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राज्यों में परिसीमन पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: संघीय ढाँचे से सम्बंधित विषय एवं चुनौतियाँ,  सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय)

संदर्भ

25 जुलाई, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आंध्र प्रदेश व तेलंगाना जैसे राज्य, जम्मू एवं कश्मीर में किए गए परिसीमन (Delimitation) का हवाला देकर अपने यहाँ भी परिसीमन की माँग नहीं कर सकते हैं। न्यायालय के अनुसार, राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश संविधान के अलग-अलग ढांचों में कार्य करते हैं और उनमें समानता का दावा करना ‘असमानों को समान’ मानने जैसा होगा।

क्या है परिसीमन

  • परिसीमन वह प्रक्रिया है जिसमें जनगणना के आधार पर लोकसभा एवं विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया जाता है। 
  • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि प्रत्येक निर्वाचित प्रतिनिधि लगभग समान संख्या में लोगों का प्रतिनिधित्व करे। 
  • यह कार्य परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) के माध्यम से किया जाता है।

संवैधानिक प्रावधान एवं संशोधन

  • अनुच्छेद 82 और अनुच्छेद 170 भारत के संविधान में परिसीमन की प्रक्रिया को निर्धारित करते हैं।
  • 84वां संविधान संशोधन (2001) और 87वां संशोधन (2003) के माध्यम से जनगणना 2026 तक परिसीमन की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया है।
    • 84वें संशोधन ने 1991 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के पुन: समायोजन और युक्तिकरण का प्रावधान किया, जबकि 87वें संशोधन ने 2001 की जनगणना के आधार पर ऐसा करने का प्रावधान किया।
  • इसके अनुसार, अगला परिसीमन 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के आधार पर ही हो सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला 

  • सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने प्रोफेसर के. पुरूषोत्तम रेड्डी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया जिसमें आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में परिसीमन की मांग की गई थी।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 170(3) के तहत राज्यों में 2026 की जनगणना के बाद ही परिसीमन संभव है।
  • वहीं जम्मू एवं कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है और इस पर अनुच्छेद 170 का प्रतिबंध लागू नहीं होता है, इसलिए वहाँ वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर 2022 में परिसीमन किया गया था।

राज्य और जम्मू एवं कश्मीर (UT) में अंतर

  • राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (UT) संविधान के अलग-अलग प्रावधानों के तहत कार्य करते हैं।
  • राज्य अनुच्छेद 170(3) की संवैधानिक प्रतिबंध से बंधे हैं जबकि जम्मू एवं कश्मीर जैसे केंद्र शासित प्रदेश को इससे छूट प्राप्त है।
  • इसलिए एक जैसे परिसीमन की मांग करना संविधान के प्रावधानों की अनदेखी करना होगा।

अनुच्छेद 170 एवं संवैधानिक प्रतिबंध

  • अनुच्छेद 170(3) के अनुसार, राज्यों में विधानसभाओं की सीटों का पुनर्निर्धारण 2026 की जनगणना के बाद ही किया जा सकता है।
  • वर्तमान में सभी राज्यों में सीटों की संख्या 2001 की जनगणना के आधार पर स्थिर है।
  • इसका उद्देश्य आबादी की असमान वृद्धि के बावजूद राज्यों के बीच राजनीतिक संतुलन बनाए रखना है।

आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में परिसीमन की अनुमति के प्रभाव

  • समानता एवं संतुलन में विघटन : अन्य राज्य, विशेषकर उत्तर-पूर्वी राज्य (अरुणाचल, असम, मणिपुर, नागालैंड) भी इसी तरह की मांग करने लगेंगे जिससे देशव्यापी असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
  • एकरूप चुनाव व्यवस्था का संकट : यदि कुछ राज्यों में पहले परिसीमन हो और अन्य में न हो, तो चुनावी ढांचे की एकरूपता बिगड़ जाएगी।
  • नीतिगत क्षेत्र में न्यायिक हस्तक्षेप : परिसीमन मूलतः कार्यपालिका एवं विधायिका का विषय है। न्यायपालिका द्वारा इसमें हस्तक्षेप करना संविधान की सीमाओं को पार करना होगा।
  • विधायी एवं प्रशासनिक संकट : एक राज्य को छूट देने से राजनीतिक विवाद, मुकदमेबाजी एवं संघीय संरचना में असंतोष उत्पन्न हो सकता है।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय लोकतंत्र की संवैधानिक मर्यादाओं एवं चुनावी प्रक्रिया की एकरूपता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण है। यह फैसला स्पष्ट करता है कि राज्यों में परिसीमन केवल संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप ही हो सकता है, न कि अन्य क्षेत्रों की मिसालों के आधार पर। यह निर्णय न केवल संविधान की भावना का सम्मान करता है बल्कि भविष्य में राज्यों के बीच संघीय संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होगा।

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