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डुगोंग संरक्षण की आवश्यकता

(प्रारम्भिक परीक्षा : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)

चर्चा में क्यों

प्रत्येक वर्ष 28 मई को ‘विश्व डुगोंग दिवस’ का आयोजन किया जाता है। यह दिवस  समुद्री पारिस्थितिकी में डुगोंग (Dugong) की भूमिका और उसके संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।  

डुगोंग के बारे में

  • परिचय : यह एक सौम्य और शर्मीला समुद्री जीव है, जो मुख्यतः उथले और गर्म समुद्री जल में पाया जाता है। यह भारत के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में पाया जाने वाला एकमात्र शाकाहारी समुद्री स्तनपायी है। जिसे ‘समुद्री गाय’ भी कहा जाता है।
  • भारत में वितरण : भारत में यह मुख्यतः अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, मन्नार की खाड़ी, पाल्क खाड़ी और कच्छ की खाड़ी में पाया जाता है।
  • आहार : इनका प्रमुख आहार सीग्रास (समुद्री घास) हैं इसे ‘समुद्र का माली’ भी कहा जाता है क्योंकि यह सीग्रास को खाकर उसे प्राकृतिक रूप से नियंत्रित व पुनर्जीवित करता है।
  • जीवनकाल एवं प्रजनन : इसका  जीवनकाल लगभग 70 वर्ष होता है तथा इसका प्रजनन चक्र धीमा होता है।
    • यह 9-10 वर्ष की आयु में प्रजनन के लिए परिपक्व होता है और हर 3-5 साल में एक बार बच्चे को जन्म देता है। इसकी जनसंख्या वृद्धि दर अधिकतम 5% प्रति वर्ष है।

इसे भी जानिए!

समुद्री घास (seagrass) के बारे में 

  • समुद्री घास फूलदार पौधे हैं जो समुद्री और खारे वातावरण में पानी के नीचे रहने के लिए अनुकूलित हैं, जिससे पानी के नीचे घने पारिस्थितिक तंत्र (Seagrass Bed) बनते हैं।
  • ये स्थलीय घासों के समान दिखते हैं, लेकिन समुद्री घास वास्तव में जड़ों, तनों और पत्तियों वाले फूलदार पौधे हैं।
  • दुनिया भर में समुद्री घास की लगभग 72 प्रजातियां हैं, जो विभिन्न तटीय वातावरणों के लिए अनुकूलित हैं।

भारत में डुगोंग की घटती आबादी

भारत में डुगोंग की आबादी 200 से भी कम रह गई है। जिसके निम्नलिखित कारण हैं-

  • आवास का नुकसान: तटीय क्षेत्रों में आवासीय, मनोरंजन, और कृषि गतिविधियों का विस्तार, बंदरगाह निर्माण, ड्रेजिंग ने समुद्री घास क्षेत्र को नष्ट किया है।
  • प्रदूषण: कृषि अपवाह, सीवेज, और औद्योगिक अपशिष्टों से जल गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिसका समुद्री घास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस कारण डुगोंग के मांसपेशियों में पारा और ऑर्गेनोक्लोरिन यौगिकों का संचय देखा गया है।
  • मछली पकड़ने के उपकरण: गलनेट और ट्रॉल नेट में उलझने से डुगोंग की मृत्यु हो जाती है, क्योंकि यह सांस लेने के लिए नियमित रूप से सतह पर आता है।
  • नावों से टक्कर: तीव्र गति वाली नावों से टकराने के कारण चोट या मृत्यु होती है।
  • अवैध शिकार: हालांकि डुगोंग भारत में अनुसूची-I में संरक्षित प्रजाति है, फिर भी अंडमान और निकोबार के सुदूर क्षेत्रों में अवैध शिकार होता है।
  • जलवायु परिवर्तन: समुद्र के तापमान में वृद्धि, अम्लीकरण, और चक्रवात जैसे चरम मौसम समुद्री घास पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं।

संरक्षण स्थिति

  • अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की लाल सूची में ‘संवेदनशील’ (Vulnerable) श्रेणी में वर्गीकृत
  • वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत संरक्षित

संरक्षण प्रयास

  • संरक्षण रिजर्व: वर्ष 2022 में, भारत सरकार ने पाक की खाड़ी, तमिलनाडु में 448.3 वर्ग किमी. में देश का पहला डुगोंग संरक्षण रिजर्व स्थापित किया। इस क्षेत्र में 122.5 वर्ग किमी. में समुद्री घास के मैदान संरक्षित हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं: भारत ने वर्ष 1983 से प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन (CMS) का हिस्सा है और वर्ष 2008 से डुगोंग संरक्षण और आवास प्रबंधन पर समझौता ज्ञापन का हस्ताक्षरकर्ता है।
  • स्थानीय प्रयास: OMCAR फाउंडेशन, वन्यजीव संस्थान (WII), और तमिलनाडु वन विभाग ने दशक भर से डुगोंग संरक्षण और सीग्रास बहाली के लिए कार्य किया है।

डुगोंग संरक्षण के लिए सुझाव

  • सीग्रास संरक्षण: सीग्रास बेड्स का मानचित्रण और निगरानी, जैसे मन्नार की खाड़ी बायोस्फीयर रिजर्व, को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • हानिकारक मछली पकड़ने पर प्रतिबंध: गलनेट और बॉटम ट्रॉलिंग पर प्रतिबंध लगाकर डुगोंग की सुरक्षा की जा सकती है।
  • टिकाऊ मछली पकड़ने की तकनीक: पारंपरिक, गैर-विनाशकारी मछली पकड़ने की तकनीकों को बढ़ावा देना।
  • पारिस्थितिक पर्यटन: डुगोंग-मैत्रीपूर्ण इको-टूरिज्म को बढ़ावा देकर स्थानीय युवाओं को ईको-गाइड के रूप में प्रशिक्षित करना।
  • जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी: तटीय समुदायों में डुगोंग के पारिस्थितिक महत्व के बारे में जागरूकता अभियान चलाना और मछुआरों को डुगोंग की निगरानी और बचाव में शामिल करना।
  • अनुसंधान और प्रौद्योगिकी: डुगोंग की जनसंख्या, व्यवहार, और खतरों पर दीर्घकालिक अध्ययन के लिए वित्तीय और संस्थागत समर्थन। ड्रोन और टैगिंग तकनीक का उपयोग महत्वपूर्ण आवासों की पहचान के लिए।
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