(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 2: भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों व राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय) |
संदर्भ
इस वर्ष विश्व शरणार्थी दिवस (20 जून) का थीम ‘शरणार्थियों के साथ एकजुटता’ है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें एक श्रीलंकाई शरणार्थी की सजा को 10 वर्ष से घटाकर 7 वर्ष कर दिया गया था। इस शरणार्थी को गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था।
भारत में शरणार्थियों की स्थिति
- भारत ने अब तक किसी भी अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी संधि (जैसे- 1951 के शरणार्थी अभिसमय या उसके 1967 प्रोटोकॉल) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
- हालांकि, भारत ने कई बार शरणार्थियों को मानवीय आधार पर शरण दी है। भारत में मुख्यतः दो बड़े शरणार्थी समुदाय ‘तिब्बती’ एवं ‘श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी’ हैं।
तिब्बती शरणार्थी
- संख्या: लगभग 63,000
- भारत सरकार द्वारा दीर्घकालिक पुनर्वास नीति (Tibetan Rehabilitation Policy, 2014)
- विभिन्न राज्यों में समान रूप से वितरित: कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख
श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी
- संख्या: लगभग 90,000
- अधिकांश तमिलनाडु में बसे हुए
- कोई स्पष्ट केंद्रीय पुनर्वास नीति नहीं
- प्रत्यावर्तन या वापसी को ही अंतिम लक्ष्य माना जाता है।
हाल की घटनाएँ और न्यायिक दृष्टिकोण
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी (2022)
- मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध एक श्रीलंकाई शरणार्थी ने अपनी 7 वर्ष की सजा पूरी होने के बाद भारत में रहने की अनुमति मांगी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज करते हुए यह टिप्पणी की ‘भारत धर्मशाला नहीं है जहाँ पूरी दुनिया से शरणार्थी आकर बसें’।
- यह टिप्पणी भारत की शरणार्थी नीति में परिवर्तन की ओर संकेत करती है।
- पूर्व में भारतीय अदालतें शरणार्थियों के प्रति सहानुभूति दिखाती रही हैं किंतु यह निर्णय एक नई प्रवृत्ति को दर्शाता है।
श्रीलंका द्वारा शरणार्थी की गिरफ्तारी
- इस 70 वर्षीय श्रीलंकाई शरणार्थी को तमिलनाडु से लौटकर श्रीलंका जाने पर वैध दस्तावेज के आभाव में श्रीलंका में हिरासत में ले लिया गया।
- हालाँकि, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय ने उसकी वापसी को मान्यता दी थी। इस घटना से शरणार्थियों की असुरक्षा एवं अनिश्चितता उजागर होती है।
नीतिगत अंतर: तिब्बती शरणार्थी बनाम श्रीलंकाई शरणार्थी
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पहलू
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तिब्बती शरणार्थी
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श्रीलंकाई शरणार्थी
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पुनर्वास नीति
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TRP, 2014
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अनुपस्थित
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अंतिम उद्देश्य
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भारत में दीर्घकालिक पुनर्वास
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श्रीलंका वापसी
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शिक्षा/ रोजगार
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सरकारी योजनाओं में समावेश
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सीमित अवसर
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नागरिकता
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कुछ को मिली
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अभी तक नहीं
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प्रमुख समस्याएँ एवं चुनौतियाँ
- स्थायी नीति की अनुपस्थिति : श्रीलंकाई शरणार्थियों के लिए कोई स्पष्ट केंद्रीय नीति नहीं है।
- रोजगार एवं शिक्षा में भेदभाव : तमिलनाडु में इंजीनियरिंग करने वाले लगभग 500 शरणार्थी युवाओं में से सिर्फ 5% को ही रोजगार मिला।
- प्रत्यावर्तन की अनिश्चितता : श्रीलंका में वापसी की न तो गारंटी है और न ही स्पष्ट योजना।
- स्थानीय एकीकरण में कठिनाई : भारत में सामाजिक, आर्थिक एवं कानूनी पहचान की समस्या।
आगे की राह
- राष्ट्रीय शरणार्थी नीति का निर्माण : जिससे सभी शरणार्थियों के लिए समान मानदंड तय किए जा सकें।
- स्थानीय एकीकरण की पहल : खासकर उन शरणार्थियों के लिए जो दशकों से भारत में रह रहे हैं।
- मानवाधिकार संरक्षण : शरणार्थियों के मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कानूनी सुरक्षा दी जाए।
- शिक्षा व रोजगार तक पहुँच : केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर सरकारी योजनाओं का विस्तार शरणार्थियों तक करें।
- प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया में पारदर्शिता : श्रीलंका सहित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग।
निष्कर्ष
भारत में शरणार्थियों की स्थिति केवल मानवीय या संवैधानिक नहीं है, बल्कि रणनीति व सामाजिक मुद्दा भी है। श्रीलंकाई शरणार्थियों को लगभग 40 वर्षों से तमिलनाडु में शरण मिली है। अब उनके भविष्य को लेकर स्पष्ट व स्थायी नीति बनाने की आवश्यकता है।