSO अधिनियम में संशोधन करना : किशोर मामलों में श्रेणीकरण एवं संदर्भ को शामिल करना
- हितधारकों को संवेदनशील बनाना : पुलिस, न्यायपालिका एवं समाज को किशोर अधिकारों और मनोविज्ञान के बारे में बेहतर जागरूकता की आवश्यकता
- यौन शिक्षा को बढ़ावा देने की आवश्यकता : युवाओं के बीच सूचित एवं सुरक्षित विकल्पों को बढ़ावा देना
निष्कर्ष
POCSO के तहत सभी किशोर संबंधों को अपराध घोषित करने से युवा जीवन को नुकसान पहुँचने, उनकी शिक्षा बाधित होने के साथ ही किशोरों की विकसित होती क्षमता की अनदेखी हो सकती है। ऐसे में कानूनी सुधारों में बाल संरक्षण एवं किशोरों की स्वायत्तता के बीच संतुलन स्थापित किया जाना चाहिए।