(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य एवं वास्तुकला के मुख्य पहलू) |
संदर्भ
तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा राज्य के तेनकासी जिले के तिरुमलापुरम स्थल के उत्खनन में लौह युग की संस्कृति उजागर हुई है।
लौह युग की खोज के बारे में
- यह खोज ‘आर्कियोलॉजिकल एक्सकेवेशन्स इन तमिलनाडु: ए प्रीलिमिनरी रिपोर्ट’ के प्रारंभिक निष्कर्षों पर आधारित है।
- यह उत्खनन लौह युग (लगभग 3000-1000 ईसा पूर्व) की संस्कृति को दर्शाता है जिसमें मेगालिथिक दफन प्रथाएं, लौह उपकरण एवं मृद्भांड प्रमुख हैं।
- उत्खनन में प्राप्त सामग्रियां (मृद्भांड, लौह हथियार) आदि चानल्लूर (905-696 ईसा पूर्व) और सिवागलाई (3345-2953 ईसा पूर्व) से तुलनीय हैं।
- वैज्ञानिक विश्लेषण (एक्स-रे फ्लोरेसेंस) से पुष्टि हुई है कि लौहे को गलाया गया था, न कि उल्कापिंड से प्राप्त हुआ था, जो दक्षिण भारत में स्वतंत्र धातुकर्म विकास को इंगित करता है।
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तमिलनाडु के तेनकासी जिले के थिरुमालापुरम में लौह युगीन कलश दफन स्थल
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खोज के मुख्य बिंदु
- मृद्भांड : वाइट-पेंटेड ब्लैक-एंड-रेड वेयर, रेड वेयर, रेड-स्लिप्ड वेयर, ब्लैक-पॉलिश्ड वेयर और कोर्स रेड वेयर; कब्रों व दफन वस्तुओं में पाए गए।
- धातु वस्तुएँ : 78 पुरातत्व वस्तुओं में हड्डी, सोना, कांस्य व लौह वस्तुएँ; जैसे- चिमटा, तलवार, भाला का सिरा, सोने की अंगूठी, कुल्हाड़ी, खंजर, छेनी, हड्डी का सिरा व तीर का सिरा।
- सोने की अंगूठियां: एक कलश में 0.49 मीटर गहराई पर तीन छोटी अंगूठियां (प्रत्येक 4.8 मिमी व्यास, 1 मिलीग्राम से कम वजन)
- दफन प्रकार: कलश दफन और पत्थर चैंबर लौह युग की मेगालिथिक संस्कृति को प्रमाणित करते हैं।
दफन स्थल (Burial Site)
- तिरुमलापुरम दफन स्थल लगभग 35 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत है जो वर्तमान गांव से 10 किमी. उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
- यह पश्चिमी घाट से निकलने वाली धाराओं के निकट कुलासेगारापेरी टैंक के पास है जो प्राचीन जल प्रबंधन को संकेत देता है।
- उत्खनन में 37 ट्रेंच खोदे गए, जहां आयताकार पत्थर की स्लैब चैंबर (35 स्लैब से निर्मित) मिली, जो 1.5 मीटर गहराई तक कंकड़ से भरी थी।
- चैंबर में कलश दफन (अर्न बुरियल) पाए गए, जो तमिलनाडु में पहली बार इस प्रकार की खोज है।
- दफन स्थल मेगालिथिक परंपरा का हिस्सा है जहां कंकाल अवशेषों के साथ कलशों में लौह वस्तुएं रखी जाती थीं।
प्रतीक (Symbols)
- कलशों पर उकेरे गए प्रतीक उत्खनन की सबसे आकर्षक खोज हैं जो प्राचीन कला और धार्मिक विश्वासों को दर्शाते हैं।
- एक रेड-स्लिप्ड वेयर पर बिंदु डिजाइन से मानव आकृति, पहाड़, हिरण व कछुआ का चित्रण है जो प्रकृति पूजा और पर्यावरणीय संबंध को इंगित करता है।
- वाइट-पेंटेड ब्लैक-एंड-रेड वेयर पर ज्यामितीय और प्राकृतिक डिजाइन टी. कल्लुपट्टी, आदि चानल्लूर, सिवागलाई, थुलुक्कारपट्टी एवं कोर्काई से समान हैं।
- ये प्रतीक द्रविड़ कला की प्रारंभिक परंपरा को दर्शाते हैं जो सिंधु घाटी के ग्रैफिटी मार्क्स (90% समानता) से जुड़े हो सकते हैं।
- प्रतीक दफन वस्तुओं में सामाजिक स्थिति और आध्यात्मिक मान्यताओं को प्रतिबिंबित करते हैं।
महत्व
- लौह युग की समयरेखा : यह खोज वैश्विक लौह युग की समयरेखा को चुनौती देती है क्योंकि तमिलनाडु में लौह का उपयोग 3345 ईसा पूर्व तक खोजा गया है, जो हित्ती साम्राज्य (1300 ईसा पूर्व) से भी पुराना है।
- हित्ती साम्राज्य (राजधानी हट्टुसा) एशिया माइनर (तुर्किये) से लेकर उत्तरी लेवंत और ऊपरी मेसोपोटामिया (ईरान) तक फैला हुआ था।
- सांस्कृतिक स्वतंत्रता: दक्षिण भारत में तांबे की कमी से लौह का जल्दी अपनाना, जोकि उत्तर भारत के तांबे युग के समकालीन था।
- व्यापार नेटवर्क: कार्नेलियन और एगेट मनके मिलने से सिंधु घाटी के साथ लंबी दूरी के व्यापार का प्रमाण हैं जो द्रविड़ सभ्यता को जोड़ता है।
- सामाजिक अंतर्दृष्टि: दफन वस्तुएं कृषि, युद्ध व कला को दर्शाती हैं, जो प्राचीन तमिल समाज की उन्नत जीवनशैली को उजागर करती हैं।
- ऐतिहासिक पुनर्लेखन: तमिलनाडु को भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास का केंद्र बनाता है, जो द्रविड़ विरासत को मजबूत करता है।
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तमिलनाडु में प्रमुख लौह युगीन स्थल
- आदि चानल्लूर (थूथुकुट्टी जिला)
- सिवागलाई (तूतीकोरिन जिला)
- मयिलाडुम्पराई (कृष्णगिरि जिला)
- कोडुमनाल (ईरोड जिला)
- किलनमंडी (तिरुवन्नामलाई जिला)
- मंगाडु एवं थेलुंगनुर
- कोर्काई, थुलुक्का

दक्षिण भारत में प्रमुख लौह युगीन स्थल
- ल्लूर (कर्नाटक)
- ब्रह्मगिरि (कर्नाटक)
- मास्की (कर्नाटक)
- नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश)
- जुनापानी
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