New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM Gandhi Jayanti Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 6th Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM Gandhi Jayanti Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 6th Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM

भारत के कल्याणकारी राज्य का तकनीकी गणनात्मक दृष्टिकोण

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

भारत का कल्याणकारी ढांचा डाटा-आधारित तकनीकी प्रणालियों की ओर बढ़ रहा है, जिसमें आधार के एक अरब पंजीकरण, 1,206 योजनाओं का डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) सिस्टम में एकीकरण और 36 शिकायत पोर्टल शामिल हैं। यह तकनीकी गणना (टेक्नोक्रेटिक कैलकुलस) कल्याणकारी योजनाओं को बड़े पैमाने पर लागू करने का वादा करती है किंतु यह लोकतांत्रिक मानदंडों और राजनीतिक जवाबदेही को कमजोर कर सकती है।

भारत के कल्याणकारी राज्य का तकनीकी गणनात्मक दृष्टिकोण 

  • परिभाषा : यह डाटा-आधारित एल्गोरिदम एवं तकनीकी प्रणालियों के माध्यम से कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की प्रक्रिया है जो रिसाव को कम करने और अधिकतम कवरेज सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
  • विशेषताएँ : यह प्रणाली मापने योग्य, लेखापरीक्षण और गैर-राजनीतिक तर्क पर आधारित है जो योजनाओं को सुव्यवस्थित व त्रुटि-मुक्त बनाती है।
  • उदाहरण : ई-श्रम एवं पीएम किसान जैसी योजनाएँ नवाचार-आधारित, एक-दिशात्मक तर्क को अपनाती हैं जो पारदर्शिता व दक्षता पर जोर देती हैं।
  • प्रभाव : यह नागरिकों को अधिकार-धारक के बजाय लेखापरीक्षण लाभार्थी में बदल देता है, जिससे उनकी राजनीतिक एजेंसी कमजोर होती है।

प्रमुख सिद्धांत 

  • हाबरमास की तकनीकी चेतना (Habermas’s Technocratic Consciousness):
    • जर्गन हाबरमास का मानना है कि तकनीकी चेतना एक ऐसी मानसिकता है जो सामाजिक समस्याओं को तकनीकी समाधानों के माध्यम से हल करने पर केंद्रित होती है जिससे लोकतांत्रिक विचार-विमर्श कमजोर होता है।
    • भारत में कल्याणकारी योजनाएँ डाटा एवं एल्गोरिदम पर निर्भर हो रही हैं जो जटिल सामाजिक व संवैधानिक मूल्यों को नजरअंदाज करती हैं।
  • फूको की गवर्नमेंटैलिटी (Foucault’s Governmentality):
    • मिशेल फूको का यह सिद्धांत शासन की उस प्रक्रिया को दर्शाता है जिसमें राज्य नागरिकों को नियंत्रित करने के लिए तकनीकी एवं प्रशासनिक उपकरणों का उपयोग करता है।
    • भारत में आधार और डिजिटल शिकायत पोर्टल जैसी प्रणालियाँ नागरिकों को डाटा बिंदुओं में बदल देती हैं जिससे उनकी व्यक्तिगत संदर्भ एवं देखभाल की कमी होती है।

भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ मॉडल

  • लोकतांत्रिक और संदर्भ-संवेदनशील दृष्टिकोण:
    • भारत को एक ऐसा मॉडल अपनाना चाहिए जो तकनीकी दक्षता और लोकतांत्रिक भागीदारी के बीच संतुलन बनाए।
    • ग्राम सभाओं को सशक्त करना: स्थानीय स्तर पर निर्णयन प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए ग्राम सभाओं और पंचायतों को शामिल किया जाए।
    • सामुदायिक प्रभाव लेखापरीक्षा: संयुक्त राष्ट्र के अत्यधिक गरीबी पर विशेष रैपोर्टियर की सिफारिशों के अनुसार, सामुदायिक प्रभाव वाले लेखापरीक्षण को संस्थागत रूप देना चाहिए।
    • प्लेटफॉर्म सहकारी समितियाँ: केरल की कुदुंबश्री योजना से प्रेरणा लेकर स्वयं सहायता समूहों को मध्यस्थ के रूप में उपयोग किया जाए।
  • लचीलापन और जवाबदेही: मॉडल में ऑफलाइन बैकअप तंत्र, मानवीय फीडबैक सुरक्षा और विभेदनकारी लेखापरीक्षण को शामिल करना चाहिए।

