(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इनका कार्य-निष्पादन; अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय; स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन) |
संदर्भ
ट्रांसजेंडर एवं लिंग-विविध व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य व सम्मान में सुधार लाने में लिंग-पुष्टि देखभाल (Gender-Affirming Care: GAC) की महत्वपूर्ण भूमिका है जो भारत में लिंग-पुष्टि देखभाल (GAC) की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है
लिंग-पुष्टि देखभाल (GAC) के बारे में
- परिभाषा : GAC चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक हस्तक्षेपों की एक श्रृंखला को संदर्भित करता है जो व्यक्तियों को अपनी लिंग पहचान को अपने शरीर व सामाजिक मान्यता के साथ संरेखित करने में मदद करते हैं।
- स्वरूप : इसके कई रूप हैं-
- सामाजिक हस्तक्षेप : स्कूलों, कार्यस्थलों एवं दस्तावेज़ में सही नामों, सर्वनामों व पहचान का उपयोग पहचान की पुष्टि सुनिश्चित करता है।
- मनोवैज्ञानिक सहायता : इसमें लिंग डिस्फोरिया (Gender Dysphoria) और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए परामर्श एवं सहकर्मी सहायता नेटवर्क शामिल हैं।
- चिकित्सा देखभाल : इसमें लिंग-पुष्टि हार्मोन थेरेपी (GAHT) व आवश्यकतानुसार द्वितीयक यौन विशेषताओं को संशोधित करने के लिए सर्जरी शामिल है।
- कानूनी एवं संस्थागत सहायता : स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा प्रणालियों में पुष्टि प्रथाओं का एकीकरण गरिमा व समावेशन सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) लिंग-पुष्टि देखभाल को चिकित्सकीय रूप से आवश्यक मानता है, न कि वैकल्पिक या दिखावटी मानता है क्योंकि इसका स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
भारत में लिंग-पुष्टि देखभाल की आवश्यकता
- उच्च मानसिक स्वास्थ्य बोझ: 31% से अधिक ट्रांस व्यक्तियों ने आत्महत्या का प्रयास किया है जिनमें से लगभग आधे ने 20 वर्ष की आयु से पहले आत्महत्या का प्रयास किया है (भारत मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2024)।
- सिद्ध स्वास्थ्य लाभ: GAC तक पहुँच अवसाद एवं आत्महत्या के विचारों को कम करती है और समग्र मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य में सुधार करती है (JAMA नेटवर्क ओपन, 2023)।
- संवैधानिक गरिमा का अधिकार: अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है जिसमें उचित स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच शामिल है।
- सामाजिक बहिष्कार को पाटना: GAC सामाजिक मान्यता एवं आत्म-स्वीकृति को सक्षम बनाता है और कलंक व कार्यस्थल पर भेदभाव को कम करता है।
- जन स्वास्थ्य प्राथमिकता: यह विश्व स्तर पर एक जीवन रक्षक चिकित्सा आवश्यकता के रूप में मान्यता प्राप्त है और जन स्वास्थ्य नीति में इसका समावेश ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत समानता सुनिश्चित करता है।
भारत में लिंग-पुष्टि देखभाल में बाधाएँ
- सीमित चिकित्सा अवसंरचना: प्रशिक्षित एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (Endocrinologists) की कमी और मानकीकृत राष्ट्रीय उपचार प्रोटोकॉल का अभाव
- वित्तीय बाधाएँ: लिंग-पुष्टि सर्जरी की लागत ₹2-8 लाख है और GAHT की वार्षिक लागत ₹50,000-70,000 है, जिससे यह अधिकांश लोगों के लिए दुर्गम है।
- नीतिगत अंतराल: ‘आयुष्मान भारत टीजी प्लस’ का क्रियान्वयन कम है, जागरूकता की कमी है और अस्पतालों की भागीदारी सीमित है।
- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए संपूर्ण स्वास्थ्य बीमा सुनिश्चित करने हेतु ‘आयुष्मान भारत टीजी प्लस’ स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की गई थी। इनकी विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यह योजना प्रति वर्ष ₹5 लाख तक का निःशुल्क उपचार प्रदान करती है ताकि इन्हें सुलभ, समावेशी और समान स्वास्थ्य सेवा प्राप्त हो सके।
