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ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन

ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन

सर्वोच्च न्यायालय ने 5 मार्च, 2025 को ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन (TTZ) प्राधिकरण को इस क्षेत्र में वृक्षों की गणना करने के लिए वन अनुसंधान संस्थान (FRI) को नियत करने का निर्देश दिया।

ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन के बारे में

  • आगरा स्थित ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए ताज ट्रेपेजियम जोन (टी.टी.ज़ेड.) की स्थापना की गई थी।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत स्थापित टी.टी.जेड. लगभग 10,400 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है।
  • यह उत्तर प्रदेश के आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, हाथरस एवं एटा जिलों तथा राजस्थान के भरतपुर जिले में विस्तृत है।
  • इसमें तीन विश्व धरोहर स्थल ‘ताजमहल’, ‘आगरा का किला’ एवं ‘फतेहपुर सीकरी’ सहित कई अन्य स्मारक शामिल हैं।
  • इस क्षेत्र में उद्योगों की श्रेणी के चार ज़ोन हैं जिन्हें लाल, हरा, नारंगी एवं सफेद वर्ग में रखा गया है।
  • इस जोन में केवल पर्यावरण अनुकूल, गैर-प्रदूषणकारी छोटे, लघु एवं सूक्ष्म स्तरीय उद्योगों की ही अनुमति दी जा सकती है।

वृक्षों की गणना संबंधित मामले के बारे में

  • संबंधित वाद : एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025)
  • क्या है मामला : सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष टी.टी.जेड. में वृक्षों की अनधिकृत कटाई से संबंधित एक याचिका दायर की गई  थी।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रमुख बिंदु

  • न्यायालय के अनुसार, किसी भी अवैध कटाई को रोकने के लिए क्षेत्र में मौजूदा वृक्षों की गणना आवश्यक है।
  • उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 का उद्देश्य वृक्षों की सुरक्षा करना है, न कि उन्हें गिराना या काटना। वृक्ष गणना के बिना इस अधिनियम के प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो सकता है।
  • इसलिए, टी.टी.जेड. क्षेत्र में सभी मौजूदा वृक्षों की गणना करने के लिए एफ.आर.आई. को एक प्राधिकरण के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है।
  • न्यायालय ने कृषि वानिकी के लिए भी वृक्षों की कटाई करने की अनुमति लेने की आवश्यकता को भी बरकरार रखा है।
    • वर्ष 2015 के अपने निर्णय में न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि कृषि वानिकी के लिए 1976 के अधिनियम के प्रावधान लागू रहेंगे, जिसका अर्थ है कि किसी भी वृक्ष को काटने से पहले आवश्यक अनुमति लेनी होगी।

वन अनुसंधान संस्थान (FRI)

  • देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान की शुरुआत वर्ष 1878 में फ़ॉरेस्ट स्कूल के रूप में हुई थी। इसका प्रारंभिक नाम इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट था। वर्ष 1906 में FRI अस्तित्व में आया।
  • बाद में इसका नाम बदलकर वन अनुसंधान संस्थान एवं कॉलेज कर दिया गया। इसके देशभर में कई केंद्र हैं जो अनुसंधान के साथ-साथ वन अधिकारियों और वन रेंजरों को प्रशिक्षण भी देते हैं। 
  • वर्ष 1988 में देश में वानिकी अनुसंधान के पुनर्गठन और भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) के निर्माण के बाद प्रशिक्षण व अनुसंधान केंद्रों को स्वतंत्र संस्थानों का दर्जा प्रदान कर दिया गया। 
  • वन अनुसंधान संस्थान वर्तमान में ICFRE के अंतर्गत आता है जिसे दिसंबर 1991 में डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है।
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