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भारत में प्राथमिक खाद्य उपभोग में समानता की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक व खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र)

संदर्भ 

  • विश्व बैंक के अनुसार, पिछले एक दशक में भारत में अत्यधिक गरीबी (प्रतिदिन 2.15 डॉलर से कम पर जीवन यापन) वर्ष 2011-12 में 16.2% से घटकर वर्ष 2022-23 में 2.3% हो गई।
  • हालाँकि, अत्यधिक गरीबी में कमी के बावजूद भारत में आहार असमानता गंभीर बनी हुई है जहाँ आबादी के एक बड़े हिस्से को पौष्टिक भोजन तक पहुँच नहीं है। 

वर्तमान स्थिति

  • मुख्य खाद्यान्नों पर आधारित आहार: चावल एवं गेहूँ का प्रभुत्व है, जबकि दालों, फलों, सब्जियों व प्रोटीन का सेवन कम होता है।
  • असमानता: ग्रामीण गरीब एवं शहरी अनौपचारिक कामगार कैलोरी व पोषक तत्वों की कमी का सामना करते हैं।
  • क्षेत्रीय विविधताएँ: दक्षिणी व पूर्वी राज्य चावल का अधिक उपभोग करते हैं जबकि उत्तरी व पश्चिमी राज्य गेहूँ को प्राथमिकता देते हैं।
  • प्रोटीन उपभोग में अंतर: गरीबों में दालों व दूध का उपभोग अपर्याप्त बना हुआ है।

संबंधित मुद्दे

  • उच्च खाद्य मुद्रास्फीति पहुँच में असमानता को बढ़ाती है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) विविध खाद्य पदार्थों के बजाय मुख्य रूप से अनाज पर केंद्रित है।
  • सरकारी प्रोत्साहन के बावजूद दालों व बाजरे की खपत में गिरावट आई है।
  • प्रसंस्कृत व अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की खपत में वृद्धि हुई है।

सरकारी प्रयास

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और पी.डी.एस.: सब्सिडी वाले चावल एवं गेहूँ की सुनिश्चित उपलब्धता लेकिन खाद्य विविधता का अभाव
  • पोषण अभियान: पूरक पोषण के साथ कुपोषण का समाधान
  • बाजरा मिशन (2023 अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष): मोटे अनाज को बढ़ावा 
  • मध्याह्न भोजन (पीएम-पोषण): स्कूली बच्चों के लिए पोषण संबंधी हस्तक्षेप

आगे की राह

  • पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों (दालें, बाजरा, तिलहन) को शामिल करने के लिए पी.डी.एस. के दायरे में वृद्धि की जाने की आवश्यकता है।
  • विविध फसलों के उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया जाना जाना चाहिए जो अंतत: खाद्य विविधता को बढ़ावा देती है।
  • पोषण-संवेदनशील कृषि और स्थानीय खाद्य प्रणालियों पर बल देने की आवश्यकता है।
  • दूध, अंडे, फल एवं सब्जियों जैसे पौष्टिक आहारों तक सामर्थ्य व पहुँच सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है।
  • खाद्य सुरक्षा नीति के केंद्रीय लक्ष्य के रूप में आहार समानता को लक्षित किया जाना चाहिए।
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