- सामाजिक कलंक एवं भेदभाव : अस्पतालों, कार्यस्थलों व परिवारों में व्यापक पूर्वाग्रह व्यक्तियों को देखभाल प्राप्त करने से रोकता है।
- असुरक्षित विकल्प : औपचारिक सेवाओं का अभाव कई लोगों को बिना डॉक्टर के पर्चे के हार्मोन का उपयोग करके स्व-चिकित्सा करने के लिए मजबूर करता है जिससे गुर्दे और हृदय संबंधी क्षति होती है।
- उदाहरणार्थ: हैदराबाद और मुंबई से प्राप्त रिपोर्टों से पता चलता है कि निगरानी वाले GAC क्लीनिकों की अनुपस्थिति के कारण हार्मोन के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए हैं।
जीएसी के अभाव के परिणाम
- गंभीर मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव: देखभाल से इनकार अवसाद, चिंता एवं आत्मघाती व्यवहार को बढ़ावा देता है; ट्रांस व्यक्तियों में आत्महत्या का प्रयास करने की संभावना 4-6 गुना अधिक होती है।
- सामाजिक अलगाव: शिक्षा एवं नौकरियों से वंचित रहना ट्रांसजेंडर समुदायों में गरीबी व बेघरपन को बढ़ाता है।
- स्व-चिकित्सा से स्वास्थ्य जोखिम: अनियमित हार्मोन सेवन से अंग विफलता एवं हार्मोनल असंतुलन होता है।
- नीति में डाटा विलोपन: एन.एफ.एच.एस. और एन.एस.एस.ओ. में ट्रांसजेंडर-विशिष्ट डाटा का अभाव उन्हें सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं से बाहर कर देता है।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन: जी.ए.सी. से इनकार संवैधानिक समानता और शारीरिक स्वायत्तता को कमजोर करता है तथा संरचनात्मक भेदभाव को मजबूत करता है।
- उदाहरण के लिए, टी.आई.एस.एस. (2023) के अध्ययनों से पता चलता है कि 65% ट्रांस युवाओं को लैंगिक पूर्वाग्रह के कारण स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है।
आगे की राह
- सार्वजनिक स्वास्थ्य में ट्रांसजेंडर समुदाय को एकीकृत करना: आयुष्मान भारत के अंतर्गत ट्रांसजेंडर समुदाय को शामिल करना और सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क या रियायती सेवाएँ सुनिश्चित करना
- प्रशिक्षण एवं संवेदनशीलता: चिकित्सा पाठ्यक्रम में डॉक्टरों, नर्सों और मनोवैज्ञानिकों के लिए लिंग-संवेदनशीलता मॉड्यूल शामिल करना
- सामुदायिक भागीदारी: आउटरीच, सहकर्मी परामर्श एवं स्थानीय स्वास्थ्य सेवा सुविधा के लिए ट्रांसजेंडर-नेतृत्व वाले गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करना
- कानूनी एवं नीतिगत सुधार: समावेशी बीमा नीतियों को लागू करना और समान देखभाल मानकों के लिए राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर समुदाय दिशानिर्देश का निर्माण करना
- डाटा एवं अनुसंधान निवेश: साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सूचित करने के लिए ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य पर राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण करना
- जागरूकता अभियान: मिथकों का मुकाबला करने और सामाजिक कलंक को कम करने के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय के बारे में लोगों की समझ को बढ़ावा देना
- उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के राज्य द्वारा संचालित जेंडर क्लीनिक और केरल का ट्रांसजेंडर प्रकोष्ठ एकीकृत स्वास्थ्य सेवा वितरण के लिए मॉडल के रूप में कार्य करते हैं।
निष्कर्ष
लिंग-पुष्टि देखभाल एक विशेषाधिकार नहीं है बल्कि यह मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक एक चिकित्सा एवं मानवाधिकार है। भारत को एक समावेशी, अधिकार-आधारित जन स्वास्थ्य दृष्टिकोण के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल (GAC) को सुलभ, किफ़ायती एवं सम्मानजनक बनाने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। वास्तविक मानसिक स्वास्थ्य समानता तभी प्राप्त होगी जब प्रत्येक व्यक्ति, लिंग पहचान की परवाह किए बिना, सम्मान के साथ जीवन जी सके और स्वस्थ हो सके।