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ग्रासहॉपर इफेक्ट और आर्कटिक प्लास्टिक संकट

  • हाल ही में जारी रिपोर्ट “The Arctic’s Plastic Crisis: Toxic Threats to Health, Human Rights, and Indigenous Lands from the Petrochemical Industry” में दो प्रमुख पर्यावरण संगठनों ने गंभीर चिंता व्यक्त की है।
  • ये संगठन हैं –
    • Alaska Community Action on Toxics (ACAT)
    • International Pollutants Elimination Network (IPEN)
  • रिपोर्ट में एक कम ज्ञात लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया है जिसे ग्रासहॉपर इफेक्ट (Grasshopper Effect) या वैश्विक आसवन (Global Distillation) कहा जाता है।
  • यह प्रक्रिया विषैले प्रदूषकों को औद्योगिक क्षेत्रों से दूर-दराज़ के क्षेत्रों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • इसके परिणामस्वरूप, आर्कटिक जैसे नाजुक पारिस्थितिक तंत्र दुनिया के अन्य हिस्सों से उत्सर्जित रसायनों के अनपेक्षित गंतव्य बन जाते हैं।

Arctic-Plastic-Crisis

ग्रासहॉपर इफेक्ट क्या है?

  • ग्रासहॉपर इफेक्ट उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें स्थायी जैविक प्रदूषक (Persistent Organic Pollutants – POPs) और अन्य विषैले रसायन गर्म क्षेत्रों से ठंडे क्षेत्रों (विशेषकर आर्कटिक) की ओर वाष्पीकरण, वायुमंडलीय परिवहन और संघनन के चक्रों के माध्यम से पहुंचते हैं।

प्रक्रिया तंत्र (Mechanism):

  • गर्म क्षेत्रों में वाष्पीकरण: कृषि, उद्योगों और प्लास्टिक निर्माण में प्रयुक्त रसायन जैसे कीटनाशक, डाइऑक्सिन्स, PCB, PAH गर्म तापमान के कारण वाष्पित हो जाते हैं। 
  • वायुमंडलीय और समुद्री परिवहन: ये वाष्पशील रसायन वायु और जल धाराओं के माध्यम से उच्च अक्षांशों (जैसे आर्कटिक) की ओर ले जाए जाते हैं।
  • ठंडे क्षेत्रों में संघनन: जैसे ही ये रसायन ठंडे क्षेत्रों में पहुँचते हैं, वे संघनित होकर बारिश, बर्फ या प्रत्यक्ष जमाव द्वारा सतह पर गिरते हैं।
  • चक्र की पुनरावृत्ति: यह प्रक्रिया कई चरणों में दोहराई जा सकती है, जिससे ये प्रदूषक एक स्थान से दूसरे स्थान पर "उछलते" या "कूदते" हैं — इसी से नाम पड़ा Grasshopper
  • आर्कटिक – एक विषाक्त सिंक: यह प्रक्रिया आर्कटिक को एक hemispheric sink बना देती है – एक ऐसा अंतिम गंतव्य जहाँ ये प्रदूषक जमा होते हैं, भले ही उनका स्रोत कहीं और हो।

आर्कटिक क्यों प्रभावित होता है?

  • दूरस्थ और कम औद्योगिक गतिविधियों के बावजूद, आर्कटिक पर वैश्विक प्रदूषण का गंभीर प्रभाव पड़ता है:
  • ठंडा संघनन जाल (Cold Condensation Trap): ठंडी जलवायु में रसायन अधिक स्थिर होते हैं और अधिक मात्रा में जमा होते हैं।
  • कम अपघटन: कम तापमान रसायनों के विघटन को धीमा कर देता है, जिससे वे लंबे समय तक बने रहते हैं।
  •  समुद्री और वायुमंडलीय धाराएँ: आर्कटिक प्रशांत और अटलांटिक महासागरों की प्रदूषण धाराओं के 'डाउनस्ट्रीम' में है।

प्रमुख रसायन जो ग्रासहॉपर इफेक्ट के ज़रिए जमा हो रहे हैं:

  • PAHs (पॉलीअरोमैटिक हाइड्रोकार्बन): जीवाश्म ईंधन के दहन और औद्योगिक प्रक्रियाओं से निकलते हैं; कैंसर और हृदय रोग से जुड़े हैं।
  • बिसफिनोल (BPA): प्लास्टिक निर्माण में प्रयुक्त; हार्मोन गड़बड़ी और प्रजनन कैंसर से जुड़ा।
  • फ्थैलेट्स: प्लास्टिक को नरम बनाने वाले रसायन; प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करते हैं।
  • PFAS (पॉली-और परफ्लोरोएल्काइल पदार्थ): “फॉरएवर केमिकल्स” जो नॉन-स्टिक बर्तन और औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग होते हैं; भोजन श्रृंखला में जमा होते हैं और अपघटन से बचते हैं।
  • डाइऑक्सिन्स और फ्यूरान्स: अत्यंत विषैले और कैंसरजन्य प्रदूषक।

आर्कटिक समुदायों पर प्रभाव:

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:

  • इनुइट जैसे आदिवासी समुदायों की पारंपरिक भोजन श्रृंखला (मछली, सील, व्हेल) इन रसायनों से दूषित हो रही है।
  • ये प्रदूषक जैव संचयन (bioaccumulate) और जैव प्रवर्धन (biomagnify) के ज़रिए शीर्ष पर स्थित जीवों और अंततः मानव शरीर में अत्यधिक मात्रा में पहुँचते हैं।

बीमारियाँ जो देखी गई हैं:

  • कैंसर
  • हार्मोन असंतुलन
  • हृदय रोग
  • बच्चों में न्यूरोलॉजिकल और विकास संबंधी विकार

मानव अधिकारों का उल्लंघन:

  • यह प्रदूषण आर्कटिक आदिवासियों के स्वास्थ्य, भोजन, जल और सांस्कृतिक पहचान के अधिकार को कमजोर करता है।
  • मां के दूध, भोजन और पानी में पाए जाने वाले प्रदूषक पर्यावरणीय अन्याय (environmental injustice) का उदाहरण हैं।

वैश्विक महत्व:

  • ग्रासहॉपर इफेक्ट यह दर्शाता है कि प्रदूषण की कोई सीमाएं नहीं होतीं।
  • दूरस्थ क्षेत्र भी अन्य महाद्वीपों की औद्योगिक गतिविधियों से प्रभावित होते हैं।

आवश्यक कदम:

  • स्टॉकहोम कन्वेंशन जैसे अंतर्राष्ट्रीय रसायन समझौतों को मजबूत बनाना
  • रासायनिक उत्पादन और कचरा प्रबंधन में वैश्विक जवाबदेही
  • गैर-विषाक्त और टिकाऊ सामग्री की ओर संक्रमण — विशेषकर प्लास्टिक और पेट्रोकेमिकल क्षेत्रों में

आर्थिक सर्वेक्षण एवं नीति प्रासंगिकता (भारत व वैश्विक):

  • भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2023–24 में ग्रासहॉपर इफेक्ट का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, लेकिन यह ज़ोर देता है:
    • वैश्विक पर्यावरणीय उत्तरदायित्व की आवश्यकता
    • प्लास्टिक कचरे और खतरनाक रसायनों का प्रबंधन
    • रसायनों और कचरे के वैश्विक प्रबंधन ढांचे में भारत की भूमिका
    •  GAHP (Global Alliance on Health and Pollution) में भारत का योगदान
  • यह विषय भारत की अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय नीति के लिए महत्वपूर्ण बनता है, विशेषकर LiFE अभियान और Mission LiFE के संदर्भ में।
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