डाटा-आधारित कल्याण बनाम लोकतांत्रिक मानदंड

  • वादा: डाटा-आधारित एल्गोरिदम रिसाव को कम करते हैं, भूत (पुराने या मृत) लाभार्थियों को हटाते हैं और कल्याणकारी योजनाओं को बड़े पैमाने पर लागू करते हैं।
  • लागत:
    • लोकतांत्रिक मानदंडों का ह्रास: कल्याण अब लोकतांत्रिक विचार-विमर्श का विषय नहीं रहा है बल्कि यह एक तकनीकी प्रक्रिया बन गया है जो जार्जियो अगम्बेन के ‘होमो सैकर’ (राजनीतिक एजेंसी से वंचित व्यक्ति) की अवधारणा को दर्शाता है।
    • राजनीतिक जवाबदेही की कमी: सेंट्रलाइज्ड पब्लिक ग्रिवेंस रिड्रेस सिस्टम (CPGRAMS) जैसे तंत्र शिकायतों को टिकट-ट्रैकिंग सिस्टम में बदल देते हैं, जो जवाबदेही को अस्पष्ट करते हैं।
    • नागरिकों का डाटा में रूपांतरण : जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के आधार असहमति (2018) ने चेतावनी दी थी कि नागरिकों को संदर्भ-रहित, मशीनी डाटा में बदलना उनकी संवैधानिक गारंटी को कमजोर करता है।
  • सामाजिक क्षेत्र में कमी : वर्ष 2024 में सामाजिक क्षेत्र का व्यय 17% तक कम हो गया, जो वर्ष 2014 के 21% के औसत से कम है। अल्पसंख्यक, श्रम, रोजगार, पोषण एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं।

चुनौतियाँ

  • लोकतांत्रिक भागीदारी का अभाव : कल्याणकारी योजनाएँ अब स्थानीय फीडबैक और भागीदारी पर आधारित नहीं हैं, जिससे नागरिकों की आवाज दब रही है।
  • सूचना का अधिकार (RTI) संकट : वर्ष 2023-24 के केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) की रिपोर्ट के अनुसार, 29 सूचना आयोगों में चार लाख से अधिक मामले लंबित हैं और आठ CIC पद खाली हैं।
  • एल्गोरिदमिक इन्सुलेशन : CPGRAMS जैसे सिस्टम शिकायतों की दृश्यता को तो केंद्रीकृत करते हैं किंतु जवाबदेही को नहीं, जिससे प्रशासनिक दूरी बढ़ती है।
  • सामाजिक क्षेत्र में कमी : सामाजिक क्षेत्र के बजट में कटौती से कल्याणकारी योजनाओं की पहुंच एवं प्रभावशीलता कम हो रही है।
  • तकनीकी नाजुकता : नास्सिम तालेब के ‘हाइपर-इंटीग्रेटेड सिस्टम’ सिद्धांत के अनुसार, डाटा एवं बुनियादी ढांचे पर अत्यधिक निर्भरता तनाव की स्थिति में विफल हो सकती है।
  • नागरिकों की दृश्यता: जैक्स रैंसीयर की आलोचना के अनुसार, लोकतंत्र इस बात पर निर्भर करता है कि किसका दुख दृश्यमान और विवादास्पद है, न कि केवल गणना योग्य।

आगे की राह

  • लोकतांत्रिक लचीलापन (डेमोक्रेटिक एंटीफ्रैजिलिटी) : कल्याणकारी प्रणालियों को तनाव में विफल होने से बचाने के लिए लचीली और संदर्भ-संवेदनशील प्रणालियाँ बनाई जाएँ।
  • संघवाद और बहुलवाद: राज्यों को संदर्भ-संवेदनशील कल्याणकारी ढांचे डिज़ाइन करने की शक्ति दी जाए, जिसमें स्थानीय पंचायतें व ग्राम सभाएँ शामिल हों।
  • सामुदायिक भागीदारी : राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान और ग्राम पंचायत विकास योजनाओं के माध्यम से सामुदायिक प्रभाव लेखापरीक्षण को बढ़ावा देना।
  • प्लेटफॉर्म सहकारी समितियाँ : स्वयं सहायता समूहों को मध्यस्थ के रूप में उपयोग करने वाले मॉडल (जैसे- कुदुंबश्री) को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाए।
  • नागरिक सशक्तिकरण : सिविल सोसाइटी को जमीनी स्तर पर राजनीतिक शिक्षा और कानूनी सहायता क्लिनिक में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना।
  • ऑफलाइन बैकअप और जवाबदेही : ऑफलाइन फॉल-बैक तंत्र, मानवीय फीडबैक सुरक्षा और वैधानिक विभेदनकारी लेखापरीक्षण को मजबूत करना।
  • स्पष्टीकरण का अधिकार : संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सिद्धांतों के अनुसार, डिजिटल शासन प्रणालियों में ‘स्पष्टीकरण एवं अपील का अधिकार’ शामिल किया जाए।
  • नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण : डिजिटलीकरण को लोकतांत्रिक और लचीले सिद्धांतों के साथ पुनर्जनन करना चाहिए, ताकि शासन में नागरिक भागीदार बन सकें, न कि केवल डाटा प्रविष्टियाँ।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X