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सतत विकास लक्ष्य-3 तथा भारत

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

भारत ने स्वास्थ्य संकेतकों में प्रगति की है किंतु वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्य-3 (अच्छा स्वास्थ्य एवं देखभाल) को प्राप्त करने की राह से अभी भी दूर है। ऐसे में भारत को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज व गुणवत्तापूर्ण देखभाल सुनिश्चित करने के लिए अधिक निवेश एवं प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता है।

भारत की नवीनतम सतत विकास लक्ष्य सूचकांक में स्थिति 

  • इस वर्ष जून में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित सतत विकास लक्ष्य (SDG) सूचकांक में भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया। 
  • एस.डी.जी. रिपोर्ट के वर्ष 2025 संस्करण में भारत 167 देशों में से 99वें स्थान पर रहा। 
    • यह वर्ष 2024 में 109वें स्थान से उल्लेखनीय सुधार दर्शाता है।
  • भारत ने बुनियादी सेवाओं एवं बुनियादी ढाँचे तक पहुँच जैसे क्षेत्रों में प्रगति प्रदर्शित की है। 
    • हालाँकि, रिपोर्ट में विशेष रूप से स्वास्थ्य एवं पोषण क्षेत्र में गंभीर चुनौतियों का भी उल्लेख किया गया है जहाँ विशेषकर ग्रामीण व आदिवासी समुदायों में प्रगति असमान रही है।

भारत में सतत विकास लक्ष्य 3 की स्थिति

  • मातृ मृत्यु दर (MMR) : प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर प्रसव के बाद मृत होने वाली माताओं की संख्या प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 97 मृत्यु है जो वर्ष 2030 के 70 के लक्ष्य से अधिक है।
  • पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (U5MR) : यह भी प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 32 मृत्यु पर बनी हुई है, जबकि लक्ष्य 25 का है। 
  • जीवन प्रत्याशा : जीवन प्रत्याशा अभी भी केवल 70 वर्ष है जो 73.63 वर्ष के लक्ष्य से कम है। 
  • स्वास्थ्य देखभाल पर आउट ऑफ़ पॉकेट व्यय : यह कुल व्यय का लगभग 13% है जो लक्षित 7.83% से लगभग दोगुना है। 
  • टीकाकरण कवरेज : यद्यपि टीकाकरण 93.23% के सराहनीय उच्च स्तर पर है किंतु अभी तक 100% के सार्वभौमिक लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाया है।

चुनौतियाँ

  • स्वास्थ्य पर निम्न सार्वजनिक व्यय: अभी भी भारत में स्वास्थ्य व्यय कुल सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2% (वैश्विक औसत 6% की तुलना में कम) तक ही सीमित है।
  • एन.सी.डी. का बोझ: मधुमेह, उच्च रक्तचाप एवं कैंसर जैसे रोगों में तीव्र वृद्धि।
  • ग्रामीण-शहरी विभाजन: ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और विशेषज्ञ सेवाओं तक पहुँच सीमित है।
  • पोषण एवं स्वच्छता संबंधी समस्याएँ: खराब पोषण, स्वच्छता एवं अन्य जीवनशैली विकल्पों, जैसे गैर-आर्थिक कारक जैसे- बाल कुपोषण एवं मातृ रक्ताल्पता का निरंतर प्रसार।
  • मानसिक स्वास्थ्य में कमी: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सांस्कृतिक प्रथाएँ और कलंक जैसी सांस्कृतिक प्रथाएँ और सीमित जागरूकता अक्सर समुदायों को उनके लिए उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने से भी रोकती हैं।
  • अंतराल: उच्च खर्च, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी, बढ़ती गैर-संचारी बीमारियाँ (NCD), और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक असमान पहुँच।
  • महामारी का झटका: कोविड-19 ने नियमित स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित किया और स्वास्थ्य असमानताओं में वृद्धि की।
  • खराब बुनियादी ढाँचा: इसके कारण आंशिक रूप से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच का अभाव। 

सरकारी पहल

  • आयुष्मान भारत - स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (HWC): प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का सुदृढ़ीकरण।
  • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY): द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवा के लिए बीमा कवरेज।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): मातृ, शिशु और संचारी रोग देखभाल।
  • आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM): डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना।

आगे की राह

सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा 

  • सभी नागरिकों तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा की पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है। 
  • विश्व बैंक के अध्ययनों के अनुसार मजबूत बीमा प्रणालियों वाले देशों ने स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाले अत्यधिक व्यय को कम करने के साथ ही पहुँच में अधिक समानता सुनिश्चित की है। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का उन्नयन एवं विस्तार 

  • देश भर में उच्च-गुणवत्ता वाले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करना और प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं का समन्वय करने की आवश्यकता है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में मानव संसाधनों पर निवेश किया जाना चाहिए।
  • मानसिक स्वास्थ्य एवं गैर-संचारी रोगों के प्रबंधन को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करने से इसके प्रभावकारी परिणाम आ सकते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी 2022 इस बात पर प्रकाश डालती है कि मज़बूत प्राथमिक प्रणालियाँ बीमारियों का जल्द पता लगाने, अस्पताल में भर्ती होने की लागत कम करने और बेहतर दीर्घकालिक परिणाम प्राप्त करने में मदद करती हैं। 

डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना में निवेश 

  • डिजिटल स्वास्थ्य उपकरणों की परिवर्तनकारी क्षमता का भी दोहन करना होगा। 
  • टेलीमेडिसिन एवं एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड, विशेष रूप से ग्रामीण व अल्प सेवा क्षेत्रों में पहुँच की कमी को पाट सकते हैं। 

सार्वजनिक व्यय में वृद्धि 

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि की जानी चाहिए।
  • उपचारात्मक के साथ ही निवारक एवं प्रोत्साहनकारी स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित किए जाने की आवश्यकता है।
  • सभी राज्यों एवं जिलों में गुणवत्तापूर्ण सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

स्कूल स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा का समावेश

  • रोगों का उपचार करने की तुलना में उनकी रोकथाम अधिक किफ़ायती है। बीमारियों की रोकथाम के लिए सभी स्कूली बच्चों को स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने पर बल देने की आवश्यकता है। 
  • बच्चों को स्वस्थ पोषण, अच्छी स्वच्छता, प्रजनन स्वास्थ्य, सड़क सुरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य विषयों पर शिक्षित किया जाना चाहिए।
  • दीर्घावधि में स्कूल स्वास्थ्य शिक्षा पहल में मातृ मृत्यु दर (MMR), पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर और सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को कम करने की क्षमता है। 
    • साथ ही, यह जीवन प्रत्याशा एवं टीकाकरण दरों में भी वृद्धि कर सकती है।
  • नीति-निर्माताओं को स्कूली पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य शिक्षा को शामिल करने के साथ-साथ सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करना होगा।